आत्म प्रशंसा के लिए दूसरों पर दबाव अहंकार का प्रमाण

अभी हाल ही की बात है, एक विशुद्ध साहित्यिक पटल जहाँ देश-विदेश के साहित्य साधक अपनी मौलिक रचनाएँ, लेखन, सृजन/विचारों को साझा करने तथा दूसरे शब्दशिल्पियों, विचारकों की रचनाएं पढ़ने/समीक्षा करने, या एक जैसे रूझान रखने वालों के सानिध्य में रहने के ध्येय से जुड़े हुए हैं। शुरू में ही ग्रुप के नियम लागू कर दिए गए और सभी सदस्यों को जोड़ने से पहले पटल संचालकों द्वारा सदस्यों का संक्षिप्त परिचय ले लिया गया था ताकि ग्रुप में कोई भी गैर साहित्य सदस्य न हों और न ही उनके साथ अनावश्यक सामग्री पोस्ट होने पाये।अब ग्रुप अच्छे से सुचारू रूप से चल रहा था हालांकि एक दो दिन के अंतराल में कोई न कोई पटल के नियमों का उल्लंघन करने से बाज नहीं आते। लेकिन अधिकतर गुणी व अनुभवी लोगों से सुसज्जित समूह में ऐसी छोटी-छोटी गलतियाँ नज़रंदाज़ कर दी जाती रहीं या शांतिपूर्वक, बड़ी सूझ-बूझ के साथ आसानी से सुलझा लिया जाता था। लेकिन एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि एक महानुभाव जो पहले 3 बार अपना लम्बा-चौड़ा परिचय जिसमें उनकी डिग्रियां, उपलब्धियों की विस्तृत जानकारी समाविष्ट की गयी थी चौथी बार फिर से साझा किये। उसमें बताया गया था कि वे महाज्ञानी करीब 20 विषयों में एम. ए. एवं अनेक विषयों पर शोध कर पीएचडी किये थे। इस बार तो सभी स्पष्ट रूप से महसूस कर सकते थे कि ये महाशय अपने लेखन/सृजन साझा करने या दूसरों के साथ साहित्यिक चर्चा करने के लिए मंच से नहीं जुड़े हैं, बल्कि वे सिर्फ आत्म प्रशंसा के लिए दूसरों पर दबाव बना कर अपनी श्रेष्ठता का प्रदर्शन करना चाहते हैं और तुरंत सिद्ध भी हो गया जब संचालक मंडल के सदस्यों ने बड़ी विनम्रता के साथ उनके पोस्ट को हटाने का आग्रह किया तो उनका पहले से ही गुब्बारे की तरह फूले हुए अहंकार से सराबोर अहम को चोट पहुंचा और वे संचालकों को अनर्गल भाषा में अपमानित करने लगे। जो कि सचमुच उनकी गर्वोक्ति के सिवाय कुछ भी नहीं था। वास्तव में इंसान के अंदर निहित उच्च मानवीय गुण उन्हें महान बनाते हैं और लोग स्वयं प्रशस्ति परक बातें करते हैं फिर प्रसिद्धी अपने आप ख़ुशबू की तरह फैलती जाती है। जिस व्यक्ति का स्वभाव सहज और सरल होता है, किसी भी परिस्थिति में अपनी स्थित प्रज्ञाता को बरक़रार रखते हुए विनोदी बने रहते हैं वही श्रेष्ठता का विशेष लक्षण है फिर तो समाज में हर लोग उनका सम्मान करते हैं। मानसिक ग्रंथियों का अहंकार जैसे मनोविकार से बुरी तरह ग्रसित होने से व्यक्ति की बातों में तल्खी और व्यवहारों में कटुता आना स्वाभाविक है। ऐसे में इंसान अपने ज्ञान को सिर्फ धरा बैठा रह जाता है क्योंकि अहंकारी से लोग दूरी बना लेते हैं। अहंकार से निजात पाने में हर मनुष्य समर्थ है क्योंकि उसे सिर्फ़ अपनी उसकी चेतना को जगाना है और उसके लिए उसे खुद को सहज सरल बनाना जरूरी है। इसीलिए स्नेह प्रेम और सद्भावना भरे ह्रदय वाले की बोली में माधुर्य व व्यवहार में आकर्षण झलकता है जो व्यक्तित्व को चमकदार व प्रभावशाली बनाता है।

 

शशि दीप ©✍

विचारक/ द्विभाषी लेखिका

मुंबई

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