डेजा वू की अनुभूति: एक विलक्षण अभिव्यंजना!

हमारे जीवन काल में कई बातें बेहद रहस्यमय तरीके से प्रकट होते हैं। मुझे लगता है बहुतों ने “डेजा वू” का अनुभव किया होगा। यह एक प्रचलित फ्रेंच वर्ड है, जिसका मतलब भूतकाल की घटना को फिर से अनुभव करना। जब भी हमारे वर्तमान में कोई ऐसी बात हो जाती है जो पूर्व की किसी घटना से मेल खाती है, तब हमारा अवचेतन मन उस दरम्यान मिले अनुभव को हमें ताज़ा रूप में प्रेषित करता है, जिससे कभी-कभी ऐसी बातें भी स्पष्ट हो जातीं हैं जो भूतकाल में चेतन मन ठीक तरीके से न समझ पाया हो।

इसी सन्दर्भ में एक बेहद रोचक रहस्य जो मैंने अत्यंत गम्भीरता व आत्मीयता से महसूस किया है वो यह कि जीवन यात्रा में कभी-कभी अचानक किसी सहयात्री के सानिध्य में रहते हुए ऐसे लगने लगता है जैसे हम उन्हें पहले से जानते हैं हालांकि घनिष्टता हाल ही में हुई हो। इस जुड़ाव में अक्सर, परस्पर भाव बोध या टेलिपैथी भी होती है या विचारों का बिल्कुल एक जैसा होना पाया जाता है जो इस विलक्षण अभिव्यंजना की आश्वस्तता को सारभूत करता है।क्या इसे आत्मीय संबंध न कहें? क्योंकि सानिध्य में आने वाले लोग तो इस ओर न ध्यान केंद्रित करते न ऐसी कोई चेष्टा मन में रखते फिर भी ये प्रकट होता है इसलिए यह ईश्वरीय वरदान के अलावा कुछ हो ही नहीं सकता। इसे गहराई से समझने के लिए रक्त सम्बन्धियों या पति-पत्नी के रिश्तों का उदाहरण विचार में ला सकते हैं। जैसे पारिवारिक रिश्तों को हम भले ही बहुत प्रेम करते हैं लेकिन ज़रूरी नहीं आत्मीय जुड़ाव हो और इसी जुड़ाव के अभाव में संबंध उथले ही रहते हैं और महज एक दूसरे के प्रति कर्तव्य पूरा करने तक ही सीमित रह जाते हैं, कभी-कभी सूख भी जातें है। ऐसी स्थिति में आध्यात्मिक भावनाओं का समावेश करके संबंधों को पुनर्जीवित किया जा सकता है ताकि शाश्वत बंधन स्थापित हो सके। पर उस ओर रूझान होना भी ईश्वरीय कृपा से ही सम्भव है।

इस प्रकार डेजा वू की दिव्य अनुभूति संसार में किसी ईश्वरीय उद्देश्य पूर्ति के लिए ही प्रकट होती है, यही कारण है कुछ लोगों से हम तुरंत जुड़ जातें हैं और बिना कुछ किए सहजता से प्रगाढ़ भरोसा बैठ जाता है। फिर परस्पर आदर भाव, स्नेह/अनुराग से यह दिन-ब-दिन दृढ़ता, पवित्रता व स्थिरता कायम करता जाता है। चूंकि यह दिव्य सत्ता द्वारा संचालित रहता है इसलिए एक दूसरे से अपेक्षाओं का औपचारिक बंधन आड़े नहीं आता और आता भी हो तो क्षणिक होता है। गहन विचार के फलस्वरूप यह भाव स्पष्ट व मेघशून्य हो जाता है कि यह कोई साधारण अनुभूति की उपलब्धि नहीं है। वे लोग बेहद भाग्यशाली होते हैं जिन्हें ऐसी ईश्वरीय कृपा अर्जित हो पाती है और वे ऐसे कुछ आत्माओं से जुड़ पातें हैं जो जीवन में बेहद समृद्ध होने का भान कराते हैं।
शशि दीप मुंबई