अपने बच्चों के लुक का मज़ाक न बनने दें!

अभी पिछले सप्ताह से एक बच्ची का 10 वीं बोर्ड परीक्षा में पूरे उत्तर प्रदेश राज्य में टॉप करने का न्यूज बहुत वायरल चल रहा है। लेकिन न्यूज के वायरल होने का कारण बच्ची का रिजल्ट नहीं है क्योंकि आज कल तो 98-99% प्रतिशत अंक लाना आम बात है। हर साल बहुत से बच्चे अर्जित कर रहे हैं इसलिए इसमें कोई नयी बात नहीं लेकिन इस बच्ची का अंक सिर्फ इसलिए ज्यादा वायरल हुआ क्योंकि उसके चेहरे पर लड़कों जैसे मूंछ और हल्की सी दाढ़ी देखा गया। स्वाभाविक है ऐसे चेहरे की ओर दुनिया का ध्यान आकर्षित होगा ही लेकिन क्या उस बच्ची को उसके लुक को लेकर ऐसी शर्मिन्दगी और क्षुब्ध कर देने वाले हालात का इल्म रहा होगा? क्या उस मासूम बच्ची को इस बारे में सोचने की समझ रही होगी? या उसकी पढ़ाई पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता था। होना भी नहीं चाहिए, वो तो किशोरावस्था में जो हार्मोन चेंजेएस होता है उसकी वज़ह से कुछ हार्मोंस की मात्रा ज्यादा हो जाने के कारण अनेकों बदलाव दिखाई देते हैं। जिन्हें चिकित्सकों के परामर्श से आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है। भला एक 10 वीं कक्षा की छात्रा लुक की ओर अपना ध्यान क्यों भटकाने लगे? सभी को इतनी समझ होनी चाहिए कि किसी लड़की के चेहरे पर बाल आ जाना उसे नीचा दिखाने या उस पर तरस खाने की वजह नहीं बन जाना चाहिए। क्योंकि ये तो महज बायोलॉजिकल साइकिल में गड़बड़ी या फिर जेनेटिक कारणों की वजह से होता है। जिसके लिए माता-पिता को शुरू से ही अपने बच्चों के स्वास्थ्य व उनके खान पान के प्रति गंभीरता बरतना अनिवार्य है। इसके बावजूद अगर ल़डकियों में मेल हार्मोंस और लड़कों में फीमेल हार्मोंस की मात्रा बढ़ने से किसी तरह की विपरीत लिंगी लक्षण दिखाई देते हैं तो उनसे निजात पाने के भी कई आसान उपाय आज उपलब्ध हैं क्यों ना उन्हें ठीक करवा लिया जाए। खाना-पीना व लाइफ़स्टाइल में बदलाव किया जाए। ताकि समाज के सामने आने में संकोच न हो। समाज की सोच को इतनी जल्दी नहीं बदला जा सकता बेहतर है कि हम खुद दुनिया को फेस करने के लिए स्वयं में आत्मविश्वास मजबूत रखें और अपने बच्चों को भी दुनिया के समक्ष पेश होने के लिए तैयार रखें। माता-पिता को अपने सन्तान में ऐसी किसी गड़बड़ी को जान लेना नितांत आवश्यक है क्योंकि वक्त आने पर कोई न कोई उन्हें पूछ सकता है मज़ाक उड़ा सकता है इसलिए ऐसे बच्चे अपने लुक को लेकर अधिक कॉन्शियस हो सकते हैं। अब जिस टॉपर बच्ची का जिक्र इस आलेख में किया गया है उसका चेहरा तो पूरी दुनिया के सामने अचानक उजागर कर दिया गया। जिसका अधिक असर दिमाग़ पर होता है और इससे कॉन्फिडेंस बुरी तरह प्रभावित होता है। लेकिन आज विज्ञान के चमत्कार से सौंदर्य के क्षेत्र में क्रांति आयी है इसलिए ऐसी शारीरिक गड़बड़ियों को दुनिया के समक्ष उजागर न करने में ही भलाई है और इन्हें अपने स्तर पर ही उपचार करा लेने में समझदारी है बजाय की दुनिया के सामने ऐसे बच्चों की हार्मोनल तकलीफों को स्पष्ट करती तस्वीरें लायें, ढोल पीट-पीट कर बताएं, फिर एक मासूम बच्ची की एक शारीरिक समस्या का तमाशा बनाएं उस पर तरस खाएं, उसकी चर्चा हो और फिर आखिरी में उसकी प्रतिभा का हवाला देते हुए उसकी वाहवाही करें। क्या ऐसी अत्यंत व्यक्तिगत बातों को सार्वजनिक करना जरूरी है आखिर क्यों? कृपया माता-पिता अपने बच्चों की ऐसी पब्लिसिटी न करें, क्योंकि ऐसी पब्लिसिटी बच्चे की शारीरिक समस्याओं का मज़ाक उड़ाने जैसा है, जितने लोग देखेंगे उतनी बातें करेंगे। बेहतर होगा ऐसे मामलों में अत्यंत गंभीर हों, स्ट्रिक्ट हों व किसी को वायरल करने का मौका न दें।

 

शशि दीप ©✍

विचारक/ द्विभाषी लेखिका

मुंबई

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