विजया पाठक
प्रदेश कांग्रेस में गुटबाजी के चलते उसकी मुश्किलें कम होती दिखाई नहीं दे रही हैं। पूर्व केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सोमवार को ग्वालियर में फिर दोहराया कि वे सड़क पर उतरने वाले बयान पर कायम हैं। इससे पहले सिंधिया ने अतिथि शिक्षकों के मामले पर सड़क पर उतरने का बयान दिया था। अब सड़क पर उतरने वाले बयान मामले में काफी तूल पकड़ लिया है। सिंधिया के बयान के बाद सीएम कमलनाथ ने भी काफी तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा था कि सिंधिया सड़क पर उतरना चाहते हैं तो उतर जाए। कमलनाथ की टिप्पणी अहंकार से भरी हुई है। प्रदेश कांग्रेस पार्टी की आपसी असमंजस के अब कई मायने निकाले जा सकते हैं। इस बयानबाजी से पार्टी की आपसी अंतर्कलह के साथ-साथ वर्चस्व की भी लड़ाई प्रदर्शित होने लगी हैं। यह बात सच है कि सिंधिया ने सरकार को आईना दिखाया है, जिसे कमलनाथ सरकार देखना नहीं चाहती है। सड़क पर उतरने वाली नसीहत के पीछे सिंधिया को सरकार को अपने वचन पत्र की याद दिलाना भर था, जो कांग्रेस के चुनाव के पहले दिये थे। अब इसमें कमलनाथ सरकार को बुरा लगने वाली क्या बात है। उन्होंने जो कुछ भी कहा वह सत्य कहा है। सिंधिया प्रदेश की राजनीति के मझे हुए और जन से जुड़े नेता हैं, उन्हें जन-जन की भावनाएं दिखती हैं। आमजनों के बीच जाते हैं। कमलनाथ सरकार जब अपने वादों पर खरी नहीं उतर रही है तो जन के बीच में पूरी पार्टी की बदनामी हो रही है। सिंधिया को यही खल रहा है। जिसके लिए ही उन्होंने सरकार के विरोध में बयान दिया। आखिर यह बयान उन्होंने स्वयं के लिए नहीं पार्टी और सरकार के हित में दिया है। अगर सीएम कमलनाथ अपनी सरकार के वादों और वचनों को निभानों में नाकामयाब हैं तो वह कमलनाथ खुद जिम्मेदार हैं। यदि वचनों को निभाने में पैसों की कमी का बहाना बनाया जा रहा है तो आईफा अवॉर्ड जैसे आयोजन के लिए सरकार के पास कहां से पैसे आ रहे हैं। आखिर इस आयोजन में भी तो करोड़ों रूपए खर्च होंगे।
कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व को सिंधिया की और उनके बयान की अनदेखी नहीं करनी चाहिए। इस बयान के पीछे बहुत बड़ा संदेश छुपा है, जो निश्चित रूप से प्रदेश सरकार से जुड़ा है। वैसे भी सिंधिया एक वरिष्ठ नेता हैं और कांग्रेस उनके और परिवार के बलिदानों को भुला नहीं सकती है। आज प्रदेश में यदि कमलनाथ सरकार चल रही है तो वह सिंधिया की बदौलत ही चल रही है। यह बात कांग्रेस का भूलनी नहीं चाहिए। यदि सिंधिया चाह लें तो एक दिन भी सरकार नहीं चल सकती है। इसलिए ज्योतिरादित्य सिंधिया की नसीहत को प्रदेश सरकार नजरअंदाज नहीं कर सकती है। यदि उन्होंने कुछ बोला है तो सोच समझ कर ही बोला है। वक्त रहते कमलनाथ सरकार को संभल जाना चाहिए नहीं तो बहुत देर हो चुकी होगी।