गरीबी, महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दे से भटका मिलने का प्रयास समान नागरिक संहिता ?
सैयद खालिद कैस
पत्रकार भोपाल।
पीएम मोदी ने मंगलवार को एक कार्यक्रम में समान नागरिक संहिता को लागू करने पर जोर दिया। पीएम के इस बयान पर विरोधी दलों कांग्रेस, डीएमके, एआईएमआईएम ने भाजपा सरकार को घेरा। इससे पहले ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और आदिवासी समन्वय समिति जैसे संगठनों ने यूसीसी लागू करने पर सरकार की मंशा पर सवाल खड़े किए और कहा कि इससे उनकी संस्कृति को खतरा को सकता है।
आजादी के बाद पहले जनसंघ और अब बीजेपी के मुख्य तीन एजेंडा रहे हैं. इनमें पहला जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 को हटाना था. दूसरा, अयोध्या में राममंदिर का निर्माण कराना और तीसरा पूरे देश में समान नागरिक संहिता लागू कराना है. पहले दो एजेंडा पर काम खत्म करने के बाद अब बीजेपी यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने पर जोर दे रही है। अब क्योंकि भाजपा को 2024के चुनाव के लिए नई जमीन चाहिए जिसके बल पर चुनाव लडा जाए तो उसने अपने पिटारे से समान नागरिक संहिता को निकाल लिया।
UCC लागू होने पर हिंदू कोड बिल, शरीयत कानून, विशेष विवाह अधिनियम जैसे कानूनों की जगह लेगा। समान नागरिक कानून तब सभी नागरिकों पर लागू होगा चाहे उनका धर्म कुछ भी हो। इसके समर्थकों का तर्क है कि यह लैंगिक समानता की बढ़ावा देने, धर्म के आधार पर भेदभाव की कम करने और कानूनी प्रणाली की सरल बनाने में मदद करेगा। वहीं, दूसरी ओर विरोधियों का कहना है कि यह धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करेगा और व्यक्तिगत कानूनों को प्रत्येक धार्मिक समुदाय के विवेक पर छोड़ देना चाहिए।
कई राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक संगठन UCC लागू होने का विरोध कर रहे हैं। कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने एक बयान में कहा कि पीएम मोदी को पहले देश में गरीबी, महंगाई और बेरोजगारी के बारे में जवाब देना चाहिए। वह मणिपुर मुद्दे पर कभी नहीं बोलते। पूरा राज्य जल रहा है। वह सिर्फ इन सभी मुद्दों से लोगों का ध्यान भटका रहे हैं।
अन्य विरोधी दल डीएमके ने कहा कि सभी जातियों के लोगों को मंदिरों में प्रार्थना करने की अनुमति होनी चाहिए। अनुसूचित जाति और जनजाति सहित देश के प्रत्येक व्यक्ति को देश के किसी भी मंदिर में पूजा करने की अनुमति होनी चाहिए। डीएमके के टीकेएस एलंगोवन ने कहा कि हम UCC इसलिए नहीं चाहते क्योंकि संविधान ने हर धर्म को सुरक्षा दी है।
गौर तलब हो कि केंद्र सरकार ने पहले भी 21वें विधि आयोग से यूसीसी पर सुझाव मांगे थे. इस पर आयोग ने समाज के सभी वर्गों पर समान नागरिक संहिता लागू करने की जरूरत की जांच की थी. इस विधि आयोग ने 2018 में ‘पारिवारिक कानून में सुधार’ नाम से सुझाव पत्र प्रकाशित किया. इसमें कहा गया था कि अभी देश में समान नागरिक संहिता की जरूरत नहीं है. अब 22वें विधि आयोग का कहना है कि इस सुझाव पत्र को जारी किए हुए तीन साल से ज्यादा हो चुका है. लिहाजा, इस मामले की अहमियत पर अदालती आदेशों को ध्यान में रखते हुए फिर विचार करना बहुत जरूरी है। केंद्र सरकार के इस चुनावी शगूफे पर देश में इस पर जमकर बहस चल रही है विधि आयोग ने सुझाव आमंत्रित किए है।
UCC अर्थात समान नागरिक संहिता, समान कानूनों की एक संहिता बनाई जा रही है. जो सभी नागरिकों पर लागू होगी. भले ही वे किसी भी धर्म के हों. इसमें शादी, तलाक, बच्चा गोद लेने, विरासत और उत्तराधिकार से जुड़े कानून शामिल होंगे।
भारत में अधिकतर व्यक्तिगत कानून धर्म के आधार पर तय किये गए हैं। हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध धर्मों के व्यक्तिगत कानून हिंदू विधि से संचालित किये आते हैं, वहीं मुस्लिम तथा ईसाई धर्मों के अपने अलग व्यक्तिगत कानून हैं। मुस्लिमों का कानून शरीअत पर आधारित है, जबकि अन्य धार्मिक समुदायों के व्यक्तिगत कानून भारतीय संसद द्वारा बनाए गए कानून पर आधारित हैं।
समान नागरिक संहिता का मुद्दा किसी सामाजिक या व्यक्तिगत अधिकारों के मुद्दे से हटकर एक राजनीतिक मुद्दा बन गया है, इसलिये जहाँ एक ओर कुछ राजनीतिक दल इस मामले के माध्यम से राजनीतिक तुष्टिकरण कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कई राजनीतिक दल इस मुद्दे के माध्यम से धार्मिक ध्रुवीकरण का प्रयास कर रहे हैं।
हिंदू या किसी और धर्म के मामलों में बदलाव उस धर्म के बहुसंख्यक समर्थन के बगैर नहीं किया गया है, इसलिये राजनीतिक तथा न्यायिक प्रक्रियाओं के साथ ही धार्मिक समूहों के स्तर पर मानसिक बदलाव का प्रयास किया जाना आवश्यक है।
सामासिक संस्कृति की विशेषता को भी वरीयता दी जानी चाहिये क्योंकि समाज में किसी धर्म के असंतुष्ट होने से अशांति की स्थिति बन सकती है।
समान नागरिक संहिता,का देश के अल्प संख्यक वर्ग के द्वारा विरोध के स्वर जारी है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अहम बैठक कर इसका विरोध ऐसे समय में किया जब भाजपा के इस मुद्दे पर समर्थन के ऐलान के स्वयं प्रधान मंत्री द्वारा भोपाल में संपन्न कार्यक्रम में समान नागरिक संहिता की वकालत कर दी। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अपनी ओर से आपत्ति जताते हुए इसको मुस्लिम तुष्टिकरण नीति बताया ।अल्पसंख्यक समुदाय विशेषकर मुस्लिम समाज समान नागरिक संहिता का जबरदस्त विरोध कर रहे हैं। संविधान के अनुच्छेद 25 का हवाला देते हुए कहा जाता है कि संविधान ने देश के सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार दिया है।
समान नागरिक संहिता लागू कराने पर अडिग समाज इस बार से अनभिज्ञ है कि इस संहिता से मुसलमानों के साथ-साथ हिंदुओं की सामाजिक ज़िंदगी को प्रभावित करेगी। भारत में समान नागरिक संहिता लागू करना कठिन है।
भारत जैसे बेहद विविध और विशाल देश में समान नागरिक क़ानून को एकीकृत करना बेहद मुश्किल है। उदाहरण के तौर पर देखें तो हिंदू भले ही व्यक्तिगत क़ानूनों का पालन करते हैं लेकिन वो विभिन्न राज्यों में विभिन्न समुदायों की प्रथाओं और रीति-रिवाजों को भी मानते हैं। झारखंड से लेकर पूर्वोत्तर के आदिवासी समूह अपनी-अपनी चिंताओं के चलते समान नागरिक संहिता का विरोध कर रहे हैं। 25 जून को झारखंड में 30 से भी ज्यादा आदिवासी संगठनों ने बैठक की. वे आदिवासी समन्वय समिति(ASS) के बैनर तले साथ आए थे. उन्होंने कहा कि UCC आने से कई जनजातीय परंपरागत कानून और अधिकार कमजोर हो जाएंगे। नागालैंड बेपटिस्ट चर्च काउंसिल (NBCC) और नागालैंड ट्राइबल काउंसिल (NTC) ने भी UCC को लेकर चिंताएं जताई हैं। नागालैंड बेपटिस्ट चर्च काउंसिल ने कहा कि UCC अल्पसंख्यकों के अपना धर्म पालन करने के अधिकार का उल्लंघन करेगा।वहीं नागालैंड ट्राइबल काउंसिल ने दावा किया कि UCC संविधान के अनुच्छेद 371 A के प्रावधानों को कमजोर करेगा। इसमें कहा गया है कि, नागाओं की धार्मिक और सामाजिक प्रथाओं, नागा परंपराओं, कानून और प्रक्रिया से जुड़े मामलों में संसद का कोई अधिनियम राज्य पर लागू नहीं होगा।मेघालय की खासी हिल्स ऑटोनोमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल(KHADC) ने 24 जून को एक प्रस्ताव पारित किया. खासी हिल्स ऑटोनोमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल के मुख्य कार्यकारी सदस्य पाइनिएड सिंग सियेम ने कहा कि, UCC खासी समुदाय के रीति-रिवाजों, परंपराओं, प्रथाओं, शादी और धार्मिक स्वतंत्रता जैसे मुद्दों को प्रभावित करेगा। खासी जैसे आदिवासी समुदायों को संविधान की छठी अनुसूची में विशेष अधिकार मिले हुए हैं। खासी एक मातृसत्तात्मक समुदाय है. यहां परिवार की सबसे छोटी बेटी को पारिवारिक संपत्ति का संरक्षक माना जाता है. और बच्चों को उनकी मां का उपनाम दिया जाता है. मेघालय की दूसरे दोनों समुदाय गारो और जयंतिया भी मातृसत्तात्मक हैं।
आदिवासी बाहुल मिज़ोरम में UCC का विरोध विधि आयोग के सुझाव मांगने से पहले से जारी था, यहां की विधानसभा ने फरवरी 2023 में ही एक प्रस्ताव पारित कर UCC लागू करने से जुड़े किसी भी कदम का विरोध करने का संकल्प लिया था।
झारखंड में रविवार को 30 से अधिक आदिवासी संगठनों के प्रतिनिधि समान नागरिक संहिता (UCC) पर चर्चा के लिए एकत्रित हुए। बैठक में फैसला हुआ कि वे विधि आयोग से समान नागरिक संहिता (UCC) के विचार को वापस लेने का आग्रह करेंगे।
आदिवासी समन्वय समिति (एएसएस) के बैनर तले इकठ्ठे हुए आदिवासी संगठनों ने इस बात पर गहरा संदेह व्यक्त किया कि UCC कई जनजातीय प्रथागत कानूनों और अधिकारों को कमजोर कर सकता है। भारत के 22वें विधि आयोग ने 14 जून को UCC पर सार्वजनिक और धार्मिक संगठनों सहित विभिन्न हितधारकों से नए सुझाव मांगे हैं।
बैठक में कहा गया कि वे ऐसे किसी भी कानून को अनुमति नहीं देंगे जो आदिवासियों से जमीन छीन ले। साथ ही कहा गया कि हमारे पारंपरिक कानूनों के अनुसार, महिलाओं को शादी के बाद पैतृक भूमि का अधिकार नहीं दिया जाता है। UCC के बाद, यह कानून कमजोर हो सकता है।
इस प्रकार भाजपा के इस चुनावी शिगूफे से केवल अल्प संख्यक मुसलमान या ईसाई धर्म वाले प्रभावित नही होंगे वरन भारतीय संविधान द्वारा अनुच्छेद 371 A से अधिशासित वर्ग भी इसकी चपेट में आएगा और जो देश की अखंडता के लिए हितकारी नही कहा जा सकता है। केंद्र की भाजपा सरकार या भाजपा शासित राज्य सरकारें जिस तरह समान नागरिक संहिता लागू करने पर आमादा हैं वह इसके दुष्परिणाम से अनभिज्ञ नही रह सकती।देश की अखंडता पर प्रहार से कम नही होगा समान नागरिक संहिता।।।