केन्द्र सरकार के द्वारा अनलॉक 1 की घोषणा का बाद जहां देश भर मे जनमानस की पटरी ज़मीन पर आने की भागदौड़ के बीच देश भर मे पत्रकारों का खिलाफ़ मुकदमे बाज़ी की आई खबरो ने भारतीय मीडिया को गहरा आघात पहुंचाया है । जहाँ 04जून 2020 को भाजपा प्रवक्ता नवीन कुमार द्वारा जाने माने वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ के खिलाफ़ दिल्ली पुलिस को की गई शिकायत के बाद पुलिस द्वारा श्री दुआ के खिलाफ़ धारा 290,505(2)का तहत एफआईआर दर्ज की गई वहीं राजस्थान के पाली जिले के ईमानदार और संवेदनशील पत्रकार श्री वीरेन्द्र राजपुरोहित (9024985089)  द्वारा एक श्रमिक नेता श्री रामनाथ सिंह की हत्या के आरोपी पुलिसकर्मियों के सम्बन्ध मे ख़बर चलाने से रुष्ट पुलिस द्वारा पत्रकार के खिलाफ़ झूठा मुकदमा दर्ज किया गया है । इसी बीच ख़बर आ रही है कि पिछले मंगलवार को एनडीटीवी के एंकर रवीश कुमार को  मुजफ्फरपुर के सीजेएम कोर्ट में देश में सरकार के खिलाफ माहौल बनाने को लेकर एडवोकेट सुधीर कुमार ओझा द्वारा रिपोर्ट दर्ज करवाई है । जिसमें उन्होंने पत्रकार पर धोखेबाज और भड़काऊ भाषा का इस्तमाल का आरोप लगाया और रवीश कुमार के ऊपर अपराधी होने का मामला दर्ज़ किया है।प्राप्त जानकारी अनुसार रवीश कुमार के ऊपर IPC की धारा 199,153,153 B, 298, 504 के तहत शिकायत दर्ज करवाई हैं। एडवोकेट सुधीर कुमार ओझा ने आरोप लगाया है कि रवीश कुमार ने जानबूझकर कोरोना पर सरकार के खिलाफ लड़ाई झगडा करने की साजिश रची है। वो अपने कार्यक्रम में ऐसा बोलते हैं की जो सरकार की छवि को नष्ट करते हैं और वे लगातार जनता को उकसाते रहते हैं, जिससे इस वायरस की वजह से लॉकडाउन के चलते लड़ाई झगड़ा हो सकता है।
देश के जाने माने पत्रकार विनोद दुआ और रवीश कुमार के खिलाफ़ दर्ज कराई गई एफआईआर महज पार्टी विशेष के कारिंदों द्वारा उनके आकाओं के इशारे पर रचा षड्यंत्र का रूप है । देश की जनता भली भांति जानती है कि इस समय देश मे अराजकता , वैमनस्यता , कटुता कौन और किसके संरक्षण मैं फैला रहा है , देश की जनता यह भी जानती है कि इस कोरोना काल मे किस कलमकार , पत्रकार की कलम ने जनता को सच का सामना कराया है और सरकार की झूठ , फरेब को उजागर किया है और यही कारण है कि सत्ताधारियों के तलवे चाटने वालों को देश की सर्वोच्च न्यायालय से तत्काल राहत मिल जाती है और देश को सच बटाने वालों के खिलाफ़ मुक़दमे दर्ज किए जाते हैं ।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश की आज़ादी के 70 साल गुजरने के बावजूद पत्रकार बिरादरी अब तक अपने आपको असुरक्षित मेहसूस कर रही है । यही कारण है कि सच उजागर करने के लिये 2017 मे बँगलोर मे  गौरी लंकेश,2015 मे कोल्हापुर मे गोविंद पानसारे  , एमएम कुलवर्गी , 2013 मे पुणे मे नरेंद्र दाभोलकर तथा 2011 मे जेडे जैसे पत्रकारों को अपने प्राणो की आहुति देनी तक पड़ी है परन्तु उसके बावजूद पत्रकार को ना तो सुरक्षा मिली और ना ही न्याय । आईपीआई की रिपोर्ट के मुताबिक़ अधिकतर पत्रकारों का मारे जाने की वजह संघर्ष नही बल्कि भ्रष्टाचार , माफियाओं और राजनैतिक अपराधियों के काले पतित चेहरे उजागर करना रहे हैँ । यदि इसी प्रकार पत्रकारिता का दमन किया जाता रहा तो वह दिन दूर नही जब भारत को पत्रकारिता की कब्रगाह कहा जायगा ।

@ सैयद ख़ालिद कैस