लव जिहाद के नाम पर वर्ग विशेष को टारगेट कर अपनी हकीकत को छिपाने का पाखंड
दोस्तों इस समय सारे भारत में लव जिहाद के नाम पर एक वर्ग विशेष को टारगेट कर खूब जी भर-भर कर लिखा जा रहा है। मुट्ठी भर घटनाओं के नाम पर पूरे धर्म विशेष को आरोपी बनाना न्यायसंगत प्रतीत नहीं होता है। लेकिन इन दिनों एक ट्रेंड बन गया है कि फलाने धर्म पर कीचड़ उछालो रातों-रात लोकप्रिय होने का खेल खेलो। साहित्य, लेखन में जिनको क ख का भी ज्ञान नहीं वह भी प्रखर वक्ता के रूप में अपने लेख के दम पर नफरत परोसते नजर आ रहे हैं। सोशल मीडिया पर एक रुपए में 5ट्वीट करने वाले कनझजूरे बिना प्रमाणिकता के जिस प्रकार समाज में वैमन्यता फैला रहे हैं वह देश की अस्मिता, अखंडता के लिए कष्ट दायक है।
बेशक देश में घटित कुछ घटनायें जिस प्रकार असफल प्रेम या अविश्वास की भावना के फलस्वरूप घटित इन घटनाओं को लव जिहाद का नाम देकर किसी धर्म विशेष को टारगेट करना न्यायसंगत नहीं है।
कल अचानक एक घटना ने सम्पूर्ण देश में एक नई बहस को जन्म दिया और उस घटना का सीधा प्रहार उन लोगों पर है जो लव जिहाद के नाम पर रोटियां सेक रहे थे।
जी हां मैं बात पर रहा हूं मुंबई मीरा रोड इलाके की एक सोसाइटी से एक महिला का शव मिला है। महिला का शव कई टुकड़ों में बरामद हुआ। महिला का गला रेत कर हत्या की गई थी। सरस्वती विद्या 32वर्षीय 52वर्षीय अपने लिव इन पार्टनर मनोज साने (Manoj Sane) के साथ रह रही थी।वह लिव-इन पार्टनर के साथ आकाशगंगा भवन में किराए के फ्लैट में 3 साल से रह रहे थे।
उस व्यक्ति ने अपनी लिव-इन पार्टनर की हत्या कर दी और उसके शरीर को कुकर में पकाकर और मिक्सर में पीसकर उसके शरीर को ठिकाने लगाने की कोशिश की। पुलिस ने मौके से आरोपी को हिरासत में लिया है। आरोपी ने शव को ठिकाने लगाने के लिए उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए थे. जानकारी सामने आ रही है कि इन टुकड़ों को कटर मशीन से काटा गया था. दो से तीन दिन पहले महिला की हत्या की गई थी।
इस जैसी घटनाएं आम हैं उनका प्रचार नहीं किया जाता क्योंकि उसको भुनाने से कोई फायदा नहीं लेकिन क्या इस अपराध को नजर अंदाज करना न्यायसंगत नहीं है।लेकिन लव जिहाद के नाम पर धर्म विशेष को टारगेट करना ही आज के दौर में पब्लिसिटी का साधन बन गया है क्योंकि नफरती गैंग को इस तरह की खबरों को प्राथमिकता दे की चवन्नी जो मिलती है।
भारत में महिला अपराध चाहे किसी भी धर्म किसी भी जाति के प्राणी ने किया हो अपराध ही होगा। उसे धर्म विशेष से जोड़ना न्यायसंगत नहीं होगा । अपराध या अपराधी की कोई जाति कोई धर्म नहीं होता और हर अपराधी दंड का भागीदार होता है उसे कठोरतम दंड मिलना ही चाहिए।
सैयद खालिद कैस
भोपाल मध्यप्रदेश