प्रेस क्लब ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स ने राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर सौंपा ज्ञापन

भोपाल। आज राष्ट्रीय प्रेस दिवस के अवसर पर प्रेस क्लब ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स द्वारा पत्रकार सुरक्षा कानून सहित पत्रकार कल्याण आयोग की मांग का महामहिम राष्ट्रपति के नाम संबोधित ज्ञापन भोपाल में राज्यपाल सहित प्रदेश के मुख्यमंत्री को सौंपा।
संगठन के संस्थापक अध्यक्ष सैयद खालिद कैस के नेतृत्व में एक प्रतिनिधि मंडल ने आज सुबह राजभवन जाकर महामहिम की अनुपस्थिति में उनके निज सहायक को और मुख्य मंत्री की अनुपस्थिति में उनके निज सहायक को सौंपे गए ज्ञापनों में मध्यप्रदेश में पत्रकारों के खिलाफ झूठी एफ आई आर दर्ज होने, हत्या ,हत्या के प्रयास सहित पुलिस,प्रशासन द्वारा पत्रकारों को प्रताड़ित करने की प्रथा पर रोक लगाने की मांग की।
इस अवसर पर संगठन के संगठन महासचिव बीपी बंशल, पुष्पा चंदेरिया, शाहाब मलिक,आसिफ खान आदि मौजूद रहे।

प्रेस क्लब ऑफ़ वर्किंग जर्नलिस्ट संस्थापक अध्यक्ष सैयद ख़ालिद कैस ने कहा कि पिछ्ले एक दशक में संपूर्ण भारत में पत्रकारों की हत्याओं की घटनाओ ने प्रेस की आज़ादी पर सवाल उठाया । भूमाफियाओं , अपराधियों और सफेद पोश अपराधियों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वाले पत्रकारों की निर्मम हत्याएं साक्षी हैँ । सरकार द्वारा पत्रकार सुरक्षा के नाम पर कौई ठोस कदम नही उठाना भी इस बात का प्रमाण है कि सरकार खुद नही चाहती की कि प्रेस की आज़ादी बरकरार रहे ।
आज राष्ट्रीय प्रेस दिवस के अवसर पर हम यह मेहसूस कर रहे हैँ कि निरन्तर प्रेस की आज़ादी पर आघात किये जा रहे हैँ , निरन्तर प्रेस पर अंकुश लगाए जा रहे हैं । पत्रकारों के बीच असुरक्षा की भावना दिन प्रतिदिन विकराल रूप ले रही है। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहलाने वाली पत्रकारिता अपने आपको असहाय मेहसूस कर रही है । प्रेस परिषद के गठन 1966से वर्तमान समय तक पत्रकार सुरक्षा क़ानून का लागू नही होना इस बात का प्रमाण है कि भारत में प्रेस की स्वतन्त्रता केवल कहने मात्र की है वास्तविकता में प्रेस की आजादी दिन ब दिन क्षीण होती जा रही है । भारतीय प्रेस परिषद स्वयम में प्रासंगिकता की भूमिका मैं है जो देख सुन सब रहा है , करना भी बहुत चाहता है , परन्तु असहाय है कुछ चाहकर भी करने की स्थिति में नही है । ऎसे हालात में राष्ट्रीय प्रेस दिवस मनाने का क्या औचित्य ? जब प्रेस आज़ाद ही नही तो प्रेस दिवस का क्या औचित्य ?
पत्रकार सुरक्षित नही तो क्या अर्थ बचा है भारतीय प्रेस परिषद का । ऎसे हालात में अर्थहीन है राष्ट्रीय प्रेस दिवस ?