जयपुर। लोकसभा में हाल ही में पारित एससी/एससी एक्ट जिसकी क्रियान्विति सबसे पहले प्रदेश के बाड़मेर जिले में की गई और इसमें आरोपी बनाया गया एक निर्दोष पत्रकार को। कहते हैं कि पुलिस, राजनेता, प्रशासन और संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्ति यदि एक साथ मिल जाये तो होनी को अनहोनी करना उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं फिर चाहे मामला देश के किसी भी राज्य का हो। ऐसे ही एक मामले में बाड़मेर जिले के पत्रकार दुर्ग सिंह राजपुरोहित को शिकार होना पड़ा। बिहार के पटना में दर्ज एक कथित मामले में उनको दोषी बनाकर गिरफ्तार किया गया।
आश्चर्य की बात तो यह है कि दुर्ग सिंह को गिरफ्तार करने पटना की पुलिस नहीं आई लेकिन मामला हाईप्रोफाइल होने के कारण वहां के पुलिस अधिकारी ने बाड़मेर पुलिस अधीक्षक को WhatsApp पर गिरफ्तारी वारंट एवं मुकदमें का नंबर आदि मामूली जानकारियां दी। और मात्र इस आधार पर बाड़मेर पुलिस अधिक्षक महोदय ने तत्परता दिखाते हुए पत्रकार दुर्ग सिंह को शनिवार की सुबह ही अपनी हिरासत में ले लिया। बाड़मेर के तीन पुलिस कर्मचारियों को दुर्ग सिंह के साथ सड़क मार्ग से पटना के लिए रवाना कर दिया गया और उसके परिवार को हिरासत में लेने की सूचना तक नहीं दी गई। बता दे की सोमवार की रात दुर्गसिंह को बिहार पुलिस को सौंपा जा रहा। बाडमेर पुलिस राठौड़ी में उसे 36 घंटे से अधिक अपनी हिरासत में रखे हुए हैं जबकि कानूनन किसी भी व्यक्ति को 24 घंटे से अधिक समय बिना गिरफ्तारी के हिरासत में नही रखा जा सकता। यह मानव अधिकार का खुला उल्लंघन है।
बाड़मेर पुलिस संदेह के घेरे में
बाड़मेर पुलिस ने जिस तरह से दुर्ग सिंह को विश्वास में लेकर बातचीत करने के बहाने उन्हें घर से बुलाया था उन्होंने स्वप्न में भी आशा नहीं की होगी की पुलिस धोखाधड़ी करके उनको बुला रही है। दूसरी ओर मात्र WhatsApp पर भेजे गए गिरफ्तारी वारंट और मुकदमे की जानकारी के आधार पर जिस तरह पुलिस ने उन्हें हिरासत में लिया उसकी आवश्यकता नहीं थी। यह आवश्यकता तो तब पड़ती जब आरोपी देशद्रोह के मामला में लिप्त होता या किसी तरह कीअन्य विध्वंसकारी गतिविधि करने वाला हो तो उसे तत्काल पकड़ना पडता हैं। लेकिन यहां तो स्थिति ही विचित्र सामने आती है, बिहार की पुलिस राजस्थान में एक बार भी नहीं आई और बाड़मेर पुलिस जो अभी तक जिले के सैकड़ों वारंटियों को पकड़ने में सफल नहीं हो पाई है, उसने गिरफ्तारी में तत्परता दिखाते हुए पूर्व रंजिश के चलते पत्रकार दुर्ग सिंह को हिरासत में लिया। मजे की बात तो यह है कि बिहार पुलिस के आये बिना पत्रकार दुर्ग सिंह को पुलिस ने अपने खर्चे पर बिहार भी बाड़मेर पुलिस के साथ रवाना कर दिया। आमजन में यह चर्चा का विषय बना हुआ है…।
क्या है मामला
पटना की SC/ST अदालत में राकेश पासवान नामक व्यक्ति ने एक मामला SC/ ST एक्ट और आईपीसी की धारा 406 में दर्ज कराया, मामले में कोर्ट ने प्रसंज्ञान लेते हुए दुर्ग सिंह के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट निकाला। यहां यह उल्लेख करना जरूरी होगा कि महिला पटना की मेयर है जिनके निवास पर राकेश पासवान नौकरी करता है। इन मेयर का बाड़मेर जिले की एक नेत्री और बिहार में बैठे संवैधानिक पद पर बहुत बड़े पदाधिकारी से भी घनिष्टता है। चर्चा हैं कि इन्हीं लोगों के कहने पर दुर्ग सिंह के खिलाफ यह मामला बनवाया गया है।
विवाद पड़ा भारी
गत अप्रैल माह में बाड़मेर में लव जिहाद का एक मामला सामने आया था। इस मामले में पत्रकार दुर्ग सिंह ने खबरों और सोशल मिडिया पर तत्कालीन पुलिस अधीक्षक की कार्यशैली पर कई सवाल खड़े किए थे, जिसके कारण वह नाराज हो गये थे और उन्होंने पत्रकार को धमकी भरे शब्दों में चेतावनी भी दी थी इसी की परिणीति में यह मामला भी घटित होना सामने आ रहा है। लोगों में चर्चा है कि तत्कालीन पुलिस अधिकारी और नेत्री के घनिष्ठ संबंध होने के कारण ही यह मामला हाई प्रोफाइल रूप देकर बिहार में बनवाया गया। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि बिहार में अति उच्च संविधानिक पद पर बैठे व्यक्ति भी जब बाड़मेर आए तब उनकी यात्रा के दौरान दुर्ग सिंह ने कड़े सवाल जवाब किए थे,जिससे भी वह नाराज थे। घटनाक्रम घटित होने के बाद इस मामलें में उच्च स्तर पर षड्यंत्र रचा गया और दुर्ग सिंह के खिलाफ मामला पटना में दर्ज कराया गया।
उठते सवाल
अभी तक ये सवाल अनसुलझे हैं कि पीड़ित दुर्ग सिंह जो कि अपने जीवन में आज तक बिहार की राजधानी पटना और उसके आस पास भी कभी नहीं गए तो फिर उनके खिलाफ पटना में कैसे मुकदमा दर्ज किया गया। साथ ही यह सवाल भी उठता है कि अगर राकेश पासवान बाड़मेर में आए तो क्यों आये? और उनका दुर्ग सिंह से कैसे संपर्क हुआ ? दुर्ग सिंह का कहना है कि वह राकेश पासवान नामक व्यक्ति को ना तो जानते हैं और ना ही किसी ऐसे व्यक्ति से कभी उनकी मुलाकात हुई है।
दूसरी ओर राकेश पासवान ने न्यायालय में 156 (3) के तहत इस्तगासा दायर कर मामला दर्ज कराया है मामले में दुर्ग सिंह राजपुरोहित को दुर्गेश सिंह बताया है और उनका गिट्टी का व्यवसाय होना बताया गया है जबकि दुर्ग सिंह राजपुरोहित केवल और केवल शुद्ध पत्रकारिता कर रहे हैं उनका या उनके परिवार का इस तरह का कोई व्यापार नहीं है , जिससे कि वह जुड़े हुए हो। मात्र केवल उनका निवास स्थान के पते और उनके मोबाइल नंबर को रिपोर्ट में दिया गया है। इसी के आधार पर उनके खिलाफ न्यायालय ने प्रसंज्ञान लिया है,जिसमें उनका नाम भी दुर्ग सिंह की जगह दुर्गेश सिंह बताया गया है। इस मामले में बताया गया है कि दुर्गेश सिंह पटना के पास राकेश पासवान के गांव में उसके घर अपने तीन साथियों के साथ गत 15 अप्रैल को गए और उसके साथ मारपीट की जातिसूचक शब्दों से संबोधित किया गया और उनको बाड़मेर जबरन ले जाने लगे जब अन्य लोग एकत्रित हुए तो कथित चारों आरोपी अपनी Bolero गाड़ी से वहां से फरार हो गये तीन अन्य व्यक्तियों के नाम नहीं बताए गए हैं।
यह भी संदिग्ध लगता है कि बिहार के किसी गांव में बाहरी राज्य के लोग जाकर वहां के स्थानीय निवासी से मारपीट कर अपमानित करें और वहां के लोग बिना प्रतिक्रिया व्यक्त किए उन्हें भागने का मौका दे। यह सब घटनाक्रम दर्शाता है कि दुर्ग सिंह राजपुरोहित निडर और निर्भिक पत्रकारिता करते हैं, जिसको कुचलने के प्रयास में उक्त सब कुछ किया गया है। दुर्ग सिंह राजपुरोहित ने आज शाम आई एफ डब्ल्यू जे के पदाधिकारियों को मोबाइल पर बताया की जेल मे उनकी जान को खतरा है और बदमाशों के माध्यम से उनके साथ अनहोनी घटना कारित कराई जा सकती हैं।
मानव अधिकार का खुलम खुला प्रकरण है यह मामला
अगर 202 crpc के तहत मामला दर्ज है तो चूंकि आरोपी पटना से बाहर था तो पहले जांच होनी चाहिए थी।
अखिल भारतीय पत्रकार सुरक्षा समिति ने किया विरोध
इस पूरे मामले के संज्ञान में आनें के बाद अखिल भारतीय पत्रकार सुरक्षा समिति भारत ने इस घटना की कड़ी आलोचना करते हुये इस घटना को क़ानून का दुरूपयोग बताया । समिति की मप्र इकाई संयोजक सरोज जोशी ने गृह मन्त्री भारत सरकार की और ध्यानाकर्षित करते हुये पीड़ित पत्रकार के साथ हुये अन्याय पर चिंता जताई ।