पचमढ़ी उत्सव की बैठक आयोजित…… कलेक्टर होशँगाबाद एवँ तमाम् आला अधिकारी रहे मोजूद
पचमढ़ी ………. जैसा की नाम से ही आज भी पचमढ़ी सतपुड़ा की रानी के नाम से मशहूर देश और दुनिया भर के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र बन चुकी है,.सतपुड़ा की रानी को प्रकृति का वरदान है , परन्तु क्या यह वरदान ,वरदान रहेगा या हम पचमढ़ी उत्सव के नाम सिर्फ वाह् वाहि लूट कर (धन का मात्र अपव्यय)कर सब तालियों मे बटोर लेगे……….
पचमढ़ी उत्सव मनाने के पीछे एक गँभीर सोच थी हमारे प्रदेश की महामहिम (सरला ग्रेवाल) की कि पचमढ़ी का विकास पर्वतीय पर्यटक स्थल के रुप मे और अधिक प्रचारित और.प्रसारित होगा। परन्तु उनके जाते ही फिर इस उत्सव को काली छाया का ग्रहण लग गया और कुछ वर्ष बँद हो गया परनामी पुनः कुछ वर्ष बाद फिर अपनी ढपली अपना राँग के इसे उठाया गया और मनाया जाने लगा ………
पचमढ़ी (उत्सव ) को मनाने और रोचक और आकषर्ण के साथ हम पचमढ़ी के कुरुप होते जा रहे नैसर्गिक सुन्दरता को भी बचाने का क्या प्रयत्न नही करना चाहिए….. पर्यटन की आपाधापी और चकाचौंध ने पचमढ़ी के मूल स्वरूप की क्या हत्या नही की प्रतिदिन पचमढ़ी के प्राकृतिक और नैसर्गिक स्वरूप. से कही पचमढ़ी विकास के नाम और कही पचमढ़ी उत्सव मनाने के नाम सिर्फ और सिर्फ (धन)का अपव्यय मात्र किया जाता रहा है और इस उत्सव को मनाने के लिए सब कुछ (तालियों)मे लूट लेना चाहते है……. परन्तु. होना यह चाहिए कि हम जिस पचमढ़ी की बडी बडी बाते कर इसे रिछाने के लिए कही पचमढ़ी उत्सव तो कही पचमढ़ी के विकास की बैठकें आयोजित कर मात्र धन का अपव्यय ही किया जाता रहा है यह परन्तु इन सभी बिन्दुओं पर हम कब बैठक लेगे की पचमढ़ी का प्राकृतिक और नैसर्गिक स्वरूप केसे (अक्षुण्ण)बना रहे……
पचमढ़ी मे विकास के नाम अभी तक किये गये प्रयासों का जिक्र यदि करे तो हम पायेंगे की पचमढ़ी मे विकास के नाम पचमढ़ी का मूल अस्तित्व ही खतरें मे पड गया है…… अब पर्यटन की आपाधापी के बीच नैसर्गिक स्वरूप से विकास के नाम अभी तक खिलवाड़ किया जाता रहा है….. विकास के नाम केन्द्र सरकार से करोड़ों रुपया यहां के विकास के लिए पैकेज आता है और आज आप पचमढ़ी का एक नजर मे विकास देखे तो यहां आये पर्यटक और शैलानियों ने यही बताया की पचमढ़ी सतपुड़ा की रानी के नैसर्गिक स्वरूप मे बहुत तेजी से मलीनता आते जा रही है उन पर्यटकों ने बताया की यह अब (लाँज होटलो ) परिवर्तन हो गई पर्यटन की आपाधापी ने इसे मात्र पर्यटन स्थल बना दिया इससे धन अवश्य आता है परन्तु जो शाँति , सोम्यता , और प्राकृतिक नैसर्गिक स्वरूप था वह कपूर की भाँति यहां से उड गई…… अब यहाँ रह गई है धूल हवाओं का रुख भी बदल गया मौसम के मिजाज ने भी अपना असर तेजी से दिखाना शुरू कर दिया है परिणाम गर्मियों मे जो तापमान जो अधिकतम 30 ,32 तक जाता था अब वहीं तापमान 40 ,से 42 , और 43 तक चला जाया.करता है इस (प्राकृतिक उत्सव)पर कौन विचार करेगा कभी सोचा और विचारा है।
कौन आयेगा पचमढ़ी की.सुन्दरता और हरियाली देखने चारों तरफ विकास की होड लगी और इस पचमढ़ी के विकास ने पचमढ़ी से उसके स्वरूप और नैसर्गिकता पर प्रहार करना विकास के नाम शुरू कर दिया ।
पाश्चात्य पर्यटकों और शैलानियों ने यही बताया की पचमढ़ी सतपुड़ा की रानी मौन सत्बध रह कर यह सब सह रही है…क्योंकि उसे देखने और परखने का समय चिन्तन और चिन्तनशील आदमी को होना चाहिये वह कही पर्यटक उत्सव मनाते है और वाहवाही लुटकर सब कुछ तालियों मे पा लेना चाहते है…. पर्यटक स्थलों पर गँदगी का अँबार देखा जा सकता है पाऊच ,पोलिथिन बैग ,का उपयोग ऐसा किया जा रहा है की प्राकृतिक जल श्रोत प्रायः बँद हो चुके है। इस पर कौन विचार करेगा।
लेखक ने यह आवाज़ निरँतर समाचार पत्रोँ के माध्यम से लगातार उठाते रही परन्तु न तो प्रदेश सरकार और न ही जिले का प्रशासन चेता और ।
इस पर समय रहते विचार नहीं किया तो वह दिन दूर नही की यह सतपुड़ा की रानी सरजमीं पर भूतों के डेरे नजर आयेंगे और रह जायेगा यह तमाशबीन बना पर्यटन उत्सव
क्या इसे बचाने मध्य क्षेत्र के किसी (मसीहे) को जन्म लेना पडेगा ।
पचमढ़ी से मनोज दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं आरटीआई उपाध्यक्ष की खास रिपोर्ट