भोपाल । आज सम्पूर्ण भारत राष्ट्रीय प्रेस दिवस मना रहा । प्रेस की आजादी की रक्षा के लिऐ गठित प्रेस कौंसिल अर्थात प्रेस परिषद का गठन तो 04जुलाई 1966को हो गया था पर उसने सुचारू रूप से काम करना आज ही के दिन 16नवम्बर 1966 से आरंभ किया था । जिसके कारण तबसे आज ही के दिन संपूर्ण भारत में राष्ट्रीय प्रेस दिवस मनाया जाता है ।
प्रेस परिषद गठित करने का असल मकसद था कि देश में प्रेस की आजादी को बचाए-बनाए रखा जाए और साथ ही साथ पत्रकारिता के उच्च मापदंडों की रक्षा में मदद करना।
परन्तु अपने गठन से आज तक प्रेस परिषद अपने उददेश्य में कितनी सफल हुई यह विषय ही प्रासंगिक है ।ऎसे कई सवाल हैँ जिनके उत्तर आज तक नही मिले जैसे  देश की मीडिया कितनी आजादी से काम कर पा रही है और पत्रकारिता अपने उद्देश्य और सिद्धान्तों में कितनी सफल हो रही है? क्या प्रेस परिषद ने मीडिया जगत में ऐसी प्रतिष्ठा, पहचान और विश्वसनीयता बनाई है कि कोई भी आघात लगते ही मीडिया उसके पास जाए? क्या ऐसे मौकों पर प्रेस परिषद ने उन्हें सम्बल देते हुए उनके साथ न्याय सुनिश्चित किया है? अथवा फिर वह एक और सरकारी विभाग ही साबित हुई? इन सब सवालों के जवाब में प्रेस परिषद निरुत्तर है ।
पिछ्ले एक दशक में संपूर्ण भारत में पत्रकारों की हत्याओं की घटनाओ ने प्रेस की आज़ादी पर सवाल उठाया । भूमाफियाओं , अपराधियों और सफेद पोश अपराधियों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वाले पत्रकारों की निर्मम हत्याएं साक्षी हैँ प्रेस परिषद की असहाय स्थिति की । सरकार द्वारा पत्रकार सुरक्षा के नाम पर कौई ठोस कदम नही उठाना भी इस बात का प्रमाण है कि सरकार खुद नही चाहती की कि प्रेस की आज़ादी बरकरार रहे ।
आज राष्ट्रीय प्रेस दिवस के अवसर पर हम यह मेहसूस कर रहे हैँ कि निरन्तर प्रेस की आज़ादी पर आघात किये जा रहे हैँ , निरन्तर प्रेस पर अंकुश लगाए जा रहे हैं । पत्रकारों के बीच असुरक्षा की भावना दिन प्रतिदिन विकराल रूप ले रही है। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहलाने वाली पत्रकारिता अपने आपको असहाय मेहसूस कर रही है । प्रेस परिषद के गठन 1966से वर्तमान समय तक पत्रकार सुरक्षा क़ानून का लागू नही होना इस बात का प्रमाण है कि भारत में प्रेस की स्वतन्त्रता केवल कहने मात्र की है वास्तविकता में प्रेस की आजादी दिन ब दिन क्षीण होती जा रही है । भारतीय प्रेस परिषद स्वयम में प्रासंगिकता की भूमिका मैं है जो देख सुन सब रहा है , करना भी बहुत चाहता है , परन्तु असहाय है कुछ चाहकर भी करने की स्थिति में नही है । ऎसे हालात में राष्ट्रीय प्रेस दिवस मनाने का क्या औचित्य ? जब प्रेस आज़ाद ही नही तो प्रेस दिवस का क्या औचित्य ? पत्रकार सुरक्षित नही तो क्या आर्थ बचा है भारतीय प्रेस परिषद का । ऎसे हालात में अर्थहीन है राष्ट्रीय प्रेस दिवस ?

(सैयद ख़ालिद कैस -राष्ट्रीय महामंत्री अखिल भारतीय पत्रकार सुरक्षा समिति एवं अध्यक्ष प्रेस कौंसिल ऑफ़ वर्किंग जर्नलिस्ट )