भारतीय पत्रकारिता की वर्तमान स्थिति आपातकाल के समान
विश्व प्रेस स्वतन्त्रता दिवस 03 मई पर विशेष
आज 03 मई को हम विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं,जिसको मनाने का उद्देश्य पत्रकारों के साथ हिंसा रोक कर उनको लिखने और बोलने की आजादी देना है।लेकिन वास्तव में संपूर्ण विश्व में पत्रकारों तथा पत्रकारिता पर हो रहे हमलों ने यह साबित कर दिया है की प्रेस को स्वतंत्र कहने का कोई औचित्य प्रतीत नही होता है।भारतीय संदर्भ में यदि बात की जाए तो भारतीय पत्रकारिता आज जिस स्थिति से गुजर रही है उसे भारतीय मीडिया का आपातकाल कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। यही कारण है कि भारतीय पत्रकारिता की अस्मिता पर हो रहे हमलों को देखते हुए गत दिनों सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि पत्रकारिता की आजादी संविधान में दिए गए बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का मूल आधार है। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा था कि भारत की स्वतंत्रता उस समय तक ही सुरक्षित है, जब तक सत्ता के सामने पत्रकार किसी बदले की कार्रवाई का भय माने बिना अपनी बात कह सकता है।
एक स्वतंत्र प्रेस हमारे लोकतांत्रिक समाज में एक आवश्यक भूमिका निभाता है जैसे -सरकारों को जवाबदेह ठहराना, भ्रष्टाचार, अन्याय और सत्ता के दुरुपयोग को उजागर करना, समाज को सूचित करना और उन्हें प्रभावित करने वाले निर्णयों और नीतियों में शामिल होना। लोकतंत्र के सुचारू संचालन के लिए विचारों का मुक्त आदान-प्रदान, सूचना और ज्ञान का मुक्त आदान-प्रदान, बहस और विभिन्न दृष्टिकोणों की अभिव्यक्ति महत्वपूर्ण है। एक स्वतंत्र प्रेस अपने नेताओं की सफलताओं या विफलताओं के बारे में नागरिकों को सूचित कर सकता है। स्वतंत्र प्रेस लोगों की जरूरतों और इच्छाओं को सरकारी निकायों तक पहुंचाता है, सूचित निर्णय लेता है और परिणामस्वरूप समाज को मजबूत करता है। स्वतंत्र प्रेस विचारों की खुली चर्चा को बढ़ावा देता है जो व्यक्तियों को राजनीतिक जीवन में पूरी तरह से भाग लेने की अनुमति देता है।
स्वतंत्र प्रेस सरकार के फैसलों पर सवाल खड़ा करता है और उसे जवाबदेह बनाता है। हाशिये के लोगों की आवाज बनता है। जनता की आवाज होने के कारण स्वतंत्र प्रेस लोगों को राय व्यक्त करने का अधिकार देता है। इस प्रकार, लोकतंत्र में स्वतंत्र मीडिया महत्वपूर्ण है। इन विशेषताओं के कारण, मीडिया को विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बाद लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है।
प्रेस का कार्य लोगों तक सच पहुंचा कर उन्हें जागरुक करना है, लेकिन बदलते वक्त के साथ उससे ये हक छीन लिए गए हैं. आज दुनिया भर से पत्रकारों के खिलाफ हिंसा की खबरें सामने आती रहती हैं।
संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) में दिए गए अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार और आपराधिक मामले की जांच के संबंध में भारतीय दंड संहिता (सीआरपीसी) के प्रावधानों का भी जिक्र किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पत्रकारिता की आजादी संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) में दी गई संरक्षित अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार का मूल आधार है।
भारतीय पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर चिंता व्यक्त करते हुए वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स ने एक रिपोर्ट जारी की थी। रिपोर्ट में कहा गया था है कि अपना काम ठीक से करने की कोशिश कर रहे पत्रकारों के लिए भारत दुनिया के सबसे खतरनाक देशों में से एक है। सरकार की “आलोचना करने की हिम्मत” करने वाले पत्रकारों के खिलाफ “बेहद हिंसक सोशल मीडिया नफरत अभियान” के लिए भारत की आलोचना दुनिया भर में हुई।
लोकतंत्र के लिए स्वतंत्र प्रेस के महत्व पर प्रकाश डालते हुए सीजेआई ने कहा था कि , ‘प्रेस राज्य की अवधारणा में चौथा स्तंभ है और इस प्रकार लोकतंत्र का एक अभिन्न अंग है। एक क्रियाशील और स्वस्थ लोकतंत्र को पत्रकारिता के विकास को एक ऐसी संस्था के रूप में प्रोत्साहित करना चाहिए, जो सत्ता से कठिन सवाल पूछ सके या जैसा कि यह आमतौर पर जाना जाता है, सत्ता के सामने सच बोलो.’वे आगे बोले, ‘जब प्रेस को ऐसा करने से रोका जाता है तो किसी भी लोकतंत्र की जीवंतता से समझौता किया जाता है. अगर किसी देश को लोकतांत्रिक बने रहना है तो प्रेस को स्वतंत्र रहना चाहिए।
हमारे संविधान में प्रत्येक भारतीय को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। यही कारण है कि भारतीय मीडिया अपने अधिकार क्षेत्र में सशक्त और उत्तरदायी मीडिया है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व से अब तक भारतीय मीडिया ने भारत निर्माण में महत्वपूर्ण व निष्पक्ष भूमिका निभाई है। मगर जब से बाजारवाद का उदय हुआ तब से भारतीय पत्रकारिता में काफी उतर-चढ़ाव देखने में आए हैं। यहां तक कि भारतीय पत्रकारिता की अस्मिता पर भी सवाल उठे। ये सवाल उसकी नैतिकता, स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर हावी होते रहे हैं। इसके बावजूद निष्पक्ष पत्रकारिता पर सरकारी हस्तक्षेप भी चिंता का विषय है। सरकार के लगातार मीडिया पर अघोषित नियंत्रण का ही परिणाम है कि देश में पत्रकारिता पर हमले पर न्यायपालिका तक को चिंता जाहिर करना पड़ रही है। गत दिनों एक न्यूज चैनल पर लगे केंद्र सरकार के प्रतिबंध को बहाल करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सरकार को इस बात की इजाज़त नहीं दी जा सकती कि वह तय कर ले कि प्रेस को सरकार का समर्थन करना ही होगा।कोर्ट के मुताबिक सरकार की आलोचना करना किसी टीवी चैनल का लाइसेंस रद्द करने का आधार नहीं हो सकता। सर्वोच्च अदालत ने कहा ‘किसी लोकतांत्रिक गणराज्य के सुचारु रूप से चलते रहने के लिए स्वतंत्र प्रेस आवश्यक है। लोकतांत्रिक समाज में उसकी भूमिका काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह राज्य (देश) के कामकाज पर रोशनी डालती है।
विश्व स्वतंत्रता प्रेस दिवस का इतिहास
वर्ष 1993 की बात है जब संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 3 मई को विश्व स्वतंत्रता प्रेस दिवस के रूप में घोषित किया था। यह घोषणा 1991 में यूनेस्को के छब्बीसवें आम सम्मेलन सत्र में की गई एक सिफारिश के बाद आई है। सन् 1991 के विंडहोक घोषणापत्र के परिणामस्वरूप इस दिन की घोषणा हुई थी, विंडहोक घोषणापत्र एक बयान है जो प्रेस की स्वतंत्रता के बारे में अफ्रीकी पत्रकारों द्वारा प्रस्तुत की गयी थी। इसे यूनेस्को द्वारा आयोजित एक संगोष्ठी में प्रस्तुत किया गया था, जो 3 मई को संपन्न हुआ था।
- सैयद खालिद कैस
- संस्थापक अध्यक्ष
- प्रेस क्लबऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स