देश में लगता अघोषित आपातकाल,लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ को कुचलने का षड्यंत्र

भोपाल। गत दिनों जिस प्रकार आयकर विभाग द्वारा एक प्रमुख समाचार पत्र के देश भर में स्थापित विभिन्न कार्यालयों पर दलबल के साथ छापेमारी की गई वह किसी से छिपी नही है।आमजन को यह बताने की भी कोई आवश्यकता नही की सरकार की यह प्रतिक्रिया किस क्रिया का परिणाम है। मगर इस सब के बीच अगर हम यह कहें कि वर्तमान सरकार द्वारा देश मे अघोषित आपातकाल लगाया जा रहा है तो अतिशयोक्ति नही होगी।निसन्देह वर्तमान समय मे लोकतंत्र के चौथा स्तम्भ कहे जाने वाले पत्रकारिता का सरकार दोहन करने पर आमादा है।
गौरतलब हो कि भारत के संविधान में अनुच्छेद 19(1)(ए) में प्रत्येक नागरिक को वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान किया गया है। इसके अर्थ में जानने का अधिकार, विचारों की स्वतंत्रता और प्रेस की स्वतंत्रता का अधिकार अंतरनिहित हैं। जिसका वर्तमान समय मे खुलकर उल्लंघन किया जा रहा है। जिस प्रकार विचारों की अभिव्यक्ति पर अंकुश लगाया जा रहा है वह देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए शुभ सन्देश नही है। प्रायः देखने मे आरहा है कि सरकार की नीतियों,व्यवस्थाओं ओर घोषणाओं की हकीकत आमजन को बताने को जहां एक ओर राजद्रोह बताया जा रहा है वहीँ दूसरी ओर पत्रकारों और पत्रकारिता को बंदिशों में रखने का प्रयास या यह कहें षड्यंत्र लगातार किया जा रहा है। पिछले 07 सालों में जिस प्रकार देश मे राजद्रोह के मामलों की अधिकता देखी गई उससे यह प्रमाणित हो गया है कि सरकार के खिलाफ उसकी नीतियों के खिलाफ उसकी व्यवस्थाओं के खिलाफ आवाज बुलंद करना अब राजद्रोह है और अपने वक्तव्य पर डटे रहने का अर्थ आयकर विभाग जैसे सरकारों हथियारों से सामना करना है।
गत दिनों देश भर में राजद्रोह के दर्ज मुकदमों के खिलाफ देश की सर्वोच्चय न्यायालय में दस्तक देने पर जो बात सामने आई वह स्वयम सरकार को कटघरे में खड़ा कर रही है।
हाल में भारत के उच्चतम न्यायालय ने राजद्रोह के कानून के विषय पर केंद्र सरकार से प्रश्न किया है कि इस कानून को अब तक निरस्त क्यों नहीं किया गया है जब अधिकांश ऐसे औपनिवेशिक कानूनों को निरस्त करने की प्रक्रिया चलाई जा रही है। ज्ञात हो कि राजद्रोह कानून भी औपनिवेशिक काल में बनाया गया था। आज देश में उसके व्यापक स्तर पर दुरुपयोग की बातें सामने आ रही हैं। राजद्रोह के कानून के दुरुपयोग को लेकर लंबे समय से देश के संविधान और विधि विशेषज्ञों के बीच विवाद रहा है।
उल्लेखनीय है कि इस विषय पर संविधान सभा में भी विवाद हुआ था। और तब सदस्यों ने वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को र्निबधित करने के लिए इसे एक आधार के रूप में शामिल नहीं करने का निर्णय लिया था।

ज्ञातव्य हो कि इस विषय पर संविधान सभा में एक प्रस्ताव प्रस्तुत कर इस अधिकार को र्निबधित करने के लिए कुछ आधारों जैसे परिवाद, बदनामी, मानहानि, सदाचार या नैतिकता के विरुद्ध अपराध, राजद्रोह या राज्य की सुरक्षा पर आघात करने वाले अन्य कार्यो को शामिल करने की बात कही गई थी, लेकिन सदस्यों ने राजद्रोह के विषय पर उसकी दमनकारी प्रकृति के कारण उपेक्षा का दृष्टिकोण अपनाया और अंतत: इसे संविधान में शामिल नहीं किया गया। इसे शामिल नहीं किए जाने वाले कारणों में एक महत्वपूर्ण कारण यह था कि इसे भारत के स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े बड़े नेताओं विशेषकर लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और महात्मा गांधी के विचारों का दमन करने के लिए प्रयोग किया गया था।

एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि राजद्रोह की संकल्पना भारतीय दंड संहिता, 1860 के मूल दस्तावेज में नहीं रखी गई थी। इसे एक संशोधन के जरिये 1870 में धारा 124ए में शामिल किया गया। धारा 124ए के अनुसार, ‘जो कोई बोले गए या लिखे गए शब्दों द्वारा या संकेतों के द्वारा या दृश्यरूपण द्वारा या अन्यथा भारत में विधि द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा या अवमान पैदा करेगा या पैदा करने का प्रयत्न करेगा, असंतोष उत्पन्न करेगा या करने का प्रयत्न करेगा, उसे आजीवन कारावास या तीन वर्ष तक की कैद और जुर्माना अथवा सभी से दंडित किया जाएगा।’
वर्तमान सन्दर्भ में ऐसा कोई भी कानून जो नागरिकों के मौलिक अधिकारों का दमन करता हो वह अंतरराष्ट्रीय मानकों से असंगत होगा। सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या के अनुसार वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को प्रतिबंधित करने के लिए राजद्रोह के कानून को लागू करना असंवैधानिक है।
जिस प्रकार सरकार अपने खिलाफ लोगों की आवाज़ दबाने के लिए एक अस्त्र के रूप में राजद्रोह की धारा का दुरूपयोग करती है उसी प्रकार पत्रकारों और पत्रकारिता पर वज्रपात करने के लिए आयकर विभाग सहित अन्य एजेंसियों का उपयोग कर भय व आतंक का माहौल निर्मित कर रही है जो निंदनीय है। यदि इसी तरह लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ को लहूलुहान किया जाता रहा तो निकट भविष्य में भारत वर्ष में सच बोलना ,लिखना अपराध की परिधि में आजायेगा ओर भारतीय संविधान में प्रदत्त समस्त नागरिक अधिकार स्वतः ही समाप्त होजाएंगे।
@सैयद ख़ालिद क़ैस की कलम से -8770806210