हिसाम सिद्दीक़ी
पार्लियामेंट में दिसम्बर के शुरू में शहरियत (नागरिकता) तरमीमी कानून पास होने के दिन से ही मुल्क की अक्सरियत इस कानून के खिलाफ सड़कों पर है। बरसरे एक्तेदार (सत्ताद्दारी) लोगों के मुताबिक इस कानून में ऐसी कोई बात नहीं है जिसकी वजह से इसकी मुखालिफत की जाए। वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी और दीगर कई जिम्मेदारान ने कहा कि शायद सरकार में बैठे लोग आम लोगों को यह बात ठीक तरह से समझा नहीं सके कि यह कानून मुल्क में रहने वाले किसी भी तबके के खिलाफ नहीं है। इसके जरिए किसी की भी शहरियत छीनी नहीं जाएगी बल्कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश मे रहने वाले उन अकलियती तबकों यानी हिन्दुओं, बौद्धों, सिखां, ईसाइयों और जैनियों को हिन्दुस्तान में शहरियत दी जाएगी जो मजहब की बुनियाद पर मुजालिम होने की वजह से भाग कर हिन्दुस्तान आए हैं। एक्ट में कहा गया कि इन मुल्कों के मुसलमानों को भारत की शहरियत नहीं दी जाएगी उन्हें शरणार्थी नहीं गैर मुल्की घुसपैठिए तस्लीम करके मुल्क से बाहर निकाला जाएगा। यह जो लोग इस कानून की मुखालिफत कर रहे हैं उनकी दलील है कि यह कानून मजहब की बुनियाद पर बनाया गया है जो हमारे देश के संविद्दान की बुनियादी रूह के खिलाफ है। हम किसी भी कीमत पर संविद्दान के साथ छेड़छाड़ नहीं होने देंगे। मुल्क के हर तबके यानी हिन्दू, मुसलमान, दलित, आदिवासी, सिख, ईसाई सभी इस कानून के खिलाफ हैं लेकिन भारतीय जनता पार्टी खुसूसन मरकजी होम मिनिस्टर अमित शाह और उत्तर प्रदेश के वजीर-ए-आला आदित्यनाथ बार-बार यह साबित करने की कोशिशों में लगे हैं कि जैसे मुल्क के मुसलमान ही इस कानून की मुखालिफत कर रहे हैं।
भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार में बैठे कई लोगों में शहरियत एक्ट के बहाने मुसलमानों के लिए जो नफरत दिखी है उसे देख कर एक सवाल उठता है कि आखिर इतनी नफरत इन लोगों के दिल व दिमाग में आती कहां से है। सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास जैसा नारा लगाने वाले वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी महज छः महीनों में ही अपने इस नारे को भूल गए। दिल्ली के शाहीन बाग में शहरियत कानून के खिलाफ ख्वातीन का द्दरना व मुजाहिरा दिसम्बर के दूसरे हफ्ते से ही चल रहा है। सख्त सर्दी, हड्डियों तक को कंपा देने वाली सर्द हवाओं और बारिश के बावजूद हजारों ख्वातीन खुले मैदान में डटी हैं। मुल्क के वजीर-ए-आजम होने और सबका साथ का नारा लगाने वाले नरेन्द्र मोदी ने एक बार भी उन ख्वातीन से अपना द्दरना खत्म करने की जबानी अपील तक नहीं की कि वह अपना द्दरना खत्म कर दें। उन्होने या उनकी सरकार में शामिल एक भी वजीर ने मौके पर जाकर सर्दी में बैठी ख्वातीन से यह अपील नहीं की कि वह द्दरना खत्म कर दें। दफा-370 हटाए जाने के बाद कश्मीरियों के साथ कई तरह ही ज्यादतियां हुई उन ज्यादतियों से नाराज या परेशान कश्मीरियों का दर्द बांटने के लिए तो वजीर-ए-आजम मोदी ने एक दो नहीं अपने तीन दर्जन वजीरों को कश्मीर भेज दिया लेकिन शाहीन बाग तक एक भी वजीर या पार्टी के जिम्मेदार ओहदेदार को नहीं भेजा क्यों?
दरअस्ल हुआ यह कि दिल्ली के शाहीन बाग से ख्वातीन के मुजाहिरे का जो सिलसिला शुरू हुआ वह मुल्क के तकरीबन तमाम बड़े शहरों तक फैल गया उत्तर प्रदेश के तकरीबन सभी बड़े शहरों में ख्वातीन घरों से निकल कर किसी न किसी जगह द्दरने पर बैठ गईं। इन मुजाहिरीन में मुस्लिम ख्वातीन की तादाद चूंकि ज्यादा है इसलिए मुल्क के बेईमान और बेजमीर मीडिया ने बीजेपी के आईटी सेल के साथ मिलकर प्रोपगण्डा शुरू कर दिया कि यह मुजाहिरे मुसलमान करा रहे हैं। अब चूंकि बात मुसलमानों की आ गई तो वजीर-ए-आजम मोदी और उनकी सरकार ने यह मैसेज दे दिया कि सर्दी में द्दरने पर बैठी ख्वातीन मुसलमान हैं जो मोदी सरकार के तमाम फैसलों के खिलाफ हैं। इस लिए उन्हें सर्दी में मरने दे जब थक जाएंगी तो खुद ही उठ जाएगी। अगर मुसलमानों के लिए सरकार का यह रवय्या नफरत नहीं है तो और क्या है? क्या वजीर-ए-आजम मोदी यह नहीं कर सकते थे कि अपनी पार्टी या वजारत में शामिल किसी खातून लीडर को शाहीन बाग भेज कर मुजाहिरा कर रही ख्वातीन से बात करने के लिए कहते उनमें पांच-सात ख्वातीन के एक वफ्द को अपने पास बुलवा कर उन्हें समझाते कि शहरियत कानून आपके खिलाफ नहीं है आप लोगों का मुजाहिरा गलत है। इसे खत्म कीजिए।
आखिर दिल्ली के लेफ्टिनेट गवर्नर ने बुलवाया तो मुजाहिरा कर रही ख्वातीन में जो सबसे बुजुर्ग हैं वह तीन ख्वातीन एलजी से मिलने गई थी। जम्हूरी (लोकतान्त्रिक) सिस्टम में तो अगर एक भी शहरी सरकार के किसी फैसले के खिलाफ हो तो सरकार की जिम्मेदारी होती है कि वह उस नाराज शहरी से मुलाकात करके उसे समझाने का काम करे। आखिर मोदी सरकार ने उन जाटों के वफ्द से भी मुलाकात करके उन्हें समझाने का काम किया था जिन्हेंने जाट रिजर्वेशन के नाम पर आद्दे हरियाणा को जला दिया था और उत्तर प्रदेश में रेल पटरियां उखाड़ दी थी। कर्णी सेना के उन लोगों से भी सरकार ने बातचीत की थी जिन्होने देखे बगैर संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावत के खिलाफ हर किस्म की हिंसा की थी। मुसलमान ख्वातीन से इतनी नफरत क्यों कि उनसे कोई बात करने को तैयार नहीं है।
होम मिनिस्टर अमित शाह ने लखनऊ में शहरियत कानून की हिमायत में रैली करके बाकायदा नफरत भरी द्दमकी दे डाली कि कोई कुछ भ्ी कर ले अब यह कानून वापस नहीं लिया जाएगा। एक जिम्मेदार होम मिनिस्टर की हैसियत से तो उन्हें लखनऊ के घंटाघर के मैदान में मुजाहिरा कर रही ख्वातीन के दरम्यान भी जाना चाहिए था क्योंकि वह इस कानून में क्या है यह बताने के लिए लखनऊ आए थे। कानून में क्या है यह समझाने का तरीका यह कब से हो गया कि वह यह द्दमकी देकर चले जाए कि कुछ भी कर लो कानून वापस नहीं होगा। वापस मत लीजिए लेकिन देश के संविद्दान को समझने वालों के साथ राय-मश्विरा करके उसमें कुछ तब्दीली तो की ही जा सकती है।
उत्तर प्रदेश के चीफ मिनिस्टर आदित्यनाथ ने इस कानून के सहारे एक बार फिर मुसलमानों के लिए अपने दिल में भरी नफरत का मुजाहिरा किया है। जिस नफरत के लिए प्रदेश का वजीर-ए-आला बनने से पहले हिन्दू युवा वाहिनी के लीडर की हैसियत से वह अक्सर जाने जाते थे। उन्नीस दिसम्बर को प्रदेश में ऐसी कोई हिंसा नहीं हुई थी जिसके लिए पुलिस दो दर्जन से ज्यादा मुस्लिम नौजवानों को गोली मार कर कत्ल कर देती इतनी बड़ी तादाद में तो किसी भी शहर में बडे़ से बड़ा दंगा होने पर भी लोग पुलिस फायरिंग में मारे नहीं जाते हैं। वह खुद को योगी कहते हैं एक इंतेहाई काबिले एहतराम (सम्मान) गोरखनाथ मंदिर के मुखिया भी हैं। गोरखनाथ मंदिर के मुखिया के दिल में किसी भी तबके के खिलाफ इतनी नफरत आ कैसे सकती है? वहां तो सिर्फ प्यार-मोहब्बत और दया का फलसफा चलता है। चीफ मिनिस्टर की हैसियत से भी उन्होंने संवैद्दानिक ओहदे पर बैठे लीडर जैसा रवय्या कभी नहीं रखा। नवम्बर दिसम्बर 2019 में प्रदेश में आद्दा दर्जन से ज्यादा बेटियों के रेप करने के बाद जिंदा जलाने जैसा गुनाह हुआ तो उनकी पुलिस खामोश रही लेकिन उन्नीस दिसम्बर को प्रदेश में आद्दा दर्जन बसें और गाड़ियां जल गईं तो पुलिस ने दो दर्जन से ज्यादा मुसलमानों को मौत के घाट उतार दिया। वह भी तब जबकि अभी तक यह साबित भी नहीं हुआ है कि बसों को जलाने और हिंसा करने वाले लोग कौन थे। अब योगी कह रहे हैं कि मर्द घरों में रजाई ओढ कर सो रहे हैं और ख्वातीन घंटा घर पर द्दरने पर बैठी हैं। वह द्दमकी देते हैं कि अगर कश्मीर जैसी नारेबाजी हुई तो देशद्रोह का मुकदमा चलाया जाएगा। मुजाहिरा करने वाली ख्वातीन का भी जवाब साफ है कि अगर शहरियत कानून, एनआरसी, नाइंसाफी, जुल्म व ज्यादती, फिरकावाराना नफरत से आजादी का नारा लगाना देशद्रोह है तो वह यह करती रहेंगी। क्यांंकि उन्होंने कभी भी ऐसा कोई नारा नहीं लगाया जो देश और संविद्दान के खिलाफ हो। आखिर में फिर वही सवाल कि मरकजी होम मिनिस्टर अमित शाह और उत्तर प्रदेश के चीफ मिनिस्टर आदित्यनाथ इस कानून के बहाने जिस नफरत का इजहार कर रहे है। उतनी नफरत इनके अंदर आती कहां से है?
साभार -www.jadeedmarkaz.com