ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के आमंत्रण पर कहा है कि जब तक उसकी सोच में बदलाव नहीं होगा, उसके किसी कार्यक्रम में शामिल होने का कोई औचित्य नहीं है.ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सचिव जफरयाब जिलानी ने कहा, ‘आरएसएस अपनी छवि बदलने के लिए इस तरह के कार्यक्रमों का आयोजन कर रहा है. हमें नहीं लगता कि मुसलमानों को लेकर संघ की बुनियादी सोच में कोई तब्दीली आई है.’
उन्होंने कहा, यह कोई पहला मौका नहीं है, जब मुसलमानों के साथ बातचीत की जा रही है. 1977 में इमरजेंसी में जमात-ए-इस्लामी और आएएसएस दोनों के लोग जेल में थे. वहां दोनों के बीच चर्चाएं हुईं. जेल से निकलने के बाद आरएसएस के लोग जमात-ए-इस्लामी के दफ्तर जाते थे और जमात-ए-इस्लामी के लोग संघ के दफ्तर जाते थे. मगर एक साल तक आपसी मीटिंग का कोई नतीजा नहीं निकला क्योंकि आरएसएस की सोच में कोई बदलाव नहीं आया.
जिलानी ने कहा कि संघ के मंच पर जाने मात्र से समस्या का हल नहीं होना है. लेकिन हम आरएसएस के बुलावे पर कार्यक्रम का विषय वस्तु देखना चाहेंगे. उसके बाद ही इस पर कोई निर्णय होगा. उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का भी उदाहरण दिया. जिलानी ने कहा, आप देखिए आरएसएस ने प्रणब मुखर्जी को मंच पर बुलाया, लेकिन इससे क्या फर्क पड़ा. इससे न तो हिंदुओं को कोई फर्क पड़ा और न ही मुसलमानों पर कोई असर दिखा. उन्होंने कहा कि ऐसे में आमंत्रण देना मात्र या मंच साझा करना कोई समाधान नहीं है, जब तक सोच में बदलाव नहीं आएगा, तब तक ऐसे किसी कार्यक्रम का कोई मतलब नहीं है.
बता दें कि आरएसएस ने अपने व्याख्यान श्रृंखला के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रमुख नेताओं सहित 60 देशों को निमंत्रण भेजने वाला है. बताया जा रहा है कि संघ इस कार्यक्रम का न्योता राहुल गांधी, सीताराम येचुरी सहित क्षेत्रीय नेताओं को भेजेगा. चर्चा यह भी है कि संघ पाकिस्तान को छोड़कर अन्य पड़ोसी देशों को कार्यक्रम में शरीक होने का न्योता भेजने वाला है.