सर्वशक्तिमान भगवान गणेश के प्रतिरूप में समाया संपूर्ण धरती का कल्याण!

 

वैसे तो भगवान सर्वशक्तिमान के रूप में हम सभी भक्तों के ह्रदय में वास करते हैं लेकिन हमारी गहरी आस्था एवं परम विश्वास है कि प्रथम पूजनीय, सबसे कृपालु, विघ्नहर्ता गणपति बप्पा प्रति वर्ष अपने भक्तों का हाल चाल जानने के लिए पृथ्वीलोक पर पधारते हैं और उनके आने की ख़ुशी में चारों तरफ उमंग व उत्साह का वातावरण छा जाता है। सभी भक्तगण अपनी मनोकामनाओं की लिस्ट लेकर या अपना दुःख दर्द बप्पा से साझा करने या सिर्फ उन्हें कृतज्ञता अर्पित करने के लिए उनका बेसब्री से इंतज़ार करते हैं, उनका ज़ोर-शोर से स्वागत करते हैं, पूजा अर्चना करते हैं, उनके लिए विभिन्न पक्रार के व्यंजन का भोग तैयार करते हैं, उनकी तरह-तरह की मूर्तियाँ में सर्वोकृष्ट कलाओं का प्रदर्शन, उनकी विभिन्न मुद्राएं, विभिन्न रूप, साजोसज्जा देखते ही बनती है। इस प्रकार पृथ्वी पर उत्सव अपने चरम पर होता है।

 

लेकिन आध्यात्मिक रुझान वाले भक्तगण गणपति जी की बाह्य संरचना व आंतरिक दिव्यता पर ध्यान केंद्रित करते हैं ताकि वे उन गुणों को अपने व्यक्तित्व उन्नयन के लिए उपयोग कर सकें। वे तो भगवान हैं इसलिये उनकी आंतरिक दिव्यता को समझ पाना और उसका विश्लेषण कर अपने जीवन में आत्मसात करना तो मनुष्यों के वश की बात नहीं इसलिए अगर हम उनके बाह्य स्वरूप की विशेषताओं पर गौर करें और उसमें से ही कुछ धारण कर सकें तो निश्चित रूप से गणपति बप्पा यहाँ से खुश होकर वापस जायेंगे।

 

आइये देखे सर्वप्रथम उनका प्रचलित नाम गणेश में कितना सुन्दर भाव है गणेश में “ग” का अर्थ है “ज्ञान”, “ण” का अर्थ है “मोक्ष” और “ईश” का अर्थ है “प्रभु”

अब उनका सिर उनका सिर हाथी का है वह भी प्रतीक है इस बात का कि जिस प्रकार घने जंगल में हाथी अपने विशालकाय शरीर से सभी झुरमुट को पार करते हुए निकलता है और बाकी जानवरों के लिए मार्ग प्रसश्त करता है, उसी प्रकार गणेश जी भी विघ्नहर्ता हैं और अपने भक्तों का पथ सुगम बनाते है। भगवान गणेश का बड़ा सिर ज्ञान, बुद्धि और बड़ा सोच का द्योतक है, चेहरे की तुलना में छोटी छोटी आंखें लक्ष्य में पैनी नजर और एकाग्रता का प्रतीक हैं वहीं बड़े कान यह संदेश देता है कि बप्पा कितने कृपालु हैं। उनकी सुनने की क्षमता व दूसरों के दुखों, परेशानियों पर गौर करते हुए उन्हें अपने स्मृति पटल में रखना व निवारण के उपाय इंगित करना, बेहद अनुकरणीय है।

 

उनका हिलता-डुलता सूंड जीवन की हर परिस्थितियों व स्थितियों का सामना करने की क्षमता व दक्षता का वाहक है। भगवान गणेश की चार भुजाएं चारों दिशाओं में सर्वव्यापकता की प्रतीक हैं, एक हाथ में कुल्हाड़ी, सभी बंधनों से दूर होने की सीख देता है, एक हाथ में रस्सी सभी अपनों से ह्रदय से जुड़े रहने की याद दिलाता है, अनुशासित रहना सिखाता है वहीं एक हाथ में लड्डू साधना का फल व आनन्द की अनुभूति का सन्देश देता है और एक हाथ सदा भक्तों के लिए आशीर्वाद की मुद्रा में रहता है। बड़ा पेट सब कुछ स्वीकारने का प्रतीक है, जबकि मूषक की सवारी अपनी कमज़ोरियों पर सवारी करना, और उन पर विजय प्राप्त करने की प्रेरणा देता है। एक दन्त बुरी चीजों का त्याग व अच्छी चीजों को बनाये रखने का प्रतीक है, व छोटा मुँह कम व सटीक बोलने का प्रतीक है।

 

इस प्रकार गणपति बप्पा के बाह्य स्वरुप में ही सम्पूर्ण जीवन दर्शन छुपा हुआ है, और प्रतिवर्ष अगर पूरे 365 दिन न सही तो उनके पृथ्वीलोक प्रवास के इन चंद दिनों में ही, उत्सव के वातावरण में अंतर्मुखी होने की ठान लें, अपने दुर्गुणों पर काबू पाने की सोच लें, तो निसंदेह गणपति बप्पा को अपने भक्तों द्वारा इन प्रयासों पर संतुष्टि होगी और वे खुश होकर लौटेंगे कि उनके भक्तों ने उनसे कुछ ग्रहण किया, सीखा, प्रेरणा ली। और इन्हीं व्यक्तिगत उन्नयन से, सामाजिक बदलाव से सम्पूर्ण मानव समाज का बहुत उत्थान संभव है।

 

  • शशि दीप ©✍
  • विचारक/ द्विभाषी लेखिका
  • मुंबई
  • shashidip2001@gmail.com