गणपति बप्पा के बाह्य स्वरूप में छुपा है सम्पूर्ण जीवन दर्शन
प्रति वर्ष गणपति बप्पा के पृथ्वीलोक पर आगमन के समय भक्तों का उत्साह अपने चरम में होता है,
ऐसे में आडम्बरवादी विचारधारा के लोग धार्मिक आडंबरों पर ज्यादा ध्यान देते हैं और दूसरों का ध्यान भी आकर्षित करने की कोशिश करते हैं।लेकिन आध्यात्मिक रुझान वाले भक्तगण गणपति जी की बाह्य संरचना व आंतरिक दिव्यता पर ध्यान केंद्रित करते हैं ताकि वे उन गुणों को अपने व्यक्तित्व उन्नयन के लिए उपयोग कर सकें। वे तो भगवान हैं इसलिये उनकी आंतरिक दिव्यता को समझ पाना और उसका विश्लेषण कर अपने जीवन में आत्मसात करना तो मनुष्यों के वश की बात नहीं इसलिए अगर हम उनके बाह्य स्वरूप की विशेषताओं पर गौर करें और उसमें से ही कुछ धारण कर सकें तो निश्चित रूप से गणपति बप्पा यहाँ से खुश होकर वापस जायेंगे।
आइये देखे सर्वप्रथम उनका प्रचलित नाम गणेश में कितना सुन्दर भाव है गणेश में “ग” का अर्थ है “ज्ञान”, “ण” का अर्थ है “मोक्ष” और “ईश” का अर्थ है “प्रभु”
अब उनका सिर उनका सिर हाथी का है वह भी प्रतीक है इस बात का कि जिस प्रकार घने जंगल में हाथी अपने विशालकाय शरीर से सभी झुरमुट को पार करते हुए निकलता है और बाकी जानवरों के लिए मार्ग प्रसश्त करता है, उसी प्रकार गणेश जी भी विघ्ना हर्ता हैं और अपने भक्तों का पथ सुगम बनाते है। भगवान गणेश का बड़ा सिर ज्ञान, बुद्धि और बड़ा सोच का द्योतक है, चेहरे की तुलना में छोटी छोटी आंखें लक्ष्य में पैनी नजर और एकाग्रता का प्रतीक हैं वहीं बड़े कान यह संदेश देता है कि बप्पा कितने कृपालु हैं। उनकी सुनने की क्षमता व दूसरों के दुखों, परेशानियों पर गौर करते हुए उन्हें अपने स्मृति पटल में रखना व निवारण के उपाय इंगित करना, बेहद अनुकरणीय है।
उनका हिलता-डुलता सूंड जीवन की हर परिस्थितियों व स्थितियों का सामना करने की क्षमता व दक्षता का वाहक है। भगवान गणेश की चार भुजाएं चारों दिशाओं में सर्वव्यापकता की प्रतीक हैं, एक हाथ में कुल्हाड़ी, सभी बंधनों से दूर होने की सीख देता है, एक हाथ में रस्सी सभी अपनों से ह्रदय से जुड़े रहने की याद दिलाता है, अनुशासित रहना सिखाता है वहीं एक हाथ में लड्डू साधना का फल व आनन्द की अनुभूति का सन्देश देता है और एक हाथ सदा भक्तों के लिए आशीर्वाद की मुद्रा में रहता है। बड़ा पेट सब कुछ स्वीकारने का प्रतीक है, जबकि मूषक की सवारी अपनी कमज़ोरियों पर सवारी करना, और उन पर विजय प्राप्त करने की प्रेरणा देता है। एक दन्त बुरी चीजों का त्याग व अच्छी चीजों को बनाये रखने का प्रतीक है, व छोटा मुँह कम व सटीक बोलने का प्रतीक है।
इस प्रकार गणपति बप्पा के बाह्य स्वरुप में ही सम्पूर्ण जीवन दर्शन छुपा हुआ है, और प्रतिवर्ष अगर पूरे 365 दिन न सही तो उनके पृथ्वीलोक प्रवास के इन चंद दिनों में ही, उत्सव के वातावरण में अंतर्मुखी होने की ठान लें, तो भी सम्पूर्ण मानव समाज का बहुत उत्थान संभव है।
शशि दीप ©मुंबई