वेलेंटाइन डे अब दूसरे त्यौहारों की भांति एक परंपरा का रूप ले चुका है…
फरवरी माह आते ही लोगों को सात से चौदह तारीख के बीच मनाया जाने वाला वेलेंटाइन डे का बराबर याद रहता है। युवा पीढ़ी तो इसके लिए बेहद उत्साहित रहती है। भारत में अनगिनत त्योहार होने के बावजूद वेलेंटाइन डे भी साल 1992 के बाद से अब तक खूब मनाया जाता है यद्यपि यहां इसका विरोध भी होता है पर वेलेंटाइन डे मनाने का प्रचलन भारत में इतना पैर पसार चुका है कि चंद लोगों के विरोध करने से कोई असर नहीं होता। अब तो ऐसा हो गया है कि वेलेंटाइन डे भी दूसरे त्यौहारों की भांति एक परंपरा का रूप ले चुका है। जिसकी शायद जरूरत नहीं थी पर ऐसा लगता है कि वेलेंटाइन डे का प्रचार और मार्केटिंग विकसित देशों यूरोप और अमेरिका से जिस अंदाज में होता रहा, साल दर साल इसे मनाने वालों की संख्या बढ़ती गयी और आज इस मुकाम पर ऐसा मालूम पड़ता है कि लगभग सम्पूर्ण विश्व वेलेंटाइन डे मनाने लगा है। जिसे हिन्दी में प्रेम दिवस भी कहते हैं। अच्छा, बहुत पहले यह सिर्फ एक दिन 14 फरवरी को ही मनाया जाता था, मुझे याद है 25 साल पहले जब संचार के साधन ज्यादा उपलब्ध नहीं थे तब वेलेंटाइन डे पर कुछ प्रेमी युगल व एक्का दुक्का साधारण लोग प्रेम का इजहार करते या मनाते हुए पाए जाते थे और प्रेम का इजहार करने की तमाम सामग्रियां बाजार में नजर नहीं आती थी पर अब तो इसके वृहद स्तर पर मार्केटिंग और बढ़ चढ़ कर सोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया, समाचार चैनलों औऱ तो और, सीरियलों के माध्यम से भी जो भारी प्रचार होता गया, उससे एक दिन मनाया जाने वाला वेलेंटाइन डे अब एक सप्ताह का उत्सव बन गया जिसके तहत प्रेम का इजहार करने के लिए उपलब्ध आधुनिक सामग्रियों के मुताबिक अलग अलग दिन को एक एक नाम दे दिया गया और उन 7 दिनों में उन सामग्रियों की बाजार में भारी मांग के कारण पब्लिक भीड़ में शामिल होने को आमादा हैं और इस तरह वेलेंटाइन डे ने दुनिया में अपना परचम लहराया है। भारतीय युवा पीढ़ी अब वेलेंटाइन डे के साथ पश्चिमी सभ्यता लिव इन रिलेशनशिप जो प्रेमी युगलों को बिना शादी के बंधन में बंधे सब कुछ करने में स्वतंत्र रखता हैं को भी बेझिझक अपना रही है। और वर्तमान संदर्भ में देश के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी मान्यता प्राप्त होने के पश्चात इसका घृणित रूप भी उजागर हो रहा है। अब तो इस प्रचलन पर रोक लगा पाना लगभग असंभव सा लगता है देर भी बहुत हो चुकी है। इसके जिम्मेदार संपूर्ण भारतीय समाज व शासन है। इसलिए युवा पीढ़ी को तो बिल्कुल भी दोष नहीं दिया जा सकता। सीधी सी बात है अब वो दिन आ चुका है जब हमारे पवित्र शादी के सात फेरों की अहमियत अत्यंत धूमिल होती जा रही है। क्योंकि अब भारत में भी वेलेंटाइन डे के साप्ताहिक उत्सव के फलस्वरुप तमाम तामझाम वाले प्रेम के दिखावे में समाज वो सब कुछ करने की इजाजत देता है जिन्हें पहले सात फेरों के बाद ही समाज में स्वीकार किया जाता था। समाज में व्याप्त इस कुसंस्कृति के कारण विवाह रूपी संस्कार की महत्वता पर प्रभाव पड़ा है।खैर जो सो है, हमें अपने भारत की पवित्र परंपराओं को कैसे भविष्य के लिए सुरक्षित रखना है उसकी जिम्मेदारी हर एक नागरिक की है, समाज का ये नैतिक दायित्व बनता है कि कुसंस्कारों के वायरस को समाज में फैलने से रोके ताकि दूसरी इस तरह विदेशी कुसंस्कार हम पर हावी न हो।
शशि दीप ©✍
विचारक/ द्विभाषी लेखिका
मुंबई
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