केंद्र सरकार नए आईटी नियमों की आड़ में स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर हमला करने पर आमादा
अधिसूचित इस नए आईटी नियमों मीडिया का सेंसरशिप के समान: प्रेस क्लब ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स
केंद्र सरकार ने गत 6 अप्रैल को सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 को संशोधित करते हुए इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की गजट अधिसूचना को जारी किया गया। जिसके माध्यम से अब गूगल, फेसबुक और ट्विटर जैसी कंपनियां सरकारी फैक्ट-चेकर द्वारा ‘झूठी या भ्रामक जानकारी’ बताई गई सामग्री को हटाने के लिए बाध्य होंगी। अर्थात अब से सरकार की फैक्ट-चेकिंग इकाई ‘फर्जी, झूठी या भ्रामक जानकारी’ की पहचान करेगी। सरकार ने मंत्रालय के माध्यम से एक इकाई को अधिसूचित करने का फैसला किया है और वह संगठन ऑनलाइन सामग्री और वो सामग्री जो सरकार से संबंधित है, के सभी पहलुओं का फैक्ट-चेकर होगा।
अधिसूचित नए आईटी नियमों में कहा गया है कि इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को एक फैक्ट-चेक इकाई का गठन करने का अधिकार होगा, जो केंद्र सरकार के किसी भी काम के संबंध में फर्जी, झूठी या भ्रामक खबर का पता लगाएगा। इकाई के पास सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, इंटरनेट सेवा प्रदाता (आईएसपी) और अन्य सेवा प्रदाताओं सहित मध्यस्थों को निर्देश जारी करने का अधिकार होगा कि वे ऐसी सामग्री को हटा दें। गूगल, फेसबुक, ट्विटर आदि कंपनियां सरकारी फैक्ट-चेक इकाई द्वारा ‘फर्जी या भ्रामक’ करार दी गई सामग्री इंटरनेट से हटाने को बाध्य होंगी।
केंद्र सरकार की इस नीति का संपूर्ण भारत में विरोध हो रहा है। सरकार की इस नीति को स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर हमला बताया जा रहा है। डिजिटल अधिकार समूह इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन (आईएफएफ) ने कहा कि इन संशोधित नियमों की अधिसूचना ‘बोलने और अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार को प्रभावित करेगी’, विशेष रूप से समाचार प्रकाशक, पत्रकार, कार्यकर्ता और अन्य प्रभावित होंगे। समूह ने कहा, ‘फैक्ट-चेक इकाई प्रभावी रूप से आईटी अधिनियम-2000 की धारा 69ए के तहत वैधानिक रूप से निर्धारित प्रक्रिया को दरकिनार करते हुए सोशल मीडिया मंचों और यहां तक कि इंटरनेट पर मौजूद अन्य मध्यस्थों को सामग्री हटाने के आदेश जारी कर सकती है।
आईएफएफ ने आगे कहा ये अधिसूचित संशोधन श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ (2013) मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का भी घोर उल्लंघन हैं, जिसमें सामग्री को ब्लॉक करने के लिए सख्त प्रक्रियाएं निर्धारित की गई थीं। अंत में, ‘फर्जी’, ‘झूठे’, ‘भ्रामक’ जैसे अपरिभाषित शब्दों की अस्पष्टता ऐसी व्यापक शक्तियों को दुरुपयोग के लिए अतिसंवेदनशील बनाती है।
इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी (आईएनएस) ने अधिसूचित आईटी नियमों में संशोधन को वापस लेने का आग्रह करते हुए कहा कि यह कदम सरकार या उसकी नामित एजेंसी को कोई खबर फर्जी है या नहीं, यह निर्धारित करने के लिए ‘पूर्ण’ और ‘मनमानी’ शक्ति प्रदान करेगा।
आईएनएस ने कहा कि इससे पहले आलोचना के बाद मंत्रालय ने मीडिया संगठनों और निकायों के साथ परामर्श करने का वादा किया था। यह खेद का विषय है कि मंत्रालय द्वारा इस संशोधन को अधिसूचित करने से पहले हितधारकों के साथ कोई सार्थक परामर्श करने का कोई प्रयास नहीं किया है।
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने भी नए आईटी (संशोधन) नियमों को लेकर चिंता जाहिर की थी। गिल्ड का कहना था कि इन संशोधनों का देश में प्रेस की स्वतंत्रता पर गहरा प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। एडिटर्स गिल्ड ने कहा था कि नए नियमों से केंद्र सरकार को खुद की एक ‘फैक्ट-चेक इकाई’ गठित करने की शक्ति दी है, जिसके पास केंद्र सरकार के किसी भी कामकाज आदि के संबंध में क्या ‘फर्जी या गलत या भ्रामक’ है, यह निर्धारित करने की व्यापक शक्तियां होंगी और वह ‘मध्यस्थों’ (सोशल मीडिया मंच, इंटरनेट सेवा प्रदाताओं और अन्य सेवा प्रदाताओं सहित) को ऐसी सामग्री को हटाने के निर्देश सकेगी।
कांग्रेस प्रवक्ता और सोशल मीडिया एंड डिजिटल फ्लेटफॉर्म्स की अध्यक्ष सुप्रिया श्रीनेत ने कहा कि , ‘यह इंटरनेट, डिजिटल मीडिया मंचों और सोशल मीडिया मंचों को चुप कराने के अलावा और कुछ नहीं है. ये एकमात्र आखिरी गढ़ हैं जो डटकर खड़े हैं और अभी भी सरकार से सवाल पूछ रहे हैं। मुख्यधारा के मीडिया के सरेंडर ने सरकार को डिजिटल और सोशल मीडिया मंचों के साथ भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित किया है।
प्रेस क्लब ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स ने केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित इस नए आईटी नियमों मीडिया का सेंसरशिप के समान बताते हुए इसे वापस लेने की मांग की है। संगठन के संस्थापक अध्यक्ष सैयद खालिद कैस ने कहा कि यह प्रेस की सेंसरशिप के समान है और इस प्रकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सिद्धांत का उल्लंघन है।
उन्होंने कहा कि यह सब प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के ख़िलाफ़ और सेंसरशिप के समान है।इन संशोधित नियमों की अधिसूचना ‘बोलने और अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार को प्रभावित करेगी’, विशेष रूप से समाचार प्रकाशक, पत्रकार, कार्यकर्ता और अन्य प्रभावित होंगे।
संगठन ने कहा कि केंद्र सरकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (क) के वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अर्थात प्रेस की आजादी जो कि मौलिक अधिकार के अर्न्तगत आते हैं जिसका वर्तमान संदर्भ में शासन,सत्ता और पुलिस द्वारा उपयोग नहीं किया जा रहा है।पत्रकारिता की आजादी संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) में दी गई संरक्षित अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार का मूल आधार है।केंद्र सरकार ने गत 6 अप्रैल को सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 को संशोधित करते हुए इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की गजट अधिसूचना जारी करके जहां भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (क) के वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अर्थात प्रेस की आजादी को कुचलने का प्रयास किया है वहीं निष्पक्ष पत्रकारिता को जड़ मूल से नष्ट करने का कुचक्र चलाया जा रहा है। प्रेस क्लब ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स ने केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित नए आईटी नियमों को वापस लेने की मांग करता है।