संचित कर्म- निराशा में राम बाण !!

 

इंसान जब सुखी होता है और उसके जीवन में सब कुशल मंगल चल रहा होता है तो उसके मन में ज्यादा गूढ़/गम्भीर सवाल नहीं आते और न ही उसे ज्यादा ईश स्मरण का ध्यान आता। हालांकि कुछ गम्भीर सोच वाले भले इस ओर थोड़ा चिंतन करते हैं और नियमित रूप से कृतज्ञता के साथ जीते हैं लेकिन बाकी सभी सिर्फ दुख तकलीफ में ही अपने आन्तरिक रूप व सार्वभौमिक शक्ति से रूबरू होने की जहमत उठाते हैं। बड़े-बड़े ज्ञानी, संत, महात्मा सदियों से लेकर आज तक इस सच्चाई को परखकर, गूढ़ विश्लेषण कर दुनियादारी में मशगूल लोगों की आँखे खोलने के लिए इशारा करते रहें हैं पर जन साधारण के अन्दर मानवीय प्रवृत्तियों में बदलाव ला पाना टेढ़ी खीर है जब तक वे अपने स्वयं के प्रकाश से खुद को आश्वस्त न करें। ये तो हुई उन सभी लोगों की मानसिक स्थिति जिनका वर्तमान सुखी व संपन्न है।

 

अब उन लोगों की मानसिक हालत को टटोलने का प्रयास करें जो विभिन्न कारणों से खुद को पूरी तरह स्तब्ध, टूटा हुआ व निराश पाते हैं। उन्हें बुरे-बुरे ख्याल आते हैं, भविष्य की कल्पना उन्हें झकझोर देती है। उनके अंदर की हलचल को समझ पाना सबके बस की बात नहीं। लेकिन खुद वैसे हालातों के साक्षी हो चुके हों तो समझना आसान है फिर भी सभी की परिस्थितियों में बहुत अंतर होता है। ऐसे में हताशा का शिकार खुद को पहले भीड़ से बिल्कुल पृथक कर लेता है और शुरू होता है आन्तरिक द्वंद। मन समंदर में उफान चल रहा होता है। अंदर कई सवाल उठते हैं ऐसे में इसमें जो सच्चे, ईमानदार, नेकी, परोपकारी, विनम्रता व मानवता से लबरेज़ बिरादरी सबसे परिपक्व होते हैं वे भीषण मानसिक त्रासदी में भी शुरू में भले जरा टूट सकते हैं लेकिन उनके अंदर निहित संचित कर्म (प्रारब्ध से सहेजे हुए कर्म) जो वे ईश्वर कृपा से पूर्व में इकट्ठे किये होते हैं वही रामबाण साबित होता है। वह संचित दिव्य ऊर्जा उसे दिलासा प्रदान करता है, आशा की किरण बनकर अंदर से विक्षिप्त हृदय को सहलाता है, ईश्वर से मन ही मन संवाद स्थापित करता है। उसे ईश्वर पर अटूट विश्वास होने लगता है और वह आत्म निरीक्षण करता है की भाई मेरा अभी जो बुरा वक्त चल रहा है वह हो सकता है पिछले जन्म का हिसाब किताब हो क्योंकि इस जन्म के कर्मों को तो मैं ऊपरवाले के इशारे पर ही करता रहा हूँ तो वे देर ही सही पर एक दिन मेरी सभी परेशानियों को वे ज़रूर हर लेंगे, मुझे अपने अंदर को मजबूत रखना है। तभी तो सब कहते हैं भगवान के घर देर है पर अन्धेर नहीं। वो अपने सबसे ख़ास बन्दों को ही कठिनतम इम्तिहान देकर ठोक बजाकर देखते हैं, सब उसकी लीला के तहत होता है, हम रो रहे होते हैं वो मुस्कुरा रहा होता है। वो परमात्मा है, बाद में ठीक करना उसके हाथ में होता है और फिर कठिनतम इम्तिहान में उत्तीर्ण होने पर अपने खास बन्दों के लिये इनायतें भी खास रखता है कि बस दुनिया देखती रह जाये।

  • – शशि दीप ©
  • विचारक/ द्विभाषी लेखिका
  • मुंबई
  • shashidip2001@gmail.com