धैर्य या सब्र की भावना ही विजित होने का अंतिम प्रमाण देती है!

 

कई बार ज़िन्दगी अच्छी खासी चलती रहती है लेकिन अचानक किसी ऐसी परिस्थिति का सामना करना पड़ता है जब इंसान खुद को पूरी तरह से बेबस और उदास पाता है। पूरी ज़िन्दगी उच्च मानवीय गुणों को अपने व्यक्तित्व में सजाये वह अच्छी व सम्मानजनक जीवन शैली का आदी होता है और ज़िन्दगी अचानक शारीरिक, मानसिक, अर्थिक हर दृष्टिकोण से इंसान को छिन्न-भिन्न कर देती है। पीड़ित इंसान के लिए जैसे यह एक सुनामी की तरह झकझोर कर रख देने वाला अनुभव होता है। हर तरह से परिपक्व, सुलझा हुआ व्यक्तित्व जिसने इंसानियत को आबाद करने के न जाने कितने सत्कर्म किये, न जाने कितने लोग उन्हें प्रेरणास्रोत मानते रहे, और आज वो खुद कटघरे में। ये कैसी विडम्बना है दुनिया की? ऐसा अक्सर होता है, खासतौर पर उनके साथ जिन्हें जीवन की गूढ सच्चाइयों का ज्ञान आम जनता से ज्यादा होता है। वैसे तो सबके जीवन में सुख-दुःख लगा रहता है लेकिन इस तरह का वाकया ज़रा दुर्लभ है। क्योंकि इसमें प्रेरणास्रोत को खुद अपने द्वारा विसरित सभी जीवन दर्शन की बातों को अमल करने में कठिनाई होने जैसा जान पड़ता है। हो सकता है पहले ज़िन्दगी ने ऐसे कठिन इम्तिहान न लिए हों और इंसान फिर भी ईश्वरीय इशारों व दूसरों की जिंदगियों से, विभिन्न हालातों से, ब्रह्माण्ड में बिखरे ज्ञान से व

और भी अनगिनत संसाधनों से सीखते हुए इतनी परिपक्वता हासिल कर लिया। लेकिन अभी की स्थिति तो बेहद कष्टमय, अप्रत्याशित व संकटमय है। इंसान अंदर से हताश हो जाता है, अचानक खामोश हो जाता है, और वह पूरी तरह से अनभिज्ञ रहता है कि ईश्वर ने आखिर ऐसा क्यों किया? उसकी समझ से परे है कि माजरा क्या है। वह हर पल इसी उधेड़बुन में रहता है कि वापस जिंदगी को पटरी में कैसे लाये लेकिन मानसिक थकान के कारण उसे कोई रास्ता भी सहजता से नहीं सूझता। जबकि साधारण ज़िन्दगी में मन सदा चैतन्य व सक्रिय रहता है व हर क्षण व्यस्त व सक्षम बना रहता है। लेकिन मन ही उदास हो तो कुछ सूझता ही नहीं। अपनी ही अनुभूत की हुई बातें, अपना ही चिंतन निरर्थक लगने लगता है। ऐसे में सारी प्रेरणा से ऊपर सब्र का दामन थामना पड़ता है पर सब्र/धैर्य बिल्कुल आसान नहीं जबकि सभी धर्म ग्रंथों में सब्र या धीरज का फल मीठा बताया गया है। गीता में भगवान कृष्ण ने धैर्य का संदेश देते हुए बताया कि हर किसी को किसी कार्य या उद्देश्य की अंतिम स्थिति तक धैर्य बनाए रखना चाहिए। यही वह भावना है जो आपके विजित होने का अंतिम प्रमाण देती है। विजय की घोषणा से पहले ही जो सिर्फ अपनी क्षमता के अनुसार उत्कृष्ट प्रदर्शन को ही विजय मान लेता है कई बार उसे निराशा ही मिलती है।

कुरआन में फरमाया गया- ‘सब्र करने वालों के साथ अल्लाह है।’ सब्र यह है कि अपनी कोई भी चीज चाहे वह कितनी ही बड़ी क्यों न हो, हाथ से जाती रहे तो, हम न हिम्मत खो बैठे और न रोएं धोएं। अल्लाह के फैसले पर राजी रहें और इस यकीन को बनाए रखें कि लिया उसी ने है, जिसने दिया था। ये भी यकीन रखें कि अल्लाह का कोई भी काम बेमकसद नहीं होता। अगर हम सब्र से काम लेते हैं, तो वह हम से खुश होगा और आखिर में अच्छे से अच्छा पुण्यफल भी देगा।

 

तो अंत में इन सभी गूढ़ विचारों का विश्लेषण करने से निष्कर्ष निकलता है कि ईश्वर ने हम सभी को विशेष उद्देश्य के तहत दुनिया में भेजा है और वे सभी को सब्र के कई इम्तिहानों से परखते हुए निखारते जाते हैं, सवांरते जाते हैं ताकि उनकी सभी कृतियाँ, पूर्ण सार्थक जीवन जीने के बाद ही उनके पास वापस लौटें।

 

शशि दीप ©✍

विचारक/ द्विभाषी लेखिका

मुंबई

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