देश में सुरक्षित नहीं रही निष्पक्ष पत्रकारिता

डॉक्टर सैय्यद खालिद कैस भोपाल मध्य प्रदेश

विगत कई वर्षों से जिस तरह स्वतंत्र या यह कहें निष्पक्ष पत्रकारिता पर हमले दिखाई दे रहे हैं, वह इस बात का प्रमाण है कि देश आज जिस दौर से गुज़र रहा है उसमें निष्पक्ष पत्रकारिता को सुरक्षित कहना अतिशयोक्ति होगी। बीते कई वर्षों से जिस प्रकार के प्रहार निष्पक्ष पत्रकारिता पर हुए वह निश्चित ही चिंतनीय रहे। एक दो नहीं, सैकड़ों ऐसे मामले सामने आए जिनके बाद सत्ता के खिलाफ लिखना और बोलना गुनाह माना गया और निष्पक्ष पत्रकारिता को कुचलने का प्रयास किया गया। गत दिनों दिल्ली में स्वतंत्र मीडिया समूह न्यूजक्लिक पर भारत सरकार की कार्रवाई और इसके संस्थापक-संपादक प्रबीर पुरकायस्थ की गिरफ्तारी की पहली वर्षगांठ को लेकर प्रेस क्लब ऑफ इंडिया दिल्ली में एक सभा का आयोजन किया गया। प्रेस कॉन्फ्रेंस और सार्वजनिक बैठक का आयोजन पीसीआई के सहयोग से दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट (DUJ), प्रेस एसोसिएशन (PA), इंडियन वूमेन प्रेस कॉर्प्स (AWPC) और केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट द्वारा किया गया। इस आयोजन में एक स्वर में सभी वक्ताओं ने निष्पक्ष पत्रकारिता पर हो रहे हमलों पर चिंता जताई।

ज्ञात हो कि गत दिनों प्रेस कौंसिल ऑफ इंडिया की अध्यक्षा द्वारा एक आयोजन में अपने उद्बोधन में कहा था कि एक विश्वसनीय लोकतांत्रिक समाज सुनिश्चित करने के लिए मीडिया को अपने कर्तव्यों को सच्चाई और जिम्मेदारी से निभाना चाहिए और राह में आने वाली प्रत्येक चुनौती का समाधान करना चाहिए। लेकिन उसके विपरीत परिस्थितियों में जब मीडिया अपनी जिम्मेदारी और कर्तव्यों का निर्वाहन करता है तो उसको दमनकारी नीति का सामना करना पड़ता है। सरकार नहीं चाहती कि उसकी नीतियों का विरोध हो, सरकार नहीं चाहती निष्पक्ष पत्रकारिता समाज को आईना दिखाए, सरकार नहीं चाहती सच उजागर हो। निष्पक्ष पत्रकारिता, स्वतंत्र पत्रकारिता के प्रदर्शन से घबराई सरकार अपनी जिम्मेदारी एजेंसियों के बल पर कलम के सिपाहियों का दमन करना चाहती है, दमन करती है, उनको कुचलना चाहती है। जहां एक ओर देश की सर्वोच्च न्यायालय निष्पक्ष पत्रकारिता की रक्षा करती है वहीं सरकार सर्वोच्च न्यायालय के दिशा निर्देश के विपरीत आचरण करती है। गत दिनों सर्वोच्च न्यायालय ने निष्पक्ष पत्रकारिता की रक्षा करते हुए कहा कि लोकतांत्रिक देशों में अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता का सम्मान किया जाता है। पत्रकारों के अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत संरक्षित हैं। केवल इसलिए कि किसी पत्रकार के लेखन को सरकार की आलोचना के रूप में देखा जाता है, लेखक के खिलाफ आपराधिक मामला नहीं चलाया जाना चाहिए। लेकिन सरकार फिर भी निष्पक्ष पत्रकारिता पर प्रहार से बाज़ नहीं आती।

यह जगजाहिर है कि स्वस्थ लोकतंत्र को आकार देने में मीडिया महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह लोकतंत्र की रीढ़ है। मीडिया दुनिया भर में होनेवाले विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक गतिविधियों से अवगत कराता है। यह एक दर्पण की तरह है, जो हमें दिखाता है या हमें सच्चाई और कठोर वास्तविकताओं को दिखाने का प्रयास करता है।

मीडिया भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में कमियों को उजागर करता है, जो आखिरकार सरकारों को कमियों की रिक्तता को भरने और एक प्रणाली को अधिक जवाबदेह, उत्तरदायी और नागरिक-अनुकूल बनाने में मदद करता है। मीडिया के बिना एक लोकतंत्र पहियों के बिना वाहन की तरह है। सूचना प्रौद्योगिकी की उम्र में हम जानकारी के साथ बमबारी कर रहे हैं। हम सिर्फ एक माउस के एक क्लिक के साथ विश्व की घटनाओं की नब्ज प्राप्त करते हैं। सूचना के प्रवाह में कई गुना बढ़ गया है। राजनीति और समाज में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार को उजागर करने में प्रौद्योगिकी और मानव संसाधन (पत्रकार) के सही मिश्रण ने एक भी पत्थर नहीं छोड़ा है। ऐसे में निष्पक्ष पत्रकारिता पर हो हमले लोकतांत्रिक व्यवस्था पर चोट है जो स्वतंत्र पत्रकारिता का क्षरण कर रहे हैं।