भारतीय मीडिया को स्वतंत्र कहना न्यायसंगत नहीं होगा
सैयद खालिद कैस
संस्थापक अध्यक्ष
प्रेस क्लब ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट
साथियों ,
अगले माह 03मई को सम्पूर्ण विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाएगा। विश्व भर में हजारों आयोजन होंगे। हमारे प्रिय भारत में भी कई आयोजन होंगे,पत्रकारों के हितों की चिंता होगी,कई व्याख्यान होने,सेमिनार में सरकार पर पत्रकारों की सुरक्षा सहित पत्रकारिता की सुरक्षा की गुहार लगाई जाएगी। कई दिन तक राष्ट्रीय ,प्रादेशिक समाचार पत्र पत्रिकाओं में विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के आयोजन के संबंध में लेख, समाचार प्रकाशित होंगे और फिर कुछ दिन बाद सब शांत हो जाएगा। न पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित होती दिखाई देगी न पत्रकारिता की स्वतंत्रता के लिए कोई पहल होगी। सरकारें अपने पुराने ढर्रे पर चलती रहेंगी और पत्रकार तथा पत्रकारिता यूहीं अपना दोहन देखकर दर्द के अहसास के साथ अपने दायित्व के निर्वाहन में लगे रहेंगे।
साथियों ,यहां एक बात कहना चाहूंगा कि भारत देश में पत्रकारों की सुरक्षा तथा कल्याण के लिए संसद द्वारा गठित प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की भूमिका दिन प्रतिदिन नगण्य होती जा रही है। जिस उद्देश्य से उसका गठन किया गया संभवत:अब वह उससे विमुख हो गई है या उसको असहाय बनाने का कुचक्र रचा गया हो। वर्तमान संदर्भ में उसका अस्तित्व अब प्राय:अंश मात्र रह गया है जिसे सफेद हाथी कहा जाना अतिश्योक्ति नहीं होगी। आइए जानते हैं क्या है प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) :
1978 के प्रेस काउंसिल अधिनियम द्वारा बनाई गई एक सांविधिक निकाय है। यह भारत में प्रिंट मीडिया के नियमन के लिए शीर्ष निकाय है। इसे सरकार से स्वतंत्रता प्राप्त है।
भारतीय प्रेस परिषद – महत्वपूर्ण तथ्य
प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया का उद्देश्य प्रेस की स्वतंत्रता को बनाए रखना और भारत में प्रेस के मानकों को बनाए रखना और सुधारना है। यह नियामक के रूप में कार्य करता है जो भारत में प्रिंट मीडिया के लिए पेशेवर मानकों को परिभाषित और निर्वहन करता है।
इसे सबसे महत्वपूर्ण निकाय माना जाता है जो लोकतंत्र को बनाए रखता है और यह सुनिश्चित करता है कि भाषण की स्वतंत्रता सुरक्षित है।
यह क्रमशः नैतिकता के उल्लंघन और प्रेस की स्वतंत्रता के उल्लंघन के लिए प्रेस के खिलाफ और उसके द्वारा शिकायतों की मध्यस्थता करता है।
भारतीय प्रेस परिषद (पीसीआई) – कार्य
यह सुनिश्चित करना कि समाचार पत्र अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखने में सक्षम हैं।
सार्वजनिक उपभोग के लिए समाचारों के उच्च मानकों को बनाए रखें।
उन घटनाक्रमों पर नज़र रखें जो सूचना या समाचार के प्रवाह को स्वतंत्र रूप से बाधित कर सकते हैं।
उच्च पेशेवर मानकों के लिए पत्रकारों के लिए आचार संहिता बनाएं।
उच्च पेशेवर मानकों को बनाए रखने के लिए समाचार एजेंसियों के लिए आचार संहिता बनाएं।
नए पत्रकारों को प्रशिक्षण प्रदान करें।
यह समाचार से संबंधित तकनीकी और अन्य शोध क्षेत्रों को बढ़ावा देने के लिए काम करता है।
साथियों ,आपने स्वयं यह समझा होगा कि भारत में स्थापित भारतीय प्रेस परिषद का वर्तमान संदर्भ में क्या महत्व बचा है।तथा वह अपने जिस उद्देश्य के लिए गठित है उसका भी वर्तमान समय में कितना पालन हो रहा है यह भी किसी से छिपा नहीं है।
क्या आप जानते हैं कि आपके पास अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (फ्री स्पीच) का मौलिक अधिकार है?
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार भारत के सभी नागरिकों के लिए उपलब्ध एक मौलिक अधिकार है. इसमें प्रेस की स्वतंत्रता, प्रकाशन की स्वतंत्रता, प्रसार और पूर्व-सेंसरशिप के विरुद्ध अधिकार शामिल हैं।इसका मतलब है कि आप सरकार या देश की आलोचना कर सकते हैं।हालांकि, यह स्वतंत्रता असीमित नहीं है, और आपके भाषण को उस स्थिति में प्रतिबंधित किया जा सकता है यदि यह सार्वजनिक लॉ एंड आर्डर को बाधित करता है, अपराध करने के लिए उकसाता है, या इससे राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार अर्थात मौलिक अधिकार वर्तमान संदर्भ में हमको कितना प्राप्त है इससे हम सब भली भांति परिचित हैं ।यहां तक कि इसकी वर्तमान स्थिति पर सर्वोच्च न्यायालय तक इस पर टिप्पणी कर चुका है।
आप हम सब जानते हैं कि पत्रकारों को अक्सर एफआईआर, मानहानि के मुकदमों और अन्य कानूनी कार्यवाही का सामना करना पड़ता है. यहां तक कि कई को गैरकानूनी गतिविधियों (रोकथाम अधिनियम) और जम्मू-कश्मीर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम सहित अन्य कड़े कानूनों के तहत कैद भी किया गया है। कई पत्रकार आज भी जेल की चार दिवारी में वर्षो से सड़ रहे हैं । ऐसे हालात में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार अर्थात मौलिक अधिकार होना महज छलावा है।यदि इसी प्रकार पत्रकारिता का दोहन होता रहा तो आज जो विदेश मीडिया हमारी स्वतंत्रता पर टिप्पणी कर रही उससे पूरा विश्व परिचित हो जाएगा। ऐसे हालात में भारतीय मीडिया को स्वतंत्र कहना न्यायसंगत नहीं होगा।