कीमत इतनी ख़ामोशी से बढ़े की महंगाई शोर मचा दे: मिस्टर टमाटर

अभी तो देश भर में टमाटर की आसमान छू रही कीमत राष्ट्रीय मुद्दा बन चुका है। ऐसा लग रहा है मानो टमाटर की आत्मा अंदर से प्रफुल्लित मन से नाच रहा हो “देखो आज मेरी कीमत का अंदाजा हुआ लोगों को और कह रहा हो कि मेहनत इतनी ख़ामोशी से करो कि सफलता शोर मचा दे।” टमाटर के भाव को लेकर सभी अंदर से त्रस्त हैं पर ऊपर से मुस्करा रहे हैं और बहुत से लोग सब्जी मंडी में विक्रेताओं पर अपनी भड़ास निकाल रहे हैं, उन पर झल्ला रहे हैं। अरे भाई उन विक्रेताओं की क्या गलती है उन्हें गाली गलौच क्यों करते हो। पर क्या करे आम नागरिक कहीं का गुस्सा कहीं निकालते हैं। महानगरों में टमाटर 120- 140 रुपये प्रति किलो का रेट चल रहा है। बाकी सभी जगहों में भी टमाटर के बढ़े रेट से सभी परेशान हैं तो आवाज तो उठेगी ही। देश की जनता जानना चाहती है आखिर टमाटर की कमी से सब्जियों का जायका कब तक प्रभावित रहेगा? यह स्थिति आयी कैसे? सप्लाई और डिमांड का गणित कैसे बिगड़ गया? आम जनता इस महंगाई को चुपचाप झेल रही है और सोशल मीडिया में मीम्स का आदान-प्रदान करके अपने अंदर के सवालों को अस्थाई रूप से सकारात्मकता की चादर ओढ़ा रही है पर अफसोस उन्हें कोई ठोस जानकारी देकर शांत कराने वाला नहीं। हालाँकि ऊपरी तौर पर ये तो सभी को अंदाजा है कि बारिश के कारण सब्जियों की फसल को खासी नुकसान हुआ है जिसके कारण दूसरे राज्यों से आने वाली सब्जियां अब महंगी हो गई है। और किसानों ने अभी खरीफ फसल लगाया है जिसे तैयार होने में अभी वक़्त लगेगा। टमाटर के साथ-साथ और सब्जियों के दाम बढ़े हैं पर सब्जियों का जायका बढ़ाने वाले टमाटर की जरूरत हर घर में लगभग रोज होती है, ये आलू प्याज की तरह प्रतिदिन उपयोग में आने वाली चीज है इसलिए इनके दाम बढ़ने से हाहाकार मचना स्वाभाविक है। अब ग्राहक जब सब्जियां लेने जा रहे हैं तो सब्जी व्यवसायी बताते हैं कि आपूर्ति की कम हो रही है कोई कहता है चक्रवाती तूफान के कारण फसल नुकसान हुआ जिसके कारण कीमतें आसमान छू रही है पर जनता इस बात से भी अनभिज्ञ नहीं कि हमारे देश में कालाबाजारी इसके ज़र्रे ज़र्रे में व्याप्त है जिसे रोकने के लिए ठोस कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। बढ़ती जनसंख्या के साथ चीजों की पर्याप्त आपूर्ति मुहैया कराना और कालाबाजारी रोकना बेहद जरूरी है पर हकीकत यही है कि आए दिन महंगाई की समस्या लोगों को चिंतित, भ्रमित व उलझाए रखती है। पता नहीं सरकार की नीतियों में ऐसी क्या कमी है या उनकी क्या मजबूरी है वो तो राम ही जाने। क्यों बड़े व्यापारी जो मंडी में माल आते ही भारी मात्रा में खरीदकर अपने गोदामों में भर लेते हैं फिर दुगने दाम पर बेचते हैं उन पर अंकुश नहीं लगा पाती। व्यापारी कैसे सरेआम कालाबाजारी कर रहे हैं, कैसे नोट छाप रहे हैं और जनता रो रही है अर्थव्यवस्था तरस नहस है कालाबाजारी की समस्या तेजी से बढ़ रहे है और हम सोशल मीडिया में महज मीम्स में दिल बहलाने के अलावा कुछ नहीं कर पा रहे हैं। आखिर क्यों? रसोई में तैयार भोजन से सभी गरीब अमीर पेट भरते हैं और पेट की बात आती है तो वह हर मनुष्य की सबसे बड़ी प्राथमिकता बन जाती है। क्योंकि यह सीधे मनुष्य की रोजी-रोटी को प्रभावित करता है। ऐसी स्थिति में जनता संवैधानिक पदों पर आसीन महानुभावों से अपेक्षा रखती है कि वर्तमान समस्याओं की ओर ध्यान केंद्रित करते हुए उनके निवारण के लिए जल्द से जल्द नीतियाँ तैयार करे ताकि भविष्य में ऐसी तकलीफें न आए। जय हिंद जय भारत

शशि दीप ©✍
विचारक/ द्विभाषी लेखिका
मुंबई
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