सिंधिया की गद्दारी के कारण मध्यप्रदेश ने खोया था कमलनाथ जैसा दूरदृष्टा मुख्यमंत्री
झूठ, फरेब और गद्दारी के वो 20 दिन, 1-20 मार्च की घटनाक्रम है प्रदेश के इतिहास का काला अध्याय
विजया पाठक,
आज ही के दिन 20 मार्च 2020 को कमलनाथ सरकार गिरा दी गई थी। इसके पीछे ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक मंत्री-विधायकों का कांग्रेस पार्टी के प्रति गद्दारी प्रमुख रही। पर्दे के पीछे की कहानी उसी दिन चालू हो गई थी जिस दिन कमलनाथ सरकार बनी थी, सिंधिया का लालच और सरकार कंट्रोल की करने की चाह अंत में सरकार गिराने की प्रमुख वजह बनी। पहली कैबिनेट के पहले सरकार पर दवाब बनवाकर ग्वालियर में सैकड़ों एकड़ जमीन की लीज हो या अपने समर्थक मंत्रियों को मनमुताबिक विभाग। सिंधिया हर जगह-हर समय बाल हठ करते थे, जिसे कमलनाथ अभिभावक समान उनकी सब मांगें मान जाया करते थे। सिंधिया ने पैसा कमाने का कोई जरिया नहीं छोड़ा अपना कलेक्टर, अपना एसडीएम, अपना राजस्व मंत्री सबको एक ताने-बाने में पिरोकर ग्वालियर में जमीन हड़पने का बडा सींडीकेट बना दिया। ज्योतिरादित्य के स्वच्छ चेहरे के पीछे की सच्चाई अगर किसी को पता करना है तो वो ग्वालियर जाए। मेरी भी उनकी इमेज को लेकर जो भ्रम था वो ग्वालियर जा कर खत्म हो गया। जितना आदर इनके पिता स्वर्गीय माधवराव सिंधिया का ग्वालियर में है उतनी ही ज्योतिरादित्य सिंधिया की इमेज खराब है, वो ग्वालियर के सबसे बड़े भू-माफिया है। जिस जमीन पर उनका दिल आ गया उसको कब्जा कर ही मानते है इसी के लिए सत्ता का साथ जरूरी है।
धोखेबाज के कारण सत्ता से बाहर हुई कांग्रेस
सिंधिया की प्रेशर पॉलिटिक्स से तब के मुख्यमंत्री कमलनाथ बहुत आहत थे। उन्होंने ज्योतिरादित्य सिंधिया को मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के लिए आलाकमान से बात की, वो चाहते थे की सिंधिया यहां अध्यक्ष बने पर इस मामले पर आलाकमान शांत रहा। सूत्रों के मुताबिक सिंधिया और उनके मंत्रियों के 15 महीने में भ्रष्टाचार की मोटी फाइल आलाकमान तक पहुंच गई थी। दिल्ली ने सिंधिया को सुनना बंद कर दिया था। कमलनाथ एक स्वच्छ छवि की राजनेता है, एक सफल उद्योगपति घराने से आते है, देश के बड़े-बड़े उद्योगपति उनको अपना गुरु मानते थे। एक तरफ वो मध्य प्रदेश को औधौगिक प्रदेश बनाने में जुटे हुये थे वहीं सिंधिया के मंत्री प्रदेश को लूटने में व्यस्त थे। जनवरी 2020 से कमलनाथ ने अपना वीटो इस्तेमाल करना चालू कर दिया। बस इसी बात से सिंधिया और उनके मंत्री को अपना भविष्य खतरे में दिखने लगा। आलाकमान सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने सिंधिया से मिलने को मना कर दिया और कमलनाथ के चाहने के बावजूद उनको प्रदेश अध्यक्ष नहीं बनाया। इसी के बाद सिंधिया ने सरकार को घेरना चालू कर दिया। फरवरी, 2020 में सरकार के खिलाफ सड़क पर उतरने को लेकर एक बड़ा बयान आया, जिसे कमलनाथ ने खारिज कर दिया था। असली खेल 1 मार्च 2020 से प्रारंभ हो गया था भाजपा ने ऑपरेशन लोट्स वन चालू किया जिसके चलते कुछ निर्दलीय विधायक और बसपा-सपा के समर्थित विधायक गुरू ग्राम में एक होटल में जुटे पर ऑपरेशन लोट्स 1 जब फेल हो गया तो सिंधिया ने एक मौका देखा, चूंकि अब उनके दाल कांग्रेस पार्टी में गल नही पा रही थी, मौका देखकर उन्होंने पाला बदल दिया। कमलनाथ ऐसे दो पाटों में फंस गए और वास्तव में अगर वो सरकार बचा भी लेते तो वह भ्रष्ट्राचारी मंत्री आज प्रदेश खा चुके होते। भाजपा तो राजनीतिक दल है कोई सामने से आकर सरकार गिराने का ऑफर दे तो उनको क्या आपत्ति होगी।
शिवराज की कुर्सी पर है सिंधिया की नजर
अब सिंधिया की मुख्यमंत्री की कुर्सी पे नज़र है। इंदौर में एक कार्यक्रम में भाजपा के बैनर के बिना रेनडेव्यू विथ ज्योतिरादित्य सिंधिया कार्यक्रम आयोजित हुआ जिसमें इंदौर के सैंकड़ों प्रबुद्ध लोगों को बुलाया गया। सोशल मीडिया सैकड़ों पेज में सिंधिया फॉर सीएम चल रहा है। शायद कमलनाथ के बाद अब शिवराज की बारी है, इसमें मौजूदा समय के संघ से भाजपा में नवीन व्यक्ति की भूमिका भी काफी महत्वपूर्ण रहेगी। अपने आप को वो मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट कर रहे है जैसे ग्वालियर में झाड़ू लगाना, टैगलाइन भी ऐसी चल रही है की बदल गए महाराज। अब मुख्यमंत्री किसको बनाना है या बदलना है वो भाजपा जाने। पर सच्चाई यह है की अभी भी प्रदेश भाजपा में शिवराज सिंह से बड़ा और स्वच्छ कोई चेहरा नहीं है।