आत्म संयम व त्याग जीवन का एक अनिवार्य घटक!

 

आज से इस वर्ष का आखिरी महीना दिसंबर का श्रीगणेश होने जा रहा है और इसलिए अगर साल भर ज़िन्दगी की जद्दोजहद में उलझे रहे तो कम से कम अब ज़रा ठहराव के लिए वक्त निकालें कि पिछले ग्यारह महीनों में क्या-क्या हुआ और उन घटनाओं ने हमारे जीवन को और अंतर्मन को किस प्रकार प्रभावित किया। दुनिया तो इतनी विशाल है हम तो अपने आस पास की दुनिया ही देखते हैं तो लोगों को ऐसी ऐसी परिस्थितियों में पाते हैं कि हमारे अंदर मंथन शुरू हो जाता है। कोई बेहद बीमार है, कोई अपने प्रियजन की मरणांतक बीमारी से जूझ रहा है, किसी का जीविकोपार्जन का साधन छीन गया है तो किसी अपने की अचानक मृत्यु से आहत है। कोई पारिवारिक व सामाजिक प्रताड़ना से ग्रस्त हैं, तो कोई अपने बच्चों के पथभ्रष्ट होने से चिंतित हैं। ऐसी तमाम बातें जीवन में बतौर परिवर्तन आता रहता है और हम प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होते रहते हैं। एक दिन एक मित्र कह रहीं थी, “अब तक तो वो फलाने दोस्त के साथ, खाली वक्त में अच्छा मन लगा रहता था, पर अब वो अपने कठिन हालात की वजह से अत्यधिक उलझ गयी है और अब मुझे अकेलापन लगता है समझ नहीं आता की कैसे व्यस्त रहूं। एक मित्र एक दिन फ़ोन पर रुआँसी आवाज में कहती है, यार! जीवन में अजीब सा सूनापन छा गया, पहले के सब दुखों को भूलकर ऐसे मन लगा रही थी कि मेरी बड़ी दीदी चल बसी अब और दुःख सहा नहीं जाता, कैसे व्यस्त रहूं। इस तरह से न जाने कितने अस्थाई परिवर्तन आते हैं और हमें विभिन्न पारिवारिक ज़िम्मेदारियों के बावजूद मन में सूनापन का एहसास कराते हैं उस समय कैसे खुद को संभाला जाये, कैसे सार्थक जीवन जीया जाए, यह अच्छे अच्छे आध्यात्मिक रूप से परिपक्व इंसान को भी भ्रांतचित्त कर देता है। ऐसे में मैं स्वयं से एकल संवाद करती हूँ कि “आप स्वयं ही नए पल हैं, अभी के क्षण भी आप हैं। इस क्षण के वसंत भी आप और पंख भी आप।आप इस समय के जादू भी हैं और गति भी हैं।हाँ आप स्वयं इस पल के जीवन हैं, आप ही इस पल के प्रकाश हैं। बस अंदर एक ठहराव लायें व जरा मौन होकर एकांत में अपने आप से रूबरू होकर बस उन्हें प्रकट करें। ऐसे सब परिस्थितियों के लिए पहले से ही तैयार रहें व उनका अभ्यास भी करते रहें व महान साधकों द्वारा अनुभूत किये हुए कुछ यथार्थ बातें समझ लें कि जीवन में 1.स्वयं के सिवा कोई हमारा नहीं है। 2. स्वयं के अतिरिक्त कुछ भी स्थायी नहीं है।3.आत्मसंयम व त्याग आध्यात्मिक जीवन का एक अनिवार्य घटक है।4. अपनों से बिछड़ना निश्चित समय पर अवश्यम्भावी है। 5. हम जिस चीज को थामे रखना चाहते हैं वह एक दिन चली जाएगी। इन सब गूढ़ बातों का भान रहे तो जीवन में तकलीफ़ें कुछ कम होना निश्चित है।

 

शशि दीप ©✍

विचारक/ द्विभाषी लेखिका

मुंबई

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