शादी “सादी” और सादगी से मीलों दूर!
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नाम है शादी (या कहें कि ‘सादी’) और ‘सादगी’ से मीलों दूर। कर्जा लेकर भी ‘सादी’ को ‘भयंकर भव्य’ बनाना है। दिखावे के पीछे आज लोग पागल हैं। मर जायेंगे पर दिखावा नहीं छोड़ेंगे। दिखावा भी कैसा? ऐसा कि जिसकी जिन्दगी में कहीं कोई उपयोगिता ही नहीं है। भयंकर सजावट से लेकर भीषण ‘खिलावट’ तक! साधारण जलपान और भोजन से सख्त परहेज वाला दिखावा जरूर करना है जिसमें ज्यादातर खाना बर्बाद होता है। इस सबके ऊपर ‘सादी’ को मसालेदार बनाया जा सके, इसके लिये बेहद मंहगी शराब, और वह भी जरूरत से बहुत ज्यादा, मुहैय्या कराना ‘सादी’ के इवेंट से भी ज्यादा जरूरी इंतजामों में आता है। जब तक पीकर पियक्कड़ों की तबियत भूलुंठित होकर इज्जत से न खेले तब तक जनवासे से द्वारचार तक की बारातियों की यात्रा का भव्य समापन नहीं हो पाता। हालांकि वधूपक्ष वाले भी इस तरह का अपना खुद का इज्जत भरा शराबी कार्यक्रम भी अलग से रखते हैं, पर बारातियों की शराब पचाने की ताकत का प्रदर्शन सार्वजनिक होता है, जबकि वधूपक्ष वालों का थोड़ा सा प्रच्छन्न होता है। पर होता जरूर है। आखिर भव्यता का भोंडा प्रदर्शन न हुआ तो ‘सादी’ ही कैसी? ‘सादी’ बार-बार थोड़े ही होती है! फिर थीम्स पर म्यूजिक और डांस वाले दिखावे का तो कोई ठिकाना ही नहीं है जिसमें महान ‘डांसिंग लंगड़े’ लोग भोंडी थिरकन में लहूलुहान हुये जाते हैं। और न जाने क्या क्या? मतलब कि ‘सादी’ में कुछ ऊलजलूल रस्म जरूर जोड़ लेनी है, जिसमें खूब अनाप-शनाप पैसे खर्च होते हों। जबकि किसी भी रस्म की जरूरत उसकी सामाजिक उपयोगिता मात्र पर आधारित होनी चाहिये। पर यहां तो कुएं में ही भांग पड़ी है। ‘सादी’ में कुछ भी ‘सादा’ न करके सिर्फ ‘बरबादा’ (अशुद्ध है, पर राइम करता है) करना है!
प्रभाकर सिंह,प्रयागराज (उ. प्र.)