राजनीतिक समाचार
भोपाल। हाल ही में संपन्न हुए पांच रज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने देश के तीन बड़े हिंदी भाषी राज्यों राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में शानदार जीत दर्ज की है। इस जीत से कांग्रेस और उसके कार्यकर्ताओं में ऊर्जा का ज़बरदस्त विस्तार हुआ है।
इसी के साथ राजनीतिक दलों ने अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारियां भी शुरू कर दी हैं।
15 वर्ष बाद मध्यप्रदेश की सत्ता में लोटी कांग्रेस की नज़र अब लोकसभा चुनाव पर है। राज्य की 29 में से 26 सीटें अभी भाजपा के क़ब्ज़े में हैं। विधानसभा चुनाव में मिली जीत से उत्साहित कांग्रेस का लक्ष राज्य की 20 लोकसभा सीटें जीतने का है। इस लक्ष को पाने के लिए कांग्रेस ने भी अभी से रणनीति बनाना शुरू करदी है। इसी सिलसिले में उसने सशक्त उम्मीदवारों की तलाश शुरू करदी है।
1989 से भाजपा के क़ब्ज़े में रहे भोपाल लोकसभा क्षेत्र भी कांग्रेस के निशाने पर है और वह इसे जीतने के लिए भरसक प्रयास कर रही है। इस बार पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के भोपाल से चुनाव लड़ने की चर्चा है। खबर है कि दिग्विजय सिंह का मन भी यहां से चुनाव लड़ने का है।
भाजपा का अभेद गढ़ बन चुके भोपाल लोकसभा क्षेत्र को भेदने के लिए अभी तक कांग्रेस के सभी प्रयास असफल रहे हैं।
1984 में यहां से आखिरी बार कांग्रेस जीती थी, कांग्रेस प्रत्यशी केएन प्रधान ने भाजपा के लक्ष्मीनारायण शर्मा को 128664 मतों से पराजित किया था। 1984 में कांग्रेस के केएन प्रधान को 240717 और भाजपा के लक्ष्मीनारायण शर्मा को 112053 वोट मिले थे। इस चुनाव के बाद बीजेपी के सुशील चंद वर्मा ने यहां से लगातार चार बार पार्टी का परचम लहराया। भाजपा के सुशील चंद वर्मा ने पहली बार यहां से कांग्रेस के केएन प्रधान को 103654 मतों से पराजित किया था। तब बीएसपी के अब्दुल रऊफ खान को 97886 वोट मिले थे और भाजपा के सुशील चंद वर्मा को 281169 एवं कांग्रेस के केएन प्रधान को 177515 वोट मिले थे। 1991 में भाजपा के सुशील चंद वर्मा ने कांग्रेस के नवाब मंसूर अली खान पाटोदी को 102208 मतों से पराजित किया था। तब भाजपा को 308946 और कांग्रेस को 206738 वोट मिले थे। 1996 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने यहां कैलाश अग्निहोत्री कुण्डल पर दांव खेला था। तब भाजपा के सुशील चंद वर्मा ने कांग्रेस के कुण्डल को 150894 मतों से शिकस्त दी थी। भाजपा के वर्मा को 353427 और कांग्रेस के कैलाश कुण्डल को 202533 वोट मिले थे। इसी तरह से 1994 में भाजपा के सुशील चंद वर्मा ने कांग्रेस के आरिफ बेग को 193932 मतों से करारी शिकस्त दी थी। तब भाजपा के सुशील चंद वर्मा को 494481 और कांग्रेस के आरिफ बेग को 300549 वोट मिले थे। 1999 में भाजपा ने यहां से अपना प्रत्याशी बदला और तेज़ तर्रार नेत्री उमा भारती को मैदान में उतारा कांग्रेस ने भी उनके मुक़ाबले में वरिष्ठ नेता सुरेश पचौरी को अपना उम्मीदवार बनाया था। लेकिन सुरेश पचौरी को मिले 369041 मिले वोटों के मुक़ाबले में उमा भारती को 537905 वोट मिले थे । इस तरह से सुरेश पचौरी उमा भारती से 168864 मतों के बड़े अंतर से बुरी तरह पराजित हो गए थे। कांग्रेस की हार का सिलसिला यहीं नहीं रुका। 2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी को भोपाल से अपना उम्मीदवार घोषित किया तो कांग्रेस ने एडवोकेट सैयद साजिद अली को मैदान में उतारा, तब कैलाश जोशी को 561563 और सैयद साजिद अली को 255558 वोट ही मिले और वह 306005 मतों के अंतर से चुनाव हार गए। 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने फिर से नया प्रयोग करते हुए पूर्व राज्य सभा सांसद सुरेंद्र सिंह ठाकुर को अपना प्रत्याशी घोषित किया और भाजपा ने दूसरी बार भी पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी को ही चुनाव मैदान में उतारा। भाजपा के कैलाश जोशी को मिले 335678 वोटों के मुक़ाबले कांग्रेस के सुरेंद्र सिंह ठाकुर को 270521 वोट मिले और वह 65157 मतों से चुनाव हार गए। हालांकि 1989 के बाद यह पहला मौक़ा था जब कांग्रेस ने हार – जीत के अंतर को बहुत काम किया था। 2014 में कांग्रेस ने पीसी शर्मा को अपना उम्मीदवार बनाया तो भाजपा ने आलोक संजर पर दांव खेला और मोदी लहार के चलते कांग्रेस प्रत्याशी पीसी शर्मा को 370696 वोटों के अंतर से करारी हार का सामना करना पड़ा। 2014 में भाजपा को मिले 714178 वोटों के मुक़ाबले कांग्रेस को 343482 वोट ही मिले थे ।
उपरोक्त तथ्यों से यह बात साफ़ है कि भोपाल लोकसभा सीट कांग्रेस के लिए इतनी आसान नहीं है जितनी लग रही है मगर हां, असंभव भी नहीं है। शर्त यह है कि कांग्रेस यहां से किसी करिश्माई नेता को मैदान में उतारे।यदि कांग्रेस इसमें सफल होती है तो भाजपा का गढ़ बन चुकी इस सीट पर वह अपना परचम लहरा सकती है। 20 सीटें जीतने के लक्ष को पाने के लिए कांग्रेस को ऐसा करना ही पड़ेगा।
हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनाव में भोपाल लोकसभा क्षेत्र में आने वाले आठों विधानसभा क्षेत्रों को मिलाकर हार – जीत का अंतर पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में बहुत कम हुआ है। मतलब 370696 के मुक़ाबले अब 63451 मतों का ही अंतर बचा है। 2018 के विधानसभा चुनाव में जहां भाजपा को आठों विधानसभा सीटों पर कुल 657532 वोट मिले तो वहीं कांग्रेस को सभी सीटों पर मिले मतों को मिलाकर 594081वोट मिले हैं।
भोपाल ज़िले की सातो सीटें बैरसिया,149, भोपाल उत्तर150 ,नरेला151, भोपाल दक्षिण – पश्चिम152, भोपाल मध्य153,गोविंदपुरा154, हुज़ूर155 और सीहोर ज़िले की सीहोर159 को मिलाकर भोपाल लोकसभा क्षेत्र में आठ विधानसभा सीटें आती हैं।
कांग्रेस के रणनीतिकार इस बार भाजपा के क़ब्ज़े वाली इस सीट को जीतने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह को मैदान में उतारने की तैयारी कर रहे हैं। तीन साल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और दस सालों तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह को भोपाल से लोकसभा प्रत्याशी बनाने के पीछे कांग्रेस का मक़सद यह है कि दिग्विजय सिंह की क्षेत्र की सभी आठों विधानसभा सीटों पर मज़बूत पकड़ है। कांग्रेस के आलावा भाजपा में भी उनका दखल है। पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर से उनके संबंध जग ज़ाहिर हैं। इसी तरह सीहोर से विधयक रहे भाजपा के वरिष्ठ नेता रमेश सक्सेना का झुकाओ भी विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद कांग्रेस के प्रति बढ़ा है। उनकी पत्नी उषा रमेश सक्सेना ने हाल ही में सीहोर विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव लड़ा था और उन्हें 26 हज़ार से अधिक वोट मिले थे, इस लिहाज़ से सीहोर क्षेत्र में रमेश सक्सेना की अहमियत को आँका जासकता है। इसी तरह से भोपाल दक्षिण-पश्चिम से मंत्री पीसी शर्मा और संजीव सक्सेना एवं भोपाल उत्तर से मंत्री आरिफ अक़ील, बैरसिया से पूर्व सांसद सुरेंद्र सिंह ठाकुर और पूर्व विधयक जोधाराम गुर्जर भी दिग्विजय सिंह के ख़ास समर्थकों में माने जाते हैं। भोपाल मध्य से विधायक बने आरिफ मसूद भले ही सुरेश पचौरी के खेमे से हों लेकिन चुनाव के समय कांग्रेस के बागियों को मानाने में दिग्विजय सिंह ने अहम् भूमिका निभाई थी। नरेला और हुज़ूर विधानसभा क्षेत्र में भी दिग्विजय सिंह के चाहने वालों की कमी नहीं है।
वैसे भी दिग्विजय सिंह के अलावा भोपाल लोकसभा क्षेत्र के लिए कांग्रेस के पास कोई ऐसा नाम नहीं है जिससे जीत की उम्मीद की जा सके। यदि दिग्विजय सिंह भोपाल से कांग्रेस उम्मीदवार बनते हैं तो पूरे प्रदेश में इसका अच्छा संदेश जायेगा।
बहरहाल देखते हैं आगे – आगे होता है क्या।
अरशदअली खान