रांची। रविवार को आरक्षण पर लोकसभा अध्यक्ष इंदौर की सांसद ताई सुमित्रा महाजन ने अपनी स्पष्ट राय व्यक्त की है। हालांकि उनकी इस बेबाक राय से सियासी बवाल मच सकता है। रांची में संविधान में प्रदत्त आरक्षण के अधिकार पर बोलते हुए लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने कहा कि क्या केवल आरक्षण से देश का उत्थान हो सकेगा? क्या सोच नहीं बदलनी ? बदलाव नहीं होना चाहिए? यह भेदभाव ऐसे ही चलेगा?

ताई ने कहा कि एक बार उन्होंने इस मुद्दे पर अपनी बात रखी, तो कुछ मीडिया ने उन्हें आरक्षण विरोधी करार दे दिया, लेकिन वे स्पष्ट मत व्यक्त करने में विश्वास रखती है। उन्होंने कहा कि जिन्हें आरक्षण मिला, उन्होंने आरक्षण मिलने के बाद समाज को क्या दिया और कितना दिया, इस पर आत्मचिंतन और आत्ममंथन की जरूरत है। वे बोली कि बाबा साहेब डॉ. भीम राव अम्बेडकर ने 10 वर्षों के लिए आरक्षण की वकालत की। वास्तविक रूप से उन्होंने सामाजिक समरसता की परिकल्पना की थी। लेकिन हमने क्या किया, आत्मचिंतन में कमजोर पड़ गए, सृजन में कम पड़ गए, सामूहिक चिंतन में कम पड़ गए, संसद में बैठे लोग भी इसमें शामिल हो गए, हमारी कमजोरी को छिपाने के लिए हर दसवें साल आरक्षण को 10 साल तक बढ़ाते रहे और फिर 20 वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया। क्या केवल आरक्षण देने से देश का उत्थान हो सकेगा, क्या सोच नहीं बदलनी चाहिए, परिवर्त्तन नहीं होना चाहिए, यह भेदभाव ऐसे ही चलेगा, इस पर चिंतन की जरूरत है।

एक उदाहरण देते हुए सुमित्रा महाजन ने बताया कि यदि वह अपने घर में सामूहिक भोज की व्यवस्था करती है और वहां आए ब्राह्मण, क्षत्रिय और शुद्र के लिए अलग-अलग बैठने की व्यवस्था करें, तो क्या अन्न ग्रहण से पूर्ण ब्रह्म प्राप्त हो सकता है, इसलिए आरक्षण पर भी विचार करने की जरूरत है।