दुराचार की घटनाओं के संबंध में प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा मीडिया पर कसा शिकंजा

मद्रास हाई कोर्ट द्वारा जारी आदेश के संदर्भ में

सैयद खालिद कैस

संस्थापक अध्यक्ष प्रेस क्लब ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट 

देश में हर तरफ महिलाओं और बच्चियों के साथ दुराचार की बढ़ती घटनाओं पर हमेशा देश की न्यायालय चिंतित नजर आती है। समय समय पर सर्वोच्च न्यायालय तथा अधिनस्थ न्यायालयों द्वारा दिशा निर्देश जारी किए जाते हैं।साथ ही इन घटनाओं को कवर करने वाले प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया के व्यवहार पर भी न्यायालय द्वारा गाइडलाइन बनाई गई है। गत वर्ष इस महत्वपूर्ण विषय पर देश की सर्वोच्च न्यायालय ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा था कि देश में यौन उत्पीड़न पीड़िताओं की तस्वीरें किसी भी रूप में प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया द्वारा प्रकाशित या प्रदर्शित नहीं की जाएं। सुप्रीम कोर्ट ने पीड़िताओं की तस्वीरें धुंधली (ब्लर) हो या संपादित (मॉर्फ्ड) करके भी प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक या सोशल मीडिया पर प्रकाशित या प्रसारित न करने का निर्देश दिया थे। शीर्ष अदालत ने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि हर दिन इस तरह की चार घटनाएं देश में दर्ज की जा रही हैं।

 

शीर्ष अदालत ने यौन उत्पीड़न से पीड़ित नाबालिगों का इंटरव्यू नहीं करने की चेतावनी देते हुए कहा था कि इसका दिमाग पर गंभीर असर पड़ता है. शीर्ष अदालत ने कहा था कि बाल यौन उत्पीड़न से पीड़ित बच्चों से सिर्फ राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग और राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोगों के सदस्य ही काउंसलर की मौजूदगी में इंटरव्यू कर सकते हैं।

 

सुप्रीम कोर्ट ने 2019में बिहार के मुजफ्फरपुर बालिका गृह में लड़कियों के यौन शोषण की घटनाओं पर स्वत: संज्ञान लिया था और बालिका गृह में कथित यौन शोषण की शिकार लड़कियों का मीडिया द्वारा बार-बार साक्षात्कार लिए जाने पर भी चिंता जताई थी। पीड़िताओं की तस्वीरों का रूप बदलकर भी इन्हें इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर प्रसारित करने पर रोक लगाई थी।

 

न्यायालय ने मीडिया को यौन शोषित पीड़िताओं का साक्षात्कार नहीं करने का निर्देश दिया और कहा कि उन्हें बार-बार अपने अपमान को दोहराने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।

 

परंतु देखने में आया कि इन दिशा निर्देश पर अमल करने में बरती जा रही कोताही के कारण समाज के सामने गलत संदेश जा रहा था।इस सबके बाद सितंबर 2022 में मद्रास हाई कोर्ट द्वारा इस विषय पर चिंता जाहिर करते हुए प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को आदेश जारी किए हैं।

 

गौर तलब हो कि प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया ने अपने पत्र क्रमांक पीआर/09/2022-पीसीआई दिनांक: 07-10-2022 के आधार पर प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए दिशा निर्देश जारी किए हैं। जिसके अनुसार माननीय उच्च न्यायालय मद्रास के आदेश दिनांक 02.09.2022 के संदर्भ में भारतीय प्रेस परिषद मीडिया को पीड़ितों की पहचान और उनके बयानों के संबंध में किसी भी जानकारी को प्रकाशित करने से परहेज करने की सलाह दी गई है।

 

ज्ञात हो कि माननीय उच्च न्यायालय, मद्रास ने सीआरएल . एमपी. नंबर 13621/2021 ,क्रिओप 12934/2021पुलिस निरीक्षक, सीबीआई, विशेष अपराध शाखा, चेन्नई बनाम अरुलनाथम @ के मामले में निम्नलिखित निर्देश पारित किए हैं:

 

“चूंकि मामला यौन शोषण और यौन हिंसा से संबंधित है, सभी प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को पीड़ितों या किसी भी गवाह के बयान से संबंधित किसी भी सामग्री को प्रकाशित और प्रसारित या प्रसारित करने से रोक दिया गया है।

 

प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को भी प्रकाशित करने से रोक दिया गया है,और पीड़ितों, उनके परिवार के सदस्यों की पहचान का प्रसारण या प्रसारण करना और गवाह, जो मुकदमे में या तो विकृत रूप में या धुंधले रूप में गवाही देते हैं।

 

प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को भी किसी भी दस्तावेजी साक्ष्य या किसी भी डिजिटल साक्ष्य को प्रकाशित करने से रोक दिया गया है जिसे परीक्षण के दौरान चिह्नित किया जा सकता है। संक्षेप में, प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को मामले की सुनवाई से जुड़ी किसी भी मौखिक या दस्तावेजी सामग्री को प्रकाशित करने से रोक दिया गया है।”

 

प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा जारी दिशा निर्देश के माध्यम से कहा कि यह स्पष्ट किया जाता है कि पूर्वोक्त निर्देशों के प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा किसी भी उल्लंघन के लिए न्यायालय द्वारा उक्त संस्था के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।