मुसलमानों के खिलाफ हिंसा के बाद त्रिपुरा में सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ताओं और मानवाधिकार संगठनों की जांच

_जांच दल दिल्ली में विस्तृत तथ्यात्मक जांच रिपोर्ट जारी करेगा_

_जांच दल विस्तृत तथ्यात्मक जांच रिपोर्ट राष्ट्रपति, मुख्य न्यायाधीश और विभिन्न आयोगों को भेजेगा_

अगरतला
01 नवंबर 2021

त्रिपुरा में मुसलमानों के खिलाफ हिंसा की घटना के बाद जिस तरह से स्थिति विकसित हुई है, उससे पता चलता है कि अगर सरकार चाहती तो इस तरह की भयानक घटना को होने से बचा सकती थी। यह सरकार और भाजपा के राजनीतिक हितों की पूर्ण विफलता है। हिंसक देशभक्ति की विचारधारा ने राज्य पर कब्जा कर लिया है और जनता के बीच इसका विशिष्ट समर्थन है।

भारत के सर्वोच्च न्यायालय, नई दिल्ली और मानवाधिकार संगठनों के अधिवक्ताओं की एक संयुक्त जांच टीम द्वारा एक तथ्यात्मक जांच में प्रारंभिक तथ्य सामने आए हैं। जांच दल ने एक संयुक्त प्रेस बयान जारी कर कहा कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय, नई दिल्ली और मानवाधिकार संगठनों के अधिवक्ताओं की एक संयुक्त जांच टीम ने त्रिपुरा में कई प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया। जांच दल ने पीड़ित पक्षों से मुलाकात कर घटना की जानकारी व तथ्य जुटाए। जांच दल इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमले की घटनाओं को लेकर त्रिपुरा में 51 जगहों पर विरोध प्रदर्शन हुए। प्रदर्शन के बाद हिंसा शुरू हो गई। जांच दल के सामने जो तथ्य सामने आए हैं, वे मुख्य रूप से संकेत देते हैं कि यदि सरकार ने समय पर उचित कदम उठाए होते तो घटना इतना विकराल रूप नहीं लेती। उनका कहना है कि जांच टीम जल्द ही दिल्ली में अपनी विस्तृत रिपोर्ट जारी करेगी और यह रिपोर्ट भारत के राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, केंद्रीय गृह सचिव, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को भेजी जाएगी।

जांच दल में संयुक्त रूप से अधिवक्ता एहतेशाम हाशमी (भारत के सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता), लोकतंत्र के लिए वकीलों के अधिवक्ता अमित श्रीवास्तव, अधिवक्ता अंसार इंदौरी (सचिव, मानवाधिकार संगठन, राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन (एनसीएचआरओ) और नागरिक अधिकार संगठन पीपुल्स के अधिवक्ता शामिल हैं। यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) मुकेश।

द्वारा जारी
एहतेशाम हाशमी