हिजाब से परेशानी वाले समाज में व्याप्त महिला उत्पीड़न की प्रथाओं पर सब मौन!

गत दिनों कर्नाटक के शिक्षण संस्थान में धर्म विशेष की छात्राओं के हिजाब का मामला पूरे देश में चर्चा का विषय बना। कुछ संकीर्ण मानसिकता के उपासकों द्वारा जिस प्रकार का प्रदर्शन किया वह किसी से छिपा नहीं। समर्थन और विरोध के स्वरों के बीच मध्यप्रदेश सरकार के शिक्षा मंत्री ने भी लगे हाथ हिजाब मुद्दे पर अपनी रोटियां सैकनी चाही। बयान जारी कर दिया कि अगले शिक्षा सत्र ने मध्य प्रदेश में भी गणवेश लागू होगा हिजाब पर पाबंदी लगाई जाएगी। मुद्दा गरमाया शिवराज सरकार के खिलाफ सबसे पहले कांग्रेस के फायर ब्रांड विधायक आरिफ़ मसूद ने शिवराज सरकार के खिलाफ विरोध दर्ज कराया ।मामला बिगड़ते देख शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ने वीडियो जारी कर सबसे पहले अपना बयान बदला और घोषणा की कि आगामी सत्र में ऐसी कोई योजना नहीं है।मामले की गंभीरता को भांप कर गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा भी सामने आए और उन्होंने स्पष्ट किया कि सरकार के पास ऐसा कोई प्रस्ताव लंबित नही है और सरकार का हिजाब के खिलाफ कोई इस्टेंड नही है। मध्यप्रदेश में तो फिलहाल इस मुद्दे पर चादर पड़ गई।कर्नाटक में मामला उच्च न्यायालय में लंबित है।

हिजाब मामले को साम्प्रदायिक बनाकर राजनीतिक रोटियां सेंकने वाले कही न कही पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव की भगवा रंग देना चाहते थे या यह कहें दे गए। सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि देश का चौकीदार कहने वाले प्रधानमंत्री जी की खामोशी चिंता का विषय है। मुसलमान महिलाओ के तीन तलाक पर घड़ियाली आंसू बहाने वाले तथाकथित नेताओ की खामोशी दुखदाई है। किस तरह मुस्लिम हिजाब धारी छात्राओं को मुठ्ठी भर आतंकियों द्वारा जिस प्रकार प्रताड़ित किया उसकी विडियो सोशल मीडिया पर सबने देखी । मगर उन आतंकियों के खिलाफ ठोस कदम नहीं उठना पूरे देश के ऐसे आतंकियों के मनोबल को बढ़ाने की संजीवनी साबित हुआ है।
चार दिन बाद फिर संस्कृति बचाने के लिए कुछ तथाकथित निकलेंगे और भगवा रंग की अस्मिता को कलंकित करते नजर आएंगे।यह वह लोग हैं जिनको 14फरवरी का वेलेंटाइन डे धर्म संस्कृति के खिलाफ दिखता है।परंतु साल भर वह जो प्रेम करते है उसकी शुद्ध मानते हैं,इनमे से बहुत से ऐसे भी होंगे जो ब्यूटी पार्लर, स्पा की आड़ में सेक्स रैकेट चलाते पाए जाते हैं इंदौर में गत दिनों पुलिस के छापे में बेनकाब हुए हैं। परंतु प्रेम दिवस पर उनकी आस्था संस्कृति बचाने के लिए ऐसे जागृत होती है कि वह कानून तक अपने हाथ में लेने से बाज नहीं आते।

आज इस लेख लिखने का मूल कारण प्रेम दिवस के समर्थन या संस्कृति बचाओ वालो की आलोचना नही वरन हिजाब पर उंगलियां उठाने वालो को आइना दिखाना है। उम्मीद है मेरा यह आलेख उन तथा कथित धर्म रक्षकों,महिला अधिकार संरक्षको की पीड़ा देगा जो अपने धर्म से अधिक पराए धर्म की महिलाओ की आजादी और उनकी रक्षा के लिए चिंता करते हैं।

भारतीय महिला और कुप्रथाओं का दंश

वैसे तो भारत समेत दुनियाभर में महिलाएं हर क्षेत्र में अपने हुनर और काम का लोहा मनवाकर एक अलग पहचान बना रही हैं। किसी भी क्षेत्र में अब महिलाएं पुरुषों के कदम से कदम मिलाकर चल रही है। फिर भी भारत में कई जगहें ऐसी हैं, जहां महिलाओं को कुप्रथाओं का दंश झेलना पड़ रहा है। कुछ प्रथाएं तो ऐसी हैं, जिनके बारे में सुनकर हर कोई हैरत में पड़ सकता है। आज हम आपको भारत का दिल कहे जाने वाले मध्य प्रदेश के एक गांव में मानी जाने वाली एक ऐसी प्रथा के बारे में बता रहे हैं, जिसके बारे में सुनकर आप दंग रह जाएंगे।
“धड़ीचा प्रथा “

मध्य प्रदेश के शिवपुरी में भी एक प्रथा प्रचलित है जिसे धड़ीचा प्रथा के नाम से जानते है। दरअसल यहां इस प्रथा की आड़ में गरीब लड़कियों का सौदा होता है और उनकी मंडी लगती है। इसमें पुरुष अपनी पसंदीदा औरत की बोली लगाते हैं। सौदा तय होने के बाद बिकने वाली औरत और खरीदने वाले पुरुष के बीच अनुबंध किया जाता है और यह अनुबंध 10 रुपये से लेकर 100 रुपये तक के स्टाम्प पर किया जाता है। घट रहा लिंगानुपात ही इसका मुख्य कारण है। जानकारों के मुताबिक यहां हर साल करीब 300 से ज्यादा महिलाओं को दस से 100 रूपये तक के स्टांप पर खरीदा और बेचा जाता है और शर्त के अनुसार खरीदने वाले व्यक्ति को महिला को एक निश्चित रकम देनी पड़ती है। रकम अदा करने के बाद, रकम के अनुसार महिला निश्चित समय के लिए उस व्यक्ति की बहू या पत्नी बन जाती है और अनुबंध खत्म होने के बाद लौटी महिला का दूसरे अन्य पुरुष साथ सौदा कर दिया जाता है।

यहां कोई भी शख्स अपने लिए किराए पर बीवी ला सकता है। महिलाओं को किराए पर अपनी बीवी बनाने का यहां रिवाज है। धड़ीचा’ प्रथा देशभर में खासी प्रचलित है। प्रथा के तहत, देश का कोई भी अमीर शख्स इस गांव की लड़कियों को बतौर बीवी किराए पर ले सकते हैं। लेकिन ये बंधन जिंदगीभर का नहीं होता। ये सौदा महीने या साल के हिसाब से होता है।
एग्रीमेंट खत्म होने पर पुरुष तय करता है ये बात प्रथा के तहत किराए पर पत्नी लेने के लिए यहां पुरूष और लड़की के घरवालों में पहले एक रकम तय की जाती है, जो 500 से 50 हजार रुपए तक हो सकती है। यहां किराए पर बीवी लेने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं और जिसे जितने समय के लिए लड़की चाहिए, वो उसे ले जा सकता है। रकम तय करने के बाद ये तय किया जाता है कि, सौदा कितने समय तक का होगा। इसके बाद 10 रूपए के स्टांप पेपर पर शर्ते लिखकर दोनों पक्ष हस्ताक्षर करते हैं। इसके बाद संबंधित महिला कोपुरूष के हवाले कर दिया जाता है। सौदा तय होने के बाद उस महिला को तय वक्त तक बीवियों वाली सारी जिम्मेदारियां निभानी होती हैं। एग्रीमेंट खत्म होने पर ये पुरूष पर निर्भर करता है कि, वो आगे नया एग्रीमेंट करके उसी महिला के साथ रहना चाहता है या फिर दूसरी बीवी किराए पर लेता है।

सिर्फ शिवपुरी में ही नहीं प्रचलित ये प्रथा

आपको बता दें कि, इस प्रथा का चलन सिर्फ मध्य प्रदेश के शिवपुरी में ही नहीं, बल्कि गुजरात के भी कुछ गांव ऐसे हैं, जहां ‘धड़ीचा प्रथा’ मनाई जाती है। हैरानी की बात है कि किराए पर बीवी की कुप्रथा आज से नहीं बल्कि कई दशकों से लगातार ऐसे ही चली आ रही है। कमाल तो ये है कि, इस कुप्रथा के खिलाफ आज तक किसी ने भी आवाज नहीं उठाई। किसी भी सरकार ने इस प्रथा को समूल नष्ट कर महिलाओ को इस दंश से मुक्त नहीं कराया। महिला आयोग सहित महिला अधिकारो की रक्षा का दम भरने वाले आज तक इस प्रथा के खिलाफ सड़कों पर नही निकले। केंद्र सरकार या राज्य सरकारें इस प्रथा को अवैधानिक नही करा पाए कोई कानून नहीं बने।

मध्यप्रदेश की ‘धड़ीचा प्रथा’ की भांति राजस्थान की सांसी जनजाति में पाई जाने वाली कुकड़ी प्रथा भी महिलाओ की अस्मिता को तार तार करती है।

क्या है कुकड़ी प्रथा?

एक लड़की शादी करके अपने ससुराल आती है, सुहागरात पर उसका पति कमरे में आता है, पति के हाथों में सफ़ेद धागे का एक गुच्छा है. देखकर लड़की घबरा जाती है. वो जानती है कि क्या होने वाला है। क्योंकि ऐसा वो अपने घर की औरतों से हमेशा से सुनती आई है. पति ये चेक करने वाला है कि उसकी पत्नी वर्जिन है या नहीं. लड़की रोती रहती है. थोड़ी देर बाद उसका पति वो धागा लेकर बाहर जाता है. चीख-चीखकर सबको बताता है, ‘अरे, वो ख़राब है।

लड़के के घर वाले अब उस नई दुल्हन से उसके पुराने बॉयफ्रेंड का नाम पूछते हैं. लड़की रो-रोकर कहती रह जाती है कि उसने कभी ऐसा कुछ नहीं किया है। ससुराल वाले उसको खूब पीटते हैं. कहते हैं, पंचायत के सामने वो लड़की मान ले कि उसके जीजा के साथ उसके फिजिकल रिलेशन थे. रोज़ की पिटाई से थककर एक दिन वो लड़की मान लेती है. अब ससुराल वाले लड़की के पिता और जीजा के पीछे पड़ जाते हैं. खूब सारा पैसा मांगते हैं. लड़की के वर्जिन ना होने की भरपाई के तौर पर जब तक पैसा नहीं मिल जाता. लड़की को जानवरों से भी बुरी तरह पीटते हैं. जैसे ही पैसा मिल जाता है, वो बहू घर में सबकी दुलारी हो जाती है. सौ सालों से भी पुराने इस घटिया से तरीके को ‘कुकरी प्रथा’ कहा जाता है।

हाल तो ये है कि लड़के वाले दुआ करते हैं कि उनकी होने वाली बहू वर्जिन ना हो. ताकि उसके मायके वालों और पुराने बॉयफ्रेंड से लाखों रुपए वसूल किए जा सकें. अगर लड़की वर्जिन होती है, तब भी उसको मारपीट कर किसी का फर्जी नाम लेने के लिए मजबूर कर दिया जाता है. जब पैसे या ज़मीन मिल जाती है. लड़की घर की मालकिन बन जाती है. एक तरह से ये दहेज़ के बाद एक और दहेज़ चूसने का तरीका है.

इस मुद्दे पर पंचायत भी अक्सर लड़के वालों के परिवार की ही तरफदारी करता है. पंचायत की एक बैठक में बीस पच्चीस हज़ार रूपए से ज्यादा पैसे लग जाते हैं. लड़की के परिवार वाले पहले ही शादी में इतना खर्च कर चुके होते हैं. पंचायत को बुलाने के पैसे अक्सर नहीं होते. फिर मुआवजा देने के लिए भी पच्चीस-तीस हज़ार चाहिए होते हैं. फिर एक तरफ वो लड़का होता है. जिसका नाम लड़की के ससुराल वालों ने जबरदस्ती उससे कुबूल करवाया होता है. भले उस लड़के के लड़की से फिजिकल रिलेशन ना भी हों. तब भी उसको पैसे देने ही पड़ जाते हैं।

इसकी शुरुआत कुछ इस तरह से हुई थी कि जब विदेशी भारत आए. वो औरतों को उठाकर ले जाते थे. उनका रेप करते थे. फिर जहां मन करता था, फेंककर चले जाते थे. उस ज़माने में राजघराने अपनी नई बियाही बहुओं की वर्जिनिटी जांचने के लिए धागे का इस्तेमाल करते थे. चेक करना चाहते थे कि जो लड़की उनके घर बहू बनकर आई है. कहीं उसके साथ भी तो रेप नहीं हुआ था. फिर वक़्त के साथ राज घरानों से ये घटिया प्रथा ख़त्म हो गई. उनकी उतरन सांसी समुदाय वालों ने ओढ़ ली. और ऐसी ओढ़ी कि इसको अपना बिज़नेस ही बना लिया।

2014 में विजय एन शंकर की एक किताब आई थी “शैडो बॉक्सिंग विद द गॉड्स “किताब में हमारे समाज की ऐसी बहुत सारी बुराइयों का ज़िक्र है. जो आज भी चली आ रही हैं. उसमें इन गलीज तरीकों का भी ज़िक्र है।

@सैयद खालिद कैस