पंकज शुक्ला, 9893699941
शोभा की सुपारी का अर्थ होता है दिखावटी बन कर रह जाना। मप्र में विधानसभा चुनाव में भाजपा का मुकाबला करने के लिए युवाओं की टीम उतारने के कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का मिशन भी शोभा की सुपारी बन कर ही रह गया है। टैलेंट हंट के माध्यम से प्रवक्ता चुने गए ये युवा नेताओं गुटों, खेमों और पसंद-नापसंदगी के बीच फंस कर रह गए हैं। इन्हें प्रदेश कांग्रेस ने अपने प्रवक्ता का पद दिया है और उधर जिला कांग्रेस इन्हें अपने बराबर भी नहीं आंकती। मुश्किल यह है कि प्रदेश से काम नहीं मिलता और जिले में मान नहीं मिलता। भाजपा के विरोध में अपना एकल राग बजा रहे इन प्रवक्ताओं के अलावा कांग्रेस में करीब पचास प्रवक्ता और हैं। मगर सभी की गतिविधियां नेताओं और राजधानी के इलेक्ट्रानिक मीडिया के इर्दगिर्द ही हैं। मीडिया प्रभारी बदले जाने के बाद भी इन प्रवक्ताओं की ‘सुस्ती’ नहीं टूटना कांग्रेस के लिए कमजोर कड़ी बनती जा रहीहै।
हाल ही में एक सर्वे में दिखी अच्छी स्थिति और मैदानी सभाओं में लोगों की भीड़ देख कांग्रेस नेताओं के मुखमंडल पर प्रसन्नता है मगर रणनीतिकार जानते हैं कि अभी दिल्ली दूर है। इतने प्रयासों से मैदान नहीं जीता जा सकता। तभी तो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ बार-बार समय कम होने तथा कई काम शेष रहने की बात करते हैं। ऐसे मुकाबले में जब भाजपा ने सोशल मीडिया, मीडिया और युवाओं को अपनी ताकत बना लिया है कांग्रेस ने भी इस मोर्चे पर किलेबंदी की है। पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी की मंशा थी कि प्रगतिशील और विचारवान युवाओं को पार्टी का चेहरा बनाया जाए तो देश भर में युवा टैलेंट हंट शुरू किया गया। मप्र में इलेक्ट्रानिक मीडिया, सोशल मीडिया और जमीनी स्तर पर कांग्रेस तेजतर्रार युवा पेशेवरों और युवा नेताओं को तलाश किया गया तथा ऐसे करीब 750 आवेदकों में से डेढ़ दर्जन युवाओं को प्रवक्ता बनाया गया।
इनके अलावा प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने मीडिया सेल का गठन किया। विभिन्न नेताओं की पसंद को ध्यान में रखते हुए प्रदेश कांग्रेस कार्यालय के मीडिया विभाग में 70 से अधिक प्रवक्ता हैं। जिला कांग्रेस कमेटियों के अपने प्रवक्ता भी हैं। यानि 51 जिलों में कम से कम 51 प्रवक्ता और। अब देखा जाए तो ये 125 प्रवक्ताओं की फौज कर क्या रही है? कांग्रेस में अपना अस्तित्व बनाए रखने तथा टीवी की बहसों में अपना चेहरा चमकाने का जतन, बस। कमलनाथ ने वरिष्ठ नेता माणक अग्रवाल को मीडिया विभाग का प्रभारी बनाया था जिन्हें हटा कर महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष शोभा ओझा को मीडिया विभाग की जिम्मेदारी दी गई।
शोभा ओझा ने आते ही प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में प्रवक्ताओं के साथ नियमित बैठकों तथा पत्रकार वार्ताओं का दौर आरंभ किया। इस बैठक में मुद्दों पर चर्चा कर हमले की रणनीति पर विचार होता है। मगर इस बैठक का दायरा भी भोपाल में उपलब्ध वरिष्ठ प्रवक्ताओं के साथ चर्चा तक सिमट कर रह गया है। जिन्हें टैलेंट हंट में चुन कर मैदान में उतारा गया वे और उनके जैसे प्रदेश के दूसरे हिस्सों के प्रवक्ता प्रतीक भर बन कर रह गए हैं। इन जैसे प्रवक्ताओं की यह विडंबना है कि इन्हें इनके ज्ञान के आधार पर चुन कर प्रदेश स्तर पर प्रवक्ता का पद मिला है तो ये जिले के नेताओं के कोपभाजक बन गए।
मीडिया प्रभारी बदले जाने और दिल्ली से शोभा ओझा के आने से कुछ उम्मीद थी कि धीमी गति वाला प्रचार विभाग फर्राटा भरेगा मगर बात कुछ बनती नहीं दिखाई दे रही। वे अपने अनुसार टीम को साधने का प्रयत्न कर रही लेकिन अधिकांश उनकी रेंज से दूर हैं। संभवत: वे दिल्ली के राजनीतिक पैटर्न को भोपाल में आजमाने की चूक कर रही हैं। भोपाल के इलेक्ट्रानिक मीडिया को साधने के अलावा यह भी देख जाना चाहिए कि भोपाल में बनाई जा रही रणनीति जिलों में कारगर हो भी रही है या नहीं। ऐसा न हो कि विरोधी के खिलाफ उपयोग होने के पहले ही ‘असला-बारूद’ निर्णयों की नमी से बर्बाद हो जाए। यह वरिष्ठ नेताओं की चिंता का विषय होना चाहिए, खास कर तब जब कांग्रेस का मुकाबला एक कैडर वाली और कई आनुषांगिक संगठनों वाली पार्टी से है। कांग्रेस के युवा प्रवक्ताओं के पास विचार है, भाजपा से संघर्ष का जज्बा है, मगर राह नहीं सूझ रही। यदि इन्हें यह राह न मिली तो संभव है कि कुछ दिनों बाद ये भी कांग्रेस का प्रचार करने की बजाय किसी नेता के पिछलग्गू बने नजर आएं।