मध्यप्रदेश में नही थम रहे पत्रकारिता पर हमले

सैयद खालिद कैस
संस्थापक अध्यक्ष
प्रेस क्लब ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स

आज मध्यप्रदेश के होशंगाबाद/नर्मदापुरम जिले के सोहागपुर में सी एम सनराइज स्कूल में व्याप्त भ्रष्टाचार की खबर छापने पर अधिमान्य पत्रकार मुकेश अवस्थी को फोन पर जान से मारने की धमकी का मामला प्रकाश में आया,जिसने फिर एक बार मध्यप्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान की पत्रकार हितेषी कोरी घोषणाओं की पोल खोल दी ।इस घटना ने यह साबित कर दिया कि मध्यप्रदेश में पत्रकार उत्पीड़न की घटनाओं पर अंकुश नहीं लग रहा है।

गौर तलब हो कि मध्यप्रदेश में वर्षो से पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग उठती आ रही है है मगर सरकार के सौतेले व्यवहार का परिणाम है कि सरकार का इस और ध्यान ही नहीं जाता।जिसका परिणाम है कि प्रदेश भर में पत्रकारों पर हमले,धमकियां आम बात हो गई है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (क) के वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जोड़कर देखा जाता है यानी की प्रेस की आजादी मौलिक अधिकार के अंतर्गत आती है। फिर भी पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर लगातार आघात हो रहे हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंटा जा रहा है। इसमें जितने माफिया,अपराधी जिम्मेदार हैं उतनी ही सरकार हैं।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 के अनुसार प्राप्त अधिकारों का उपयोग कर हम भारत वर्ष में लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ पत्रकारिता की गरिमा को कायम रखने का प्रयास कर रहे है। क्योकि वर्तमान में पत्रकारिता अब भी स्वतंत्रता का अनुभव नही कर पा रही है। पत्रकारिता पर माफियाओं सहित राजनेताओं के दखल एंव अतिक्रमण का परिणाम है कि स्वतंत्र पत्रकारिता का अस्तित्व निरन्तर अपना महत्व खोता जा रहा है। पत्रकारिता के सिस्टम में चाटुकारिता की लगी दीमक ने निष्पक्ष पत्रकारिता का क्षरण कर दिया है। कारपोरेट जगत के बढ़ते प्रभाव का परिणाम है कि अब पत्रकारिता जनता की आवाज के स्थान पर धनबल का आधार बन गई है। सत्ता के इर्द गिर्द घूमने वाले पत्रकारों ने पत्रकारिता के स्तर को रसातल तक पहुचा दिया है। इस सबके बावजूद भी यदि हम कहें कि पत्रकारिता स्वतंत्र है तो यह केवल भ्रम मात्र होगा। साथियों यह कटू सत्य है कि हमारी पत्रकार बिरादरी भूमाफिया खनन माफिया रेत माफिया, अपराधियों से अधिक सफेद पोश राजनेताओं की गंदी राजनीति के शिकार हुए हैं। भ्रष्टाचार और घोटाले उजागर करने वाले हमारे सैकडों पत्रकारों ने अपने कर्त्तव्य निर्वाहन में अपने प्राणों की आहूति दी है। हमारे हजारों पत्रकारों के खिलाफ हुई झूठी एफआईआर इसका प्रमाण है कि सच उजागर करने के बदले पत्रकारों को किस प्रकार प्रताड़ना का शिकार होना पड़ता है।

20 अक्टूबर, 2017 को भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा सभी राज्य सरकारें/संघ राज्य क्षेत्र प्रशासन को एक अधिसूचना के माध्यम से एक गाइड लाइन का पालन करने के निर्देश दिए थे जिसके अनुसार
पत्रकारिता ( चौथा स्तंभ) हमारे लोकतंत्र की एक महत्वपूर्ण संस्था है। यह सुनिश्चित करता है कि नागरिक भारत के संविधान के तहत प्रदान किए गए किसी भी भय के बिना स्वतंत्र रूप से अपनी राय व्यक्त करने में सक्षम हैं। यह सुनिश्चित करने वाले पत्रकारों की सुरक्षा और सुरक्षा सुनिश्चित करने का राज्य का कर्तव्य है कि चौथा स्तंभ इस महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है।

2. समय-समय पर मीडिया में रिपोर्ट किए गए पत्रकारों/मीडियाकर्मियों पर हमले की घटनाएं। ऐसे सभी मामलों की तुरंत जांच की जानी चाहिए ताकि अपराधियों पर समयबद्ध तरीके से मुकदमा चलाया जा सके। राज्यों को आवश्यकतानुसार सभी निवारक और निवारक कार्रवाई करनी चाहिए। राज्यों को खतरे की धारणा के आधार पर व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान करने का अधिकार है

3. जबकि ‘पुलिस’ और ‘लोक व्यवस्था’ भारत के संविधान की अनुसूची के तहत राज्य-विषय हैं, इसके महत्व को देखते हुए, सरकार। अपराध की रोकथाम और नियंत्रण के लिए एक मजबूत आपराधिक न्याय प्रणाली की आवश्यकता की ओर समय-समय पर राज्य सरकारों/संघ राज्य क्षेत्र प्रशासनों का ध्यान आकर्षित करता रहा है।

दुर्भाग्य का विषय है कि केंद्र सरकार की बनाई गाइड लाइन का मध्यप्रदेश सरकार पालन नहीं कर रही है। पत्रकार सुरक्षा कानून संबंधी मांग को लगातार अनदेखी करती शिवराज सरकार मध्यप्रदेश के पत्रकारों के लिए दमनकारी नीति अपना रही है यही कारण है कि प्रदेश भर में पत्रकार उत्पीड़न की घटनाओं की बढ़ोत्तरी हो रही है।अपराधी,माफिया यहां तक के पुलिस प्रशासन तक पत्रकारों को प्रताड़ित करने से बाज़ नही आ रहे हैं।
सोहागपुर की घटना कोई पहली या आखिर घटना नहीं है इससे पूर्व प्रदेश के कई जिलों में पत्रकारों पर हुए हमले अपनी कहानी बयान करते रहे हैं।