अपनी चेतना को परम शक्ति की आवृत्ति के अनुरूप करने का प्रयास!

मैं 8 साल से लगातार हर शुक्रवार को वैभव लक्ष्मी व्रत रखती रही हूं, इसलिए मेरे कई दोस्त इस सच्ची भक्ति का उद्देश्य पूछते रहते हैं और मैं उन्हें पूरे आत्मविश्वास के साथ जवाब दे पाती हूं कि यह दिन देवी माँ के साथ मेरी विशेष मुलाकात है, जो उनकी कृपा से ही मेरा समर्पित भाव है। मुझे उनकी कृपा को पूर्ण रूप से अनुभूत करने के लिए खुद की चेतना को उनकी आवृत्ति में ट्यून करना होता है, इतने ध्यान से उनमें डूबना होता है। और तब मैं उन्हें मेरे जीवन में सभी अनुग्रहों के लिए हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त कर पाती हूँ।

उपरोक्त अभिव्यंजना को इस प्रकार समझा जा सकता है, जैसे लगभग पचास साल पहले हमारे पास साधारण रेडियो था जो बीबीसी आकाशवाणी से हमारे लिए कार्यक्रम प्रसारित करता था। वर्तमान में हमारे पास सैटेलाइट चैनल हैं जो हमें दुनिया भर के कार्यक्रमों को देखने में मदद करते हैं और कई अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण हैं जो हमें दुनिया से जुड़ने में मदद कर रहें हैं। हालाँकि हमें इन वस्तुओं (रेडियो, टीवी) की आवश्यकता है पर इन्हें भी ट्यून करना होता है। ठीक इसी तरह हमें ऊर्जा के उच्चतम स्रोत से दिव्य ऊर्जा प्राप्त करने के लिए अपनी सक्षमता व श्रद्धानुसार कुछ विशेष “ध्यान” करना होता है। जैसे हमें रेडियो स्टेशन के लिए सही फ्रिक्वेंसी पता होनी चाहिए, हमें टीवी में अमुक कार्यक्रम देखने के लिए चैनल नंबर पता होना चाहिए। भले ही हमने सही फ्रीक्वेंसी में ट्यून किया हो पर ऐन्टेना सिस्टम कितनी अच्छी तरह काम करता है यह भी महत्वपूर्ण है तो एक परटीकुलर कनेक्शन बहुत सारे कारकों पर निर्भर करता है। रेडियो सिग्नल, ऐन्टेना दक्षता, आस-पास की वस्तुएं, इलाका, मौसम आदि से प्रभावित होता हैं। यह दुर्लभ है लेकिन कारकों को नियंत्रित कर पाने के बाद निश्चित रूप से संभव है।

मेरा मानना है सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा हर जगह मौजूद हैं, और हमें सकारात्मकता प्राप्त करने के लिए मन मष्तिष्क को शुद्ध व तमाम अवांछित विचारों से मुक्त करना पड़ता है। खुद का मूल्यांकन करें, अपनी अंतरात्मा को शुद्ध कर उसअनुभूति को महसूस करें कि ईश्वर की फ्रिक्वेंसी (ईश्वरीय शक्ति) हमारे भीतर है लेकिन हमें अपनी चेतना को उनकी आवृत्ति के अनुरूप बनाना है। मेरी समझ व अनुभव के अनुसार मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च, महान संतों के मठों में और भी अनेकों पवित्र स्थानों में सकारात्मक ऊर्जा को अवशोषित करने के अपूर्व स्रोत हैं। इन सब जगहों में भी कोई रातोंरात सकारात्मक स्पंदन नहीं आ गया, पहले तो अधिकांश पवित्र स्थान वहां स्थित हैं जहां से पृथ्वी का चुंबकीय तरंग पथ सघन होकर गुजरता है। इसलिए सकारात्मक ऊर्जा प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होती है। वर्षों से मंत्र जाप, सत्संग के माध्यम से बहुत सारी सकारात्मक ऊर्जा पंप की जा रही है और तब स्थान पवित्र हो जाता है। इस प्रकार दिव्य ऊर्जा के बारे में यह मेरी अनुभूति है, और अपने भीतर अधिक दिव्यता ग्रहण करने के लिए किस तरह उस आवृत्ति में ट्यून किया जाए। ईश्वर की कृपा बनी रहे।
शशि दीप ©✍
विचारक/ द्विभाषी लेखिका
मुंबई
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