आखिर सच्चाई छुप नहीं सकती…

जब भारत मां चीख रही है चिल्ला रही है तो मैं कैसे आपका ध्यान भटकाने की कोशिश कर सकती हूं, मैं कैसे आपको किसी और मुद्दे पर बात करके बहलाने की कोशिश करूँ। ऐसा करने से क्या आप मुझे ये नहीं कहेंगे “इतना ही सकारात्मक विचार है तो किसी एकांत में प्रकृति के सानिध्य में रहो, एक जागरूक लेखिका के किरदार में सच्चाई को छुपाने की कशमकश महज ढोंग सा प्रतीत होता है। कहाँ गई तुम्हारी नैसर्गिक शैली, ये दिखावा कहाँ से आ गया तुममे, अपने अंदाज को बरकरार रखो, तुम्हें स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अधिकार है।” अंतरात्मा तो दुखी है कि इस माहौल में किसको क्या कहें। मणिपुर की हालत से आज कौन वाकिफ़ नहीं है, हिंसा व आगजनी के बीच बुधवार 19 जुलाई को जो दिल दहलाने वाला वीडियो वायरल हुआ उसने जनता को बुरी तरह से झकझोर कर रख दिया है। एक महिला होने के नाते मेरी रूह कांप गई और यही हाल मेरे आस-पास की सभी महिलाओं का है पर क्या कहें। ये राजनीति का मसला नहीं है, ये जात पात का मसला नहीं है, ये इंसानियत की रक्षा, न्याय-अन्याय को साथ देने का मसला है। एक बड़े चिंतक ने लिखा कि “मणिपुर में हुए कुकृत्य पर जो दो शब्द नहीं लिख पाए वैसी महिलाएं हमारे फ्रेंड लिस्ट से बाहर निकल जाएं।” मैंने कहा भाई साब! जब परिवार, समाज या देश में महिला के कुछ ऊपर अति होने लगता है तो महिलाएं खामोश हो जातीं हैं, पर ये तूफान के पहले की खामोशी होती है। लोकतांत्रिक देश में जनता तो पूछेगी ही कि इतनी अशांति के बीच, जनता की चीख पुकार के बीच कोई ठीक से बताता क्यों नहीं कि इस घटना को नज़रंदाज क्यों किया गया। आखिर सच्चाई छुप नहीं सकती बनावट के उसूलों से, खुशबू आ नहीं सकती कभी कागज़ के फूलों से। जनता जानती है, कई दिल तोड़ने के बहाने जानती है। 4 मई को मणिपुर को दो बहनों को निर्वस्त्र करके सड़क पर घुमाया गया, सामूहिक बलात्कार किया गया उनके शरीर को नोचते घसीटते उनकी इज्ज़त को सरेआम नीलाम किया गया वे चीखती रहीं चिल्लाती रहीं पर उन राक्षसों की दरिंदगी 2 महीने बाद सामने आयी। तब तक तो उन्होंने अपने बचाव के सारे इंतजाम कर लिए होंगे। प्रधानमंत्री जी बोले ये 140 करोड़ भारतीयों को शर्मसार कर देने वाली घटना है। पर मणिपुर के मुख्यमंत्री जी जानकारी दिए कि ऐसी सैकड़ों घटनाओं का FIR दर्ज रहता है। मतलब उन्हें पता है कि यह तो देश में आम बात है वो तो वीडियो वायरल हो गया इसलिए घटना जनता के सामने आ गयी वरना, ये भी दब जाती। पर क्या उस घटना के प्रत्यक्षदर्शियों की भी मति भ्रष्ट हो गयी थी? क्यों फौरन FIR नहीं हुआ, क्यों 49 लग गए, क्यों 78 वें दिन गिरफ्तारी हुई? क्या अपराधियों ने कोई दिन तिथि बता रखा था, शासन व्यवस्था को? खैर अब हमारे चिल्लाने से तो कुछ होना नहीं है, पर बात साफ़ है कि जब देखो तब हर सभ्यता में जब जब किसी भी बड़े मुद्दे को लेकर हिंसा भड़की, युद्ध हुआ और एक समुदाय/पक्ष को दूसरे समुदाय को परास्त करना है तो औरतों को ही निशाना बनाया जाता है। कितनी घिनौनी बातहै। महाभारत से लेकर आज तक यही चलता आ रहा है। मणिपुर में जो भी हुआ, वह समस्त मानव जाति, लोकतंत्र और इस सभ्यता के लिए एक काला अध्याय है। लिखकर होगा क्या, बोलकर होगा क्या सारा मामला इतना पेचीदा, इतना गंभीर इतना अमानवीय कृत्यों व मानसिकता का प्रदर्शन है कि जितनी निंदा की जाए कम है। भगवान कृष्ण सबको सद्बुद्धि दे।

 

शशि दीप ©✍

विचारक/ द्विभाषी लेखिका

मुंबई

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