ग्वालियर। केन्द्र सरकार ने भले ही अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम, 1989 में संशोधन करके आरोपी को अग्रिम जमानत पर छोड़ने का प्रावधान खत्म कर दिया है, लेकिन पुलिस के ऊपर CRPC की धारा 41 के प्रावधान लागू होंगे। ऐसे अपराध जिनमें सात साल से कम की सजा है, उसमें गिरफ्तारी जरूरी नहीं है। हाईकोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट के मामले में न्याय का सिद्धांत प्रतिपादित (न्याय दृष्टांत) करते हुए आदेश दिया कि अगर आरोपी पुलिस के बुलाने पर थाने पहुंच रहा है और जांच में पूरा सहयोग कर रहा है तो उसकी गिरफ्तारी की जरूरत नहीं है।
हाईकोर्ट ने आरोपी मंगाराम झा को बड़ी राहत दी है। अब एट्रोसिटी एक्ट में उनकी गिरफ्तारी नहीं होगी। सुपावली गांव निवासी शिक्षक मंगाराम झा व राहुल झा के खिलाफ जितेन्द्र ने बिजौली थाने में शिकायत दर्ज कराई। जितेन्द्र ने थाने में बताया कि मैं मंगाराम के पास अपने बच्चे की पढ़ाई को लेकर शिकायत करने गया था। जब उनके पास पहुंचा तो उन्होंने जाति सूचक गालियां देकर अपमानित किया। पैरों में डंडा भी मारा था। जितेन्द्र की शिकायत पर पुलिस ने मंगाराम व राहुल के खिलाफ एट्रोसिटी एक्ट व मारपीट का केस दर्ज कर लिया। केस दर्ज होने के बाद मंगाराम व राहुल ने जिला कोर्ट में अग्रिम जमानत के लिए आवेदन पेश किया, लेकिन उसे खारिज कर दिया।
इस आदेश के खिलाफ दोनों ने हाईकोर्ट में क्रिमिनल अपील फाइल की। न्यायमूर्ति शील नागू ने अपील की सुनवाई की। सभी पक्षों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित कर लिया था। न्यायमूर्ति ने अपील पर फैसला सुनाते हुए न्याय का सिद्धांत प्रतिपादित किया है। इस केस में आरोपी की गिरफ्तारी की जरूरत नहीं है। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा अर्नेश कुमार केस में दिए गए फैसले का भी हवाला दिया है। कोर्ट ने कहा कि इस केस में बिना जांच के गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है और आरोपी को अपना पक्ष रखने का पूरा मौका दिया जाए। सिर्फ गंभीर किस्म के अपराध में गिरफ्तार किया जा सकता है।
सरकार ने एट्रोसिटी एक्ट में लागू की है धारा 18 ए
-सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद संसद ने एट्रोसिटी एक्ट में संसोधन किया था। 17 अगस्त 2018 को केन्द्र सरकार ने नए संसोधन की अधिसूचना जारी कर दी थी। धारा 18 ए लागू की गई है।
– 18 ए के अनुसार एट्रोसिटी एक्ट में केस दर्ज होने के बाद किसी भी तरह की प्राथमिक जांच नहीं की जाएगी। न जांच अधिकारी को आरोपी की गिरफ्तारी से पहले किसी वरिष्ठ अधिकारी से अनुमति लेनी होगी।
– सीआरपीसी की धारा 438 लागू नहीं होगी। अगर किसी व्यक्ति के ऊपर गैर जमानती धारा के तहत केस दर्ज हो जाता है, तो वह अग्रिम जमानत के लिए जमानत याचिका दायर कर सकता है। हाईकोर्ट को उसे सुनने का अधिकार है, लेकिन एट्रोसिटी एक्ट के तहत यह धारा लागू नहीं की गई है।
– इन्हीं प्रावधानों के अनुसार आरोपी पर कार्रवाई होगी।
अनावश्यक रूप से नहीं किया जा सकता गिरफ्तार
सुप्रीम कोर्ट ने अर्नेश कुमार केस में भी गिरफ्तारी को लेकर प्रावधान किए हैं। किसी भी व्यक्ति को अनावश्यक रूप से गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है। अगर गिरफ्तारी होती है तो पर्याप्त कारण के साथ चेक लिस्ट केस डायरी के साथ लगानी होगी।
-अधिवक्ता अनिल शर्मा के अनुसार सीआरपीसी की धारा 41 में गिरफ्तारी प्रक्रिया दी है। सात साल से कम सजा वाले अपराध में आरोपित की गिरफ्तारी की जरूरत नहीं है। अगर आरोपी पर सिर्फ एट्रोसिटी एक्ट ही लगा है और इसमें कोई गंभीर धारा नहीं है। जैसे कि हत्या, दुष्कर्म गंभीर अपराध में आते हैं। कोर्ट ने आरोपी को अपना पक्ष रखने का मौका दिया है।
– अगर हाईकोर्ट के किसी फैसले का प्रकाशन (लॉ जर्नल) होता है और उस फैसले को वह लोग भी उपयोग कर सकते हैं, जिन पर इस तरह के मामले दर्ज होते हैं।
क्या है न्याय का सिद्धांत प्रतिपादित करना 
अधिवक्ता गौरव मिश्रा ने बताया कि केन्द्र सरकार ने एट्रोसिटी एक्ट में अग्रिम जमानत का प्रावधान खत्म किया है, लेकिन सीआरपीसी के प्रावधान को लेकर न्याय की प्रक्रिया (न्याय का सिद्धांत प्रतिपादित करना) को समझाया है। इस आदेश से स्पष्ट हो गया कि एट्रोसिटी एक्ट में सीआरपीसी की धारा 41 का पालन करना होगा। सात साल से कम सजा वाले अपराधों में गिरफ्तारी जरूरी नहीं है।
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