सतत प्रवाहमय बने रहने में ही समझदारी है!

जीवन यात्रा में अगर इंसान को सिर्फ इतनी समझ रहे कि वो एक सही दिशा में आगे बढ़ रहा है तो बस उसे उस पथ में सतत चलते रहने की आवश्यकता होती है। अगर उसके अंदर एक जज़्बा, एक उद्देश्य, एक ज़िद्द है कि कुछ सार्थक प्रयास करना है, फिर उसे सही मुहूर्त के इंतज़ार में नहीं बैठना है, क्योंकि कल क्या हो कौन जानता है। वैसे भी अगर हमारी सोच जायज़ होती है, उसमें खुद का उन्नयन व दुनिया की भलाई समाहित होती है तो देर-सबेर खुदा की मर्ज़ी का भी पता चल ही जाता है और हम अपने रूझान के क्षेत्र में कार्य करने लगते हैं। आगे बढ़ते हुए बिना कभी शास्त्रों का सुनियोजित अध्ययन किये या बिना कभी गंभीर स्वाध्याय किये भी अपने अन्दर के अल्पज्ञान व जीवन के तजुर्बों से, प्रकृति से, बड़ों व बुद्धिजीवियों के सानिध्य में सीखते हुए मन की लहरों के साथ चलते हुए प्रवाहमय बने रह सकते हैं। बड़े-बड़े महापुरूषों जिनकी जयंती में आज सारा देश उन्हें नमन कर रहा है, महावीर जयंती व बाबा साहब अम्बेडकर की जन्म-जयंती इन महापुरुषों का जीवन हमें अपार प्रेरणा देता रहा है और हमें मजबूत इरादों के साथ अपने उद्देश्यों के प्रति सतत संकल्पबद्ध रहने की ताक़त देता है।

गृहस्थ आश्रम में घर गृहस्थी संभालते हुए लेखनी, पत्रकारिता व समाज सेवा में लगातार समर्पित रहने से मेरे समक्ष भी लोग अक्सर सवाल करते हैं कि “आप इतनी सक्रिय कैसे रह पाती हैं? कभी चुपचाप बैठकर आराम से बैठने का मन नहीं करता?” और भी कई ऐसे सवाल, तो कभी-कभी परिवार का तनिक दबाव खासतौर से जब भी सामाजिक दायित्वों की वजह से पारिवारिक प्राथमिकताएं ज़रा भी प्रभावित हो, एतराज़ शुरू और सब काम बंद करके चुपचाप बैठकर घर संभालने का संकेत मिलने लगता है।इन सब बातों से तनिक प्रभावित होते हुए कभी-कभी मेरे अंदर भी अचानक विक्षोभ उत्पन्न होने लगता है कि बस बहुत हुआ अब बाद में देखेंगे, बच्चे जब कॉलेज जायेंगे तब संभवतः ज्यादा वक्त मिलेगा। लेकिन दूसरे ही पल ये मीमांसा ज़ोर से आगे धकेलती है कि बाद को कौन जानता है? और फ़िर दूसरों के दृष्टिकोणों को नज़रअन्दाज करते हुये, स्वयं को मौन में स्मरण कराना पड़ता है मैं हूँ कौन? और ईश तत्व अनुभूत करते हुए स्थिर बैठने का विचार छोड़ तुरंत अपनी कल्पना, अपनी सोच, अपनी योजना को क्रियान्वयन करना पड़ता है और प्रवाहमय बने रहना ही आत्मिक संतुष्टि देता है।

इस प्रकार दृढ विश्वास के साथ यदि कोई गहरी समझ अंतर्मन में प्रकट हों तो उसमें शीघ्र ही अमल करना आवश्यक है। क्योंकि ये तो सर्वविदित है कि हमारा जीवन हमारी योजनाओं के अनुसार नहीं चलता, विधाता के अनुसार चलता है, इसलिए बिना एक पल बर्बाद किए, अपनी आंतरिक भावना का सम्मान करते हुए उस पर तुरंत तामील होनी चाहिए इसी में समझदारी है।

 

शशि दीप 

विचारक/ द्विभाषी लेखिका

मुंबई

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