महिला अस्मिता को कलंकित करने वाली कुरीतियों के कारण देश में महिलाओं के नारकीय जीवन का जिम्मेदार कौन?
सैयद खालिद कैस
भोपाल मध्य प्रदेश
इन दिनों भारतीय मीडिया में एक वर्ग विशेष को टारगेट कर बनाई जा रही फिल्मों के द्वारा महिला हितेषी होने का प्रपंच दिखाया जा रहा। कथित धर्म रक्षक सनातनी हिंदू धर्म की महिलाओ की स्वतंत्रता, उनकी अस्मिता के नाम पर जो सांप्रदायिक उन्माद कायम किए हैं वह किसी से छिपा नहीं।अभी द केरल स्टोरी की आग बुझी भी नही थी के 92हूर नामक फिल्म के नाम पर वैमन्यस्ता का जहर घोला जा रहा। शांति व्यवस्था पर, भाईचारे पर एकता अखंडता पर हमला करने वालो को आईना दिखाती यह स्टोरी न सिर्फ समाज विरोधियों के मुंह पर जूता है वरन इसकी गिरफ्त में केंद्र सहित राज्य सरकारें भी आएगी। महिला हितेषी होने का इनका पाखंड उजागर होगा। आज भी देश में नारी का नारकीय स्वरूप, उसकी अस्मिता के साथ खिलवाड़ का खेल बदस्तूर जारी है और चलता रहेगा। बहुपत्नी प्रथा तो कई समाजों में हैं। दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति की भी एक से अधिक पत्नियां हैं। तो इस्लाम में भी पुरुषों को एक से अधिक पत्नी रखने की इजाजत है। लेकिन बहुपति प्रथा बहुत कम देखने को मिलती है।
हम बात कर रहे हैं देश में लागू “बहु पति प्रथा”.. जी हां आपने सही पढ़ा। बहू पति प्रथा का नाम आते ही आपके दिमाग में महाभारत के पांडव तथा उनका द्रोपदी के साथ हुआ विवाह याद आता होगा। महाभारत में द्रौपदी के पांच पति थे। ये हम सभी को पता है। इसके पीछे कारण कुछ भी हो पर आज के समय में कई जगहें हैं जहां बहुपति प्रथा का चलन है। इसका कारण कहीं परम्परा से जुड़ा है तो कहीं मजबूरी के चलते ये प्रथा आज भी चल रही है। बेशक उस विवाह के पीछे कई कारण थे, लेकिन बहू पत्नी प्रथा के नाम पर एक धर्म विशेष पर हमला करने वाले समाज में आज भी “बहु पति प्रथा”..का जिंदा रहना किसी अभिशाप से कम नही है।आजादी के 75साल बाद भी इस कुप्रथा का कायम रहना कथित धर्म रक्षक समाजसेवियों के मुंह पर तमाचा है। बहुपति प्रथा यानी एक स्त्री के शरीर को सभी भाइयों में बांटने के धिनौने सच को रिवाज का नाम दिया गया है।जो देश के विभिन्न प्रांतों में आज भी बदस्तूर कायम है। बहू पति प्रथा नारी की अस्मिता के साथ खिलवाड़ से कम नही जहां एक से विवाह करने वाली महिला को उसके भाइयों की पत्नी बनकर बच्चे पैदा करना पड़ता है। यह उसकी विवशता हो , रीति रिवाजों का बंधन हो या कुछ ओर हो,लेकिन महिला का अपनी शरीर का यूं विभाजन न्यायसंगत प्रतीत नहीं होता।
देश के विभिन्न इलाकों में मौजूद यह महिला विरोधी रीति आज भी बदस्तूर कायम है।
उत्तराखंड के देहरादून में जौनसार- भांवर क्षेत्र की जनजातियां। इनमें बडा भाई विवाह करता है जो अन्य भाईयों की भी पत्नी रहती है। उम्र में अत्यधिक अंतर की स्थिति में छोटा भाई अलग विवाह भी कर लेता है।
उत्तराखण्ड के अलावा हिमाचल के किन्नौर, दक्षिणी कश्मीर के पहाड़ी इलाकों, त्रावणकोर के नायकों, मालाबार हिल्स की इजहेर जाति, अरुणाचल की गालोंग जनजाति समेत केरल की भी कई जनजातियों, नेपाल और तिब्बत में भी बहुपति व्यवस्था चलन में थी। इसके अलावा देहरादून की खासा जनजाति, अरुणाचल प्रदेश की गाइलोंग जनजाति, केरल के माला मदेसर, माविलन, कोटा, करवाजी, पुलाया, मुथुवान और मन्नान जातियों में भी यह प्रथा है।
बहुपति प्रथा अपने देश के कई क्षेत्रों में आज भी विद्यमान है। इसे कहीं पैतृक संपत्ति के बंटवारे को रोकने के रूप में देखा जाता है तो कहीं महाभारत के पांडवों की संतति के रूप में।
सबसे ज्यादा ये प्रथा हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में देखने को मिलती है। इस प्रथा को यहां की भाषा में घोटुल प्रथा कहते हैं। सदियों पुरानी इस प्रथा के चलते सभी भाई एक साथ एक लड़की से शादी करते हैं। इस रिवाज को लेकर जो मान्यता है वह पाण्डव और द्रोपदी से जुड़ी है। मान्यता है कि महाभारत काल के दौरान पांडवों ने द्रौपदी और मां कुंती के साथ अज्ञातवास के कुछ पल किन्नौर जिले की गुफाओं में बिताए थे।
हिमाचल प्रदेश के सिरौमर का हाटी समुदाय, ये वो बिरादरी है बहुपति प्रथा में विश्वास रखता है। सितंबर 2022 में इन्हें एसटी यानी अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिला है। इनकी कुल आबादी लगभग 2.5 लाख की है।हिमाचल के किन्नोर क्षेत्र की जनजातियां जो अपने आप को पांडवों की संतति मानती है। महाभारत की कथानुसार पांडवों को 13 वर्षों के मिले वनवास में अंतिम एक वर्ष के अज्ञातवास का कुछ समय इसी क्षेत्र में व्यतीत किया था। बहुपति प्रथा में अनेक भाइयों द्वारा एक ही पत्नी को साझा करने की प्रथा हैं, इसमें केवल बड़ा भाई का विवाह होता हैं, और उसकी पत्नी सभी भाइयों यानी देवर के साथ संबंध बनाती हैं।
केरल के त्रावणकोर क्षेत्र की टोडा जनजातियों में पैतृक संपत्ति के बंटवारे को रोकने के लिए बहुपति प्रथा प्रचलित है। यहीं कुछ नायर जातियों में मातृ प्रधान परिवार होने के कारण बहुपति प्रथा है।
हमारे मध्य प्रदेश भी इस कुप्रथा से अछूता नहीं रहा है। मध्य प्रदेश के जिला मुरैना से 15 किमी दूर स्थित सराय छोला गांव में भी ऐसी ही प्रथा है। यहां एक परिवार के सभी भाई एक ही दुल्हन से विवाह करते हैं। मध्यप्रदेश और राजस्थान की सीमा से लगे मुरैना से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर बसे इस गांव में एक जाति एवं समूह विशेष के लोगों में बहु पति प्रथा सालों से चली आ रही है। लगातार घटते लिंगानुपात के कारण समाज में लड़कियों की संख्या तेजी से घट रही है। ऐसे में हर पुरुष का विवाह संभव नहीं है।
बहू पति प्रथा के पीछे चाहे कोई भी कारण हों लेकिन एक बात से तो इंकार नहीं किया जा सकता कि इस सब में एक नारी की अस्मिता,उसके मान प्रतिष्ठा के साथ कहीं न कही कुठाराघात किया जाता है। रीति रिवाज, या मान्यताओं के नाम पर एक महिला के साथ यह व्यवहार किसी अभिशाप से कम नहीं। महिला सशक्तिकरण का पाठ पढ़ाने वाले शासन तंत्र को क्या यह रीति रिवाज नजर नहीं आते। किसी धर्म विशेष पर हमला करने वाले कथित धर्म रक्षक इस प्रथा से जानबूझकर क्यों किनारा करते हैं। देश की आजादी के बाद क्यों महिला को इस नारकीय जीवन से मुक्ति नही मिली। मुद्दा गंभीर है,सवाल अनेक हैं लेकिन शासन सत्ता के मठाधीशों के पास कोई जवाब नही।
आखिर क्यों एक महिला की अस्मिता, उसके स्वाभिमान को यूं टुकड़ों में विभाजित किया जा रहा क्यों उस पर रीति रिवाज, प्रथा के नाम पर यह दंश थोपा जा रहा ।आखिर क्यों?