MP//छतरपुर//महाराजपुर//
मेरा दिल दिमाग ऐ मानने को तैयार नहीं की जानकारी ना देना और मना कर देना जैसी शिकायतों पर जिले से राज्य सरकार तक के अपीलीय अधिकारी कलेक्टर,जनसंपर्क, नगरीय प्रशासन स्वास्थ्य विभाग राज्य सूचना आयोग के अपीलीय अधिकारी को कानून का ज्ञान ना हो
लेकिन अगर अपील को ट्रांसफर कर दी जाए या बिना अपीलार्थी के उपस्थिति में उसका निराकरण कर दिया जाये और जानकारी भी न दी जाए तो उसको क्या कहेंगे
हिलवेज कंटेक्सन कम्पनी के रोड की एनआईटी जो कि आज भी यह पता नहीं की कितने पुलिया और कितना रोड कंपनी ने बनाया राज्य सूचना आयोग ने पीडब्ल्यूडी छतरपुर को बिना सूचना के अनुपस्थिति पर तो कोई कार्यवाही नहीं की लेकिन अपील करने बाले से बोल दिया आपको आने की जरूरत नहीं मामले की सुनवाई मैं बात ए आई कि अपील पहले ही खारिज कर दी और समय सीमा में निराकरण भी हो गया जानकारी भी नही दी और कॉस्ट लगाते भी तो कितनी.
रोड की कीमत तो 176 करोड़ से 220 करोड़ के लगभग km 104 का है इतने पैसे का हिसाब कैसे बताते इस मे लगी मिट्टी,मुरम,कंपनी कहां से लाई नगरपालिका,नगर पंचायत ग्राम पंचायत क्षेत्र में अतिक्रमण भी कागजों पर ही हटा यह भी सवाल पूछा ही जाता इसलिए अपील ही खारिज कर दी विभाग को हैंडोवर होने के आठ दिन मैं कैसे बह गया रोड नगर पालिका नगर पंचायत और ग्राम पंचायतों ने अगर तालाब खुदाई की और राशि निकाली तो रोड बनाने वाले मिट्टी कहां से लाए यह सवाल का जवाब देता कौन इसीलिए ना रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी राज्य सूचना आयोग के अपीली अधिकारी ही पुराने कलेक्टर थे जो होगा साहब ही समझ लेंगे शायद ऐसा ही सोचा होगा राज्य सूचना के अधिकारियों ने
बदनाम कोई मिठाई खाए कोई.
मेरे RTI के संघर्ष’ मैं 2010 से लेकर 2018 के बीच में जो मजे के बात आई उसे देख कर राज्य सूचना आयोग के पत्र जिसमें पैसे देने के बाद भी जानकारी प्राप्त नही हुई का जवाब भेजा की रजिस्टर्ड डाक से भेजी अपीले कार्यालय में खोजी पर नही मिली कोई जानकारी नहीं..( एक-एक रजिस्ट्री में कई कई मामले की थी अपील)
उस मैं आवेदन की अपील भी की अपीलीय अधिकारी डॉ मसूद अख्तर से तो उनका पत्र भी मिला पत्र जिसमें उन्होंने बताया आप अपनी अपीले लेकर उपस्थित हो।
(सूचना आयोग मध्यप्रदेश सरकार के कार्यालय से गुम हो गई है जो खोजने से भी नही मिली है)
मुझे लगा कि मैं अपील एक ऐसी जांच एजेंसी के पास शिकायत कर रहा हूं जिसके ऊपर निष्पक्षता का बोझ कुछ तो होगा पर शायद नही.
तो वहीं न्यायालय कलेक्टर अपर कलेक्टर छतरपुर, स्वास्थ विभाग , जनसंपर्क भोपाल एवं सागर कमिश्नर का डाक से भेजा पत्र जिला पंचायत के पंचायती राज की तो क्या कहने ना आवेदन पर कुछ कहना ना अपील पर सुनवाई करना। जहाँ राज्य सूचना के अपीलीय अधिकारी और हमारे पुराने कलेक्टर ने पूर्व में भेजी फायले दुबारा मागने का आदेश पत्र लिख डाला तो बही साहब के कार्यकाल मैं की गई शिकायतों की आरटीआई आवेदन की अपील अपर कलेक्टर छतरपुर ने नगरी प्रशासन विकास सागर को फॉरवर्ड कर दी और नगरी प्रशासन विकास सागर के अधिकारी ने उसे खारिज भी कर दिया।
मामला भी कम दिलचस्प नहीं है जिस मामले की फाइल अपर कलेक्टर ने सागर भेजी वह मामला सागर संभाग का सबसे अच्छा पहला ओपन मार्केट 1942 का बना महाराजपुर का भवानी मार्केट है जिसे नियम विरुद्ध अपने फायदे के लिए दुकानों का निर्माण करा दिया और तो और उसी के नाम पर अस्पताल की जमीनों पर नगर पालिका ने ही कब्जा कर लिया खबरें भी छपी शिकायत भी हुई पर कलेक्टर तो मसूद अख्तर महोदय ही थे जो आज राज्य सूचना के अपीलीय अधिकारी है. तो वहीं अपने लाभ के लिए उस समय के नगर परिषद में व्यापक भ्रष्टाचार हुआ और कुछ फाइलें आज भी नगर पालिका से गुम है जिनमें करोड़ों का हेरफेर है दुकानें भी बिना रजिस्ट्री के दुकानदारो ने कब्जा कर लिया।
जिला पंचायत की बात करें तो साहब कुछ ना आवेदन पर जवाब देते हैं ना अपील पर चाहे मर्यादा अभियान हो स्वच्छ भारत अभियान,धारा 40 की बसूली हो या ग्राम पंचायतों में लगे सूचना के अधिकार के आवेदन जो लोगों की कमाई का जरिया बना है एक साथ 50 से100, आवेदन भेजे जाते है जानकारी, नही की जगह मिठाई भी खूब चट करते लोग कुछ का तो यही जीवन यापन का साधन है।
पर जिले की पंचायतों में रजिस्टर्ड डाक से कितने आवेदन आए इसकी जानकारी भी देना उचित नहीं लगा सबसे ईमानदार अधिकारी की कान में जूं तक नहीं रेंगी और ना ही शिकायतकर्ता को बुलाया ना अपील करने बालो को फाइल भी सालों से गुम नामी में चल रही है ऑन लाइन आजतक नही करा सके।
जिला कलेक्टर , अपर कलेक्टर न्यायालय के आदेशों की बात क्या किया जाए जहां साहब को प्रश्नवाचक जैसे शब्दों की जानकारी का आदेश अपीली आदेश में तब्दील कर दिया वहीं आदेश करने में कुछ हिचकिचाहट भी रही वहीं आदेश पालन में आदेश ऑनलाइन की जगाह ऑफ लाइन ही करते है उनकी कोई सुनता ही नहीं चाहे खनिज विभाग हो पीडब्ल्यू हो या नगरपालिका सायद यही कहा जायेगा सबका मालिक एक नोटो के गांधी जी!
कमिश्नर कार्यालय सागर की बात क्या करें तहसीलदार पटवारी की शिकायत और तहसील के कर्मचारी पैसे लेकर लोगों को गरीब बनाने की की शिकायत सबूतों के साथ भेजने पर कार्यवाही नहीं प्रमोशन हुआ तो आरटीआई एक भेज ही दी जवाब में मालूम हुआ दो दिन बाद आपको उपस्थित होना है पर पत्र महीना बाद मिला।
e-टेडरिंग की शिकायत और उसमें आईटीआई मेरे गांव से लेकर मध्य प्रदेश के प्रमुख सचिव एवं विभागों के यहां आवेदन भेजे पर जानकारी के नाम पर ठन ठन गोपाल।
लेकिन ? 2010से 2018 की शिकायतों की समीक्षा करने पर मेरे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया और एहसास हुआ की जैसे पान की गुमटी में रखे रद्दी कागजों की पुड़िया जैसे ही RTi कीअपीलों के दस्तावेजो की है।
अब तो लगता है मध्य प्रदेश 2005 में सबसे पहला राज्य सूचना का अधिकार लागू करने के लिए बना था और 2019 में शायद सबसे पहले सूचना का अधिकार बंद करवाने की मांग करने वाला राज्य भी बनेगा।
मुझे नहीं मालूम मेरी इस पोस्ट के बाद किस पर क्या बीतेगी और मेरे साथ क्या होगा लेकिन इतना जरूर जानता हूं रोज रोज धमकियां सुनने से अच्छा एक रोज लड़ लेना ही होता है….लोगों को नोटों से प्यार है मुझको पत्थरों से था कभी पत्थरों से रोजी रोटी कमाने का ख्वाब था अब पत्थरों को बचाने का।
✍MP// महाराजपुर छतरपुर:-संवाददाता:-खेमराज चौरसिया(आरटीआई कार्यकर्ता)@9893998100